जालोर/राजस्थान: जालोर के भूतवास-झाक मार्ग स्थित नदी पर बने रपट निर्माण की ऊंचाई बढ़ाने और रपट निर्माण की निष्पक्ष जांच करवाने की मांग को लेकर जालोर जिला कलेक्टर को ज्ञापन सौंपा गया।
बता दें कि ग्राम झाक भौतिक रूप से एक टापूनुमा गांव है जो चारों तरफ से नदी नालों से घिरा हुआ है, लेकिन बारिश के मौसम में गांव का संपर्क अन्य गावों से कट जाता है, ऐसे में बारिश के मौसम में भी गांव को अन्य गांव से जोड़ने के लिए प्रधानमंत्री सड़क योजना के अंतर्गत झांक से मांडोली तक सड़क बनाई गई थी।
लेकिन बीच में आने वाली नदी पर रपट और पुलिया नहीं बानी होने से बारिश के मौसम में यहां पर कई दिनों तक आवागमन बाधित हो जाता है। ऐसे में इस समस्या को लेकर ग्रामीणों ने रपट या पुलिया निर्माण के लिए कई बार धरना प्रदर्शन किया, लेकिन अभी तक उनकी समस्या का कोई समाधान नहीं निकल पाया।
ग्राम पंचायत और अधिकारियों की लापरवाही आई सामने
वर्ष 2022 में जिला कलेक्टर द्वारा झांक भूतवास मार्ग पर रपट निर्माण के लिए 50 लाख की राशि स्वीकृत की गई ताकि, बारिश के समय में दोनों गांव के बीच संपर्क बना रहे। ग्राम पंचायत मांडोली द्वारा जनवरी 2023 में मनरेगा कार्य के तहत 50 लाख की राशि खर्च कर 400 फीट लंबी रपट बनाई गई।
लेकिन यह रपट नदी के तल से लगभग 3 फिट नीचे बनी और इस पर न तो ग्राम पंचायत मांडोली ने ध्यान दिया और न ही किसी अधिकारी ने। रपट बनाने का कार्य कई स्तर की जांच के बाद पूरा होता है फिर भी रपट नदी तल से लगभग 3 फीट नीचे बनी।
अब चाहे नदी चल रही हो या बंद हो जब तक इस रपट से पानी के साथ आई बजरी को नहीं हटाया जाता किसी भी वाहन का निकलना असंभव हो जाता है, और कैसे न कैसे करके अगर बजरी को पूरी तरह से हटा भी दिया जाए तब भी रपट इतना नीचे है कि उसमें दो से तीन फिट तक पानी भर ही जाता है और रपट स्विमिंग पूल बन जाता है।
अभिभावकों को रहती है अपने बच्चों के डूबने की चिंता
रपट की इस समस्या को लेकर ग्रामीणों ने 20 जुलाई को रपट पर इकट्ठे होकर विरोध प्रदर्शन किया था। जिस पर जसवंतपुरा विकास अधिकारी ने रपट पर ग्रामीणों की बात तो सुनी, लेकिन रपट की ऊंचाई बढ़ाने को लेकर कोई ठोस आश्वासन नहीं दिया।
बस जेसीबी चलवाकर रपट पर मौजूद 3 फीट बजरी को हटवा दिया। इससे लोगों की समस्या अभी भी जस की तस बनी हुई है। इसका खामियाजा अगर कोई सबसे ज्यादा भुगत रहा है तो वो झांक गांव से स्कूलों में पड़ने के लिए जाने वाले छात्र और छात्राएं है जो रपट पर बजरी और पानी जमा होने के बावजूद भी प्रतिदिन 10 किलोमीटर पैदल चलकर विद्यालय जाते है।
क्योंकि रपट पर इतनी मात्रा में बजरी इकठ्ठी हो जाती है कि कोई भी अभिभावक अपने बच्चों को निजी वाहन से विद्यालय नहीं छोड़ पाते, रपट में भरा हुआ पानी बच्चों के घुटनों से ऊपर तक आता है और उन्हें ऐसे ही पानी से होकर भीगते हुए पैदल ही विद्यालय जाना पड़ता है।
इससे न केवल उनकी पढ़ाई में बाधा पड़ती है बल्कि बार बार नदी को पार करके जाने से अभिभावक भी चिंतित रहते हैं नतीजा उन्हें अपने बच्चों का विद्यालय छुड़वाना पड़ता है। ऐसे में अब देखने वाली बात यह है कि गांव की यह तस्वीर बदल पाएगी भी या नहीं।