भारत-अमेरिका प्रत्यर्पण संधि के दौरान 26/11 मुंबई हमलों के एक प्रमुख आरोपी तहव्वुर हुसैन राणा को इस साल के अंत तक भारत प्रत्यर्पित (भारत भेजने) किए जाने की संभावना है. मिली जानकारी के अनुसार, राणा का प्रत्यर्पण अंतिम चरण में बताया जा रहा है, और दोनों देशों के बीच ये प्रत्यर्पण 1997 में हस्ताक्षरित भारत-अमेरिका प्रत्यर्पण संधि के आधार पर हो रहा है.
विदेश मंत्रालय द्वारा संसद को उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार, इस संधि के तहत 2002 से 2018 के बीच अमेरिका से केवल 11 भारतीय भगोड़ों के प्रत्यर्पण की सुविधा ही मिली है. वहीं, इसपर सूत्रों का कहना है कि प्रत्यर्पण के करीब 60 अनुरोध अभी भी अमेरिकी सरकार के पास लंबित हैं.
बता दें कि 2002 से 2018 के बीच अमेरिका ने जिन 11 भगोड़ों को भारत प्रत्यर्पित किया गया है, उनमें से दो पर आतंकवाद, एक पर बच्चों के यौन शोषण और एक पर हत्या के प्रयास का आरोप है, जबकि बाकी पर वित्तीय धोखाधड़ी और धोखाधड़ी के आरोप हैं.
अमेरिका पहले भी प्रत्यर्पण के अनुरोधों को खारिज कर चुका है?
इससे पहले भी अमेरिका ने भारत के कई अनुरोधों को खारिज किया है. इनमें से सबसे अहम था राणा के सहयोगी और 26/11 हमलों के आरोपी डेविड कोलमैन हेडली का प्रत्यर्पण. जिसे मुंबई हमलों के लिए टोही करने वाले लश्कर-ए-तैयबा के इस आतंकी को अमेरिकी अधिकारियों ने अक्टूबर 2009 में गिरफ्तार किया था. आरोपों में दोषी पाए जाने के बाद मुंबई हमलों में छह अमेरिकियों की हत्या के लिए अमेरिकी अदालत ने उस पर मुकदमा चलाया और उसे सजा सुनाई. यही कारण था कि हेडली को भारत प्रत्यर्पित नहीं किया गया था. क्योंकि भारत के अनुरोध पर अमेरिका ने अपने जवाब में कहा था कि इससे दोहरा खतरा पैदा हो जाएगा यानी के एक ही अपराध के लिए दो बार सजा मिलना.
ठीक ऐसे ही 1984 के भोपाल गैस त्रासदी के आरोपी और उस समय के यूनियन कार्बाइड के सीईओ वारेन एंडरसन के प्रत्यर्पण के अनुरोध को भी अमेरिका ने खारिज कर दिया था. बता दें कि एंडरसन त्रासदी के बाद भोपाल आया था और उसे पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था. लेकिन उसे जल्द ही जमानत दे दी गई और देश छोड़ने की अनुमति भी. इस घटना के लगभग 20 साल बाद, मई 2003 में भारत ने एंडरसन के खिलाफ अमेरिका को प्रत्यर्पण अनुरोध भेजा था. लेकिन अमेरिका इस अनुरोध को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि एंडरसर के खिलाफ भारत के पास पर्याप्त सबूत नहीं हैं.
इससे पहले अमेरिका ने अपहरण के लिए वांछित सिन्नी सिंह के प्रत्यर्पण के भारत के अनुरोध को खारिज कर दिया था. भारत ने सितंबर 2000 में प्रत्यर्पण के लिए औपचारिक अनुरोध किया था, लेकिन अमेरिका ने जनवरी 2002 में इसे खारिज कर दिया था, और ऐसा हुआ था दोनों देशों के बीच प्रत्यर्पण संधि के कारण. क्योंकि भारत-अमेरिका प्रत्यर्पण संधि के तहत, यदि अपराध दोनों देशों के कानूनों के तहत एक वर्ष से अधिक कारावास से दंडनीय है, तो वह प्रत्यर्पण योग्य है.
हालांकि, संधि राजनीतिक अपराधों के लिए प्रत्यर्पण पर रोक लगाती है, लेकिन कुछ अपराधों को इसमें शामिल नहीं किया गया है, जैसे राज्य या सरकार प्रमुख के खिलाफ अपराध, विमान अपहरण, अंतरराष्ट्रीय व्यक्तियों पर हमले, बंधक बनाना, और ड्रग्स से जुड़े अपराध. अनुच्छेद 6 के अनुसार, प्रत्यर्पण उस स्थिति में रोका जाता है जब अनुरोधित राज्य में व्यक्ति को दोषी ठहराया गया हो या बरी कर दिया गया हो, लेकिन मुकदमा चलाने से इनकार करने या कार्यवाही बंद करने पर रोक नहीं लगती है.