कपूरथला/पंजाब: ऐसा कहा जाता है कि एक व्यक्ति जीवन में हमेशा चाहता है कि उसका बेटा बड़ा होकर एक महान अधिकारी बने और परिवार के लिए एक अच्छा नाम बनाए। इतना ही नहीं, माता-पिता हमेशा अपने बच्चों से अपेक्षा करते हैं कि वे बुढ़ापे में उनका साथ दें। लेकिन परिस्थितियां कभी-कभी व्यक्ति को इस हद तक ले जाती हैं कि वह जीवन में एक पूरा परिवार होते हुए भी अकेला ही रह जाता है।
एक समय था जब प्रकाश एवेन्यू कपूरथला में रहते मोहनलाल का पुत्र महेंद्र राज जो एक कॉलेज में प्रोफेसर गोल्ड मेडलिस्ट होने के बाद भी देश भक्ति के जज्बे के चलते प्रोफेसर की नौकरी छोड़ 1993 में बीएसएफ में भर्ती हुए थे। तीन बहनों का इकलौता भाई होने के कारण मां नहीं चाहती थी कि उनका बेटा बीएसएफ में जाकर नौकरी करे। मां हमेशा चाहती थी कि उसका बेटा हमेशा उसकी आंखों के सामने रहे, लेकिन स्थिति ने और हालातों को ऐसा गवारा नहीं था।
भर्ती के कुछ समय बाद ही मोहिंदर राज को बीएसएफ में 1996 में सहायक कमांडेंट के रूप में पदोनत किया गया जिस के बाद उनकी ट्रेनिंग के बाद देश के अलग-अलग कोनों में उनकी पोस्टिंग हुई और कारगिल युद्ध के दौरान महेंद्र राज भी इस युद्ध का हिस्सा बने।
लेकिन एक कारगिल युद्ध के दौरान 13 जुलाई 1999 जब उनकी उमर सिर्फ 31 साल थी और उनकी शादी को केवल 7 महीने हुए थे और उनकी पोस्टिंग बाजीपुरा श्री नगर में थी तब एक आतंकी हमले के बाद परिवार को खबर मिली कि उनके बेटे ने देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी है।
घर का इकलौता बेटा, जिसे मां कभी भी अपनी आंखों से दूर नहीं रखना चाहती थी, आज जिंदगी भर आंखों में आंसू लेकर मां को दर्द भरी जुदाई दे गया।
बेटे की मौत के बाद बहू ने भी छोड़ा साथ
शहीद डिप्टी कमांडेंट महेंद्र राज की मां कोमल का कहना है कि जिस दिन उनका बेटा शहीद हुआ था, फिर उसकी रस्म क्रिया के दिन ही बहू अपने माता-पिता के पास चली गई।
आज डिप्टी कमांडेंट महेंद्र राज का एक बेटा भी है जो विदेश में पढ़ रहा है लेकिन इतने सालों में उनकी मां ने उन्हें कभी भी उनकी दादी से मिलने नहीं आने दिया। हालात ऐसे हो गए, सरकार ने शहीद की पत्नी को बड़े पद पर सरकारी नौकरी दे दी और शहीद की पूरी पेंशन भी उसकी पत्नी को दी जाने लगी।
इस बीच शहीद डिप्टी कमांडेंट महेंद्र राज के पिता मोहनलाल और मां कोमल घर में अकेले रह गए। शहीद के पिता मोहन लाल का दो साल पहले निधन हो गया था, जिसके बाद आज शहीद की मां कोमल अपने घर में अकेली रहती है।
अगर आने के बाद कोई सहारा मिले तो उस घर की बेटियां और दामाद जो समय-समय पर आते हैं उनसे मिल जाते हैं।
1500 वृद्धावस्था पेंशन व बेटी के सहारे परिवार का भरण-पोषण
शहीद की मां कोमल का कहना है कि आज घर में स्थिति यह है कि बेटा पहले शहीद हुआ है और फिर उनकी बहू ने उसे छोड़ दिया है, पति का निधन हो गया है। उनके मुताबिक आज न तो उन्हें सरकार की ओर से उनके बेटे को दी जाने वाली पेंशन का कोई हिस्सा मिलता है वृद्धापेंशन छोड़कर उनके पास घर चलाने के लिए उनके पास और कोई साधन नहीं है।
रिपोर्ट-अजय सभरवाल
कपूरथला, पंजाब