नई दिल्ली/डेस्क: उत्तर प्रदेश की 10 राज्यसभा सीटों के लिए मंगलवार को मतदान हुआ. इनमें से आठ सीटें भाजपा और दो सीटें समाजवादी पार्टी ने जीती हैं. समाजवादी पार्टी ने तीन उम्मीदवार उतारे थे. एक सीट पर मिली हार के पहले ही अखिलेश यादव ने कह दिया कि उनकी राज्यसभा की तीसरी सीट सच्चे साथियों की पहचान करने की परीक्षा थी.
अखिलेश यादव को शायद इस बात का इल्म था कि उनके कुछ विधायक साथ छोड़ सकते हैं. लेकिन जिस हार को अखिलेश यादव पीडीए (पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक) की विचारधारा की जीत बताने की कोशिश कर रहे हैं, क्या वो इंडिया गठबंधन के लिए कुछ अहम लोकसभा सीटों पर 2024 के चुनाव में मुश्किलें पैदा कर सकती है?
समाजवादी पार्टी के जिन विधायकों ने मंगलवार को क्रॉस वोटिंग कर बीजेपी के प्रत्याशी को वोट दिया है, उनमें मनोज पांडेय, राकेश पांडेय, राकेश प्रताप सिंह, अभय सिंह ,विनोद चतुर्वेदी ,पूजा पाल और आशुतोष मौर्या हैं. इन सात विधायकों में मनोज पांडेय, राकेश पांडेय, राकेश प्रताप सिंह, अभय सिंह और विनोद चतुर्वेदी अगड़ी जाति से आते हैं. पीडीए का नारा बुलंद करने वाली पार्टी के नेता अखिलेश यादव से उनकी पार्टी के पांच अगड़ी जाति के विधायकों ने रिश्ता तोड़ लिया है.
अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव एक बार फिर मैनपुरी से चुनाव लड़ेंगी. पहले मुलायम सिंह यादव यहां से सांसद चुने गए थे. अखिलेश ने अपनी पत्नी, चाचा और चचेरे भाई की टिकट पक्की कर दी है. लेकिन वे खुद चुनाव लड़ेंगे या नहीं, अगर लड़ेंगे तो फिर किस सीट से, इस पर सस्पेंस बना हुआ है.
लेखक: इमरान अंसारी