हर साधु और धार्मिक हस्तियों को सार्वजनिक जमीन पर पूजा स्थल बनाने की अनुमति दी, तो होंगे विनाशकारी परिणाम- दिल्ली हाई कोर्ट

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नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसले में चेताया है कि अगर हर साधु, गुरु और अन्य धार्मिक हस्तियों को सार्वजनिक जमीन पर पूजा स्थल बनाने की अनुमति दी गई तो इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं और व्यापक जनहित खतरे में पड़ जाएगा।

महंत श्री नागा बाबा भोला गिरि बनाम जिला मजिस्ट्रेट

यह टिप्पणी न्यायमूर्ति धर्मेश शर्मा ने महंत नागा बाबा भोला गिरि द्वारा उनके उत्तराधिकारी के माध्यम से दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान की। याचिकाकर्ता ने अदालत से जिला मजिस्ट्रेट को निगम बोध घाट पर जमीन उपलब्ध कराने का आदेश देने का आग्रह किया था, जिसमें उन्होंने दिल्ली विशेष कानून अधिनियम द्वारा तय की गई वर्ष 2006 की समय सीमा से पहले भूमि पर स्वामित्व होने का दावा किया था।

अदालत ने पाया कि याचिका तथ्यों पर आधारित नहीं थी और जिला मजिस्ट्रेट पहले ही अनुरोध खारिज कर चुके थे। न्यायमूर्ति शर्मा ने कहा कि याचिकाकर्ता का जमीन पर कब्जा निसंदेह अवैध था क्योंकि “इस तथ्य से कि 30 साल या उससे ज्यादा समय तक किसी जमीन पर उन्होंने खेती की थी, उन्हें उस जमीन पर कानूनी अधिकार, स्वामित्व या उस पर कब्जा जारी रखने का कारण नहीं मिल जाता”।

अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि वहां लोगों की श्रद्धा होने या पूजा-प्रार्थना करने का कोई इतिहास नहीं है और उस स्थल पर ढांचा गिराने की धार्मिक मामलों की समिति की लंबित जांच के तर्क को खारिज कर दिया। न्यायमूर्ति शर्मा ने कहा कि वह एक निजी स्थल था और वहां आम लोगों की श्रद्धा जैसी कोई बात नहीं थी।

इसके अतिरिक्त, न्यायमूर्ति शर्मा ने नागा साधुओं के विश्वास और व्यवहार के बारे में टिप्पणी करते हुए कहा, “नागा साधु भगवान शिव के भक्त होते हैं। उन्हें सांसरिक मोह से विमुक्त जीवन जीना होता है। इसलिए, अपने नाम पर संपत्ति का स्वामित्व चाहना उनके विश्वास और व्यवहार के खिलाफ है।”

इस फैसले से स्पष्ट होता है कि न्यायालय धार्मिक हस्तियों द्वारा सार्वजनिक जमीन के दुरुपयोग को रोकने के लिए सतर्क है, ताकि व्यापक जनहित सुरक्षित रहे और कानूनी प्रक्रिया का सम्मान हो।