सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड पर लगाई रोक, क्या है इलेक्टोरल बॉन्ड ?

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नई दिल्ली/डेस्क: सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड पर अहम फैसला सुनाया. शीर्ष अदालत ने इलेक्टोरल बॉन्ड को असंवैधानिक करार दिया. शीर्ष अदालत ने चुनावी बॉन्ड की बिक्री पर रोक लगा दी. सुप्रीम कोर्ट में सीजेआई के नेतृत्व वाली सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संविधान पीठ ने इस संबंध में गुरुवार को फैसला सुनाया.

शीर्ष अदालत ने कहा स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को 2019 से अब तक चुनावी बॉन्ड से जुड़ी पूरी जानकारी देनी होगी. सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा कि चुनावी बांड योजना, आयकर अधिनियम की धारा 139 द्वारा संशोधित धारा 29 (1) (सी) और वित्त अधिनियम 2017 द्वारा संशोधित धारा 13 (बी) का प्रावधान अनुच्छेद 19 (1) (ए) का उल्लंघन है.

क्या है इलेक्टोरल बॉन्ड

राजनीतिक चंदे में नकदी पर रोक और उसमें पारदर्शिता लाने के लिए केंद्र की मोदी सरकार ने वर्ष 2018 में इलेक्टोरल बॉन्ड की शुरुआत की थी. इसके पीछे सरकार का मकसद यह था कि राजनीतिक पार्टियों के पास पारदर्शी तरीके से साफ-सुथरा धन आएगा. राजनीतिक पार्टियों को चंदा देने के लिए व्यक्ति, कॉरपोरेट और संस्थाएं बॉन्ड खरीदते हैं, जिसे इलेक्टोरल बॉन्ड कहा जाता है. राजनीतिक पार्टियां इस इलेक्टोरल बॉन्ड को बैंकों में भुनाकर रकम हासिल करती हैं.

सरकार की दलील क्या है ?

केंद्र सरकार ने इस योजना का बचाव करते हुए कहा कि धन का उपयोग उचित बैंकिंग चैनलों के माध्यम से राजनीतिक वित्तपोषण के लिए किया जा रहा है. सरकार ने आगे तर्क दिया कि दानदाताओं की पहचान गोपनीय रखना जरूरी है, ताकि उन्हें राजनीतिक दलों से किसी प्रतिशोध का सामना न करना पड़े.

लेखक: इमरान अंसारी