मैं जोड़ने वाला पुल हूं लेकिन आज बिखर कर पड़ा हूं…. पढ़ें पुल की पूरी धार्मिक गाथा !

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Bridge Collapse Story: मॉनसून की दस्तक जहां एक तरफ लोगों के लिए राहत का सबब है, तो दूसरी तरफ एक के बाद एक घट रही घटनाओं और गिरते पुलों के सिलसिले के बाद सांसें भी अब सांसत में हैं। लेकिन सोचिए ज़रा, ईंट-ईंट और कड़ी मशक्कत से बने ये पुल, क्या सोचते होंगे…क्या होगी इनकी मनोव्यथा ?

मैं एक पुल हूं जो अपनी गाथा सुना रहा हूं

मैं एक पुल हूं..वो पुल जो दो कस्बे, दो गांव, दो शहरों को जोड़ता हूं..नदियों की बहती धार के ऊपर से गुजरकर दो दिलों को मिलाता हूं .. लोग मेरी तरफ उम्मीदों से देखते हैं.. क्योंकि मैं असंभव को संभव करने के लिए दुनिया में आता हूं..कहीं मेरे ऊपर से रेल गुजरती है तो कहीं बसें, कहीं कारें तो कई लोग पैदल गुजरकर अपने गंतव्य तक पहुंचते हैं..अब तो आधुनिकता के दौर में मेरे आकार-प्रकार में बदलाव आया है..मैं सदियों से समाज को जोड़ता रहा हूं लेकिन आजकल मैं काल के गाल में समा रहा हूं ..मेरे साथ कुछ अच्छा नहीं हो रहा है ..उम्र से पहले अलविदा हो जा रहा हूं ..आज मैं आपको अपनी व्यथा बता रहा हूं।

रामायण में भी पुल का रहा है महत्व

प्राचीन युगों में मुझे सेतु कहा जाता है…मेरे बारे में वाल्मिकी रामायण और तुलसीदास जी के रामचरितमानस में भी कहा गया है, प्रभु राम ने जब सीता माता के हरण के बाद रावण से मुक्त कराने के लिए एक सेतु बनाया…इस सेतु ने भारत और श्रीलंका को भू मार्ग से आपस में जोड़ा .. भगवान श्रीराम की वानर सेना ने इसी सेतु के सहारे श्रीलंका पर आक्रमण किया था..मान्यताओं के अनुसार इस सेतु का निर्माण अयोध्या के राजा श्रीराम की सेना के दो सैनिक जो की वानर थे, जिनको नल-नील नाम से रामायण में मिलता है…इनके बारे में कहा जाता है कि…जब समुद्र पर सेतु नहीं बना पा रहा था तब समुद्र ने प्रभु श्रीराम से कहा

ढहते पुल पर बहुत व्यथित हूं हां मैं पुल हूं

आज के जमाने में मेरे कई रूप देखने मिलते हैं.. कहीं अंडरपास तो कहीं ओवर ब्रिज , तो कहीं प्लाटून पुल, कहीं है हैंगिंग ब्रिज के तौर भी मैं खूब दिखता हूं..लेकिन आधुनिकता के दौर में बने पुल की कहानी बेहद डरावनी है..अब ये पुल कभी बारिश की भेंट तो कभी बाढ़ की वजह से बह जा रहे हैं.. हाल के दिनों में बिहार और झारखंड में पुल के साथ जो हुआ है वो किसी से छिपा नहीं है..क्योंकि पहले जहां पुल की उम्र सौ से ज्यादा साल होती थी अब तो करोड़ रुपए खर्च करने के बाद भी पता नहीं कब पुल बह जाए ..ये खुद पुल और इसे बनाने वालों को भी पता नहीं रहता कि इनका भविष्य क्या है ।

करोड़ो का खर्च और मिनटों में धराशायी

आज आधुनिकता के दौर में बने पुल की कहानी बेहद डरावनी है..अब ये पुल कभी बारिश की भेंट तो कभी बाढ़ की वजह से बह जा रहे हैं.. हाल के दिनों में बिहार और झारखंड में पुल के साथ जो हुआ है वो किसी से छिपा नहीं है..क्योंकि पहले जहां पुल की उम्र सौ से ज्यादा होती थी अब तो करोड़ रुपए खर्च करने के बाद भी पता नहीं कब पुल बह जाए ..ये खुद पुल और इसे बनाने वालों को भी पता नहीं रहता कि इनका भविष्य क्या है ।

लेखक – भानु प्रकाश