पटना/बिहार: पटना के बाद विपक्षी दलों की बेंगलुरु में बैठक हो रही है. इस बैठक पर खूब राजनीतिक बयानबाजी हो रही है. अब इस बैठक पर प्रशांत किशोर ने बड़ा बयान दिया है. उन्होंने कहा कि विपक्षी एकता को चुनावी लाभ तभी मिलेगा जब ये नेता आकर्षक मुद्दे के साथ जनता के बीच जाएं और उनका समर्थन हासिल करें. उन्होंने आगे कहा कि 2019 में विपक्षी एक साथ आए पर इसका कोई असर नहीं हुआ था.
प्रशांत किशोर ने कहा कि सिर्फ विपक्षी दलों के नेताओं के एकसाथ बैठ जाने से उसका बहुत बड़ा प्रभाव जन मानस पर नहीं पड़ेगा. प्रभाव तब पड़ेगा जब विपक्षी नेताओं और दलों के मन का भी मेल हो. इसके अलावा जनता का कोई मुद्दा हो, ग्राउंड पर काम करने वाले वर्कर भी हों और उस समर्थन को वोट में बदला भी जाए.
किशोर ने अतीत का उदाहरण देते हुए कहा कि कई लोगों को ऐसा लगता है कि 1977 में सारे विपक्षी दलों ने एक साथ आकर इंदिरा गांधी को हरा दिया था. लेकिन 1977 में विपक्षी दलों के एक साथ आने से इंदिरा गांधी नहीं हारीं, उस समय इमरजेंसी एक बड़ा मुद्दा था, जेपी का आंदोलन भी था. अगर, इमरजेंसी लागू नहीं की जाती, जेपी मूवमेंट नहीं होता, तो सारे दलों के एक साथ आने से भी इंदिरा गांधी नहीं हारतीं. साल 1989 में भी हमने देखा कि बोफोर्स मुद्दे को लेकर राजीव गांधी की सरकार को हटाकर वीपी सिंह सत्ता में आए थे. दल तो बाद में एक हुए, पहले बोफोर्स मुद्दा बना. बोफोर्स के नाम पर देश में आंदोलन हुआ, लोगों की जनभावनाएं उनसे जुड़ी.
प्रशांत किशोर ने कहा कि 2019 में भी सारे दल एक साथ आए थे, लेकिन इसका कोई असर नहीं दिखा था. जिस भूमिका में आज नीतीश कुमार दिखने का प्रयास कर रहे हैं, करीब इसी भूमिका में आंध्र प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू थे, लेकिन देश की बात तो छोड़ दीजिए अपने आंध्र प्रदेश में चंद्रबाबू नायडू बुरी तरह हार गए थे. उन्होंने आगे कहा कि जबतक जनता के मुद्दों पर सहमति नहीं होगी तबतक मुझे नहीं लगता कि इन प्रयासों का कोई असर होगा।