गुरुपूर्णिमा और गोरक्षपीठ; तीन पीढ़ियों की बेमिसाल गुरु-शिष्य परंपरा

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गोरखपुर: गुरु-शिष्य का रिश्ता भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण अंग है, जिसमें गुरु और शिष्य दोनों एक-दूसरे के गुरुत्व को बढ़ाने का प्रयास करते हैं। गोरक्षपीठ की तीन पीढ़ियों में यह परंपरा बखूबी देखने को मिलती है।

योगी आदित्यनाथ और ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ: श्रद्धा का प्रतीक

गोरक्षपीठ के वर्तमान पीठाधीश्वर, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, अपने गुरु ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ के प्रति गहरी श्रद्धा रखते हैं। महंत अवेद्यनाथ का आदेश योगी आदित्यनाथ के लिए ‘वीटो पावर’ जैसा था। आज भी योगी जी अपने गुरु के आशीर्वाद के बिना कोई कार्य नहीं करते हैं, चाहे वह कितना भी व्यस्त क्यों न हों।

गोरक्षपीठ की अनोखी परंपरा: शिष्य बनाने की नहीं, श्रद्धा अर्जित करने की

गोरक्षपीठ की परंपरा लोगों को शिष्य बनाने की नहीं है, बल्कि यह लाखों-करोड़ों लोगों की श्रद्धा अर्जित करने में विश्वास रखती है। उत्तर भारत की इस प्रमुख पीठ के हर निर्णय का प्रभाव और स्वीकृति आम जनमानस में स्पष्ट दिखाई देती है।

खिचड़ी मेला और गुरुपूर्णिमा: श्रद्धा का प्रदर्शन

गोरक्षपीठ के प्रति लोगों की श्रद्धा का सबसे बड़ा प्रमाण मकर संक्रांति से शुरू होने वाला खिचड़ी मेला है, जिसमें लाखों श्रद्धालु नेपाल, बिहार और देश के विभिन्न हिस्सों से गोरखनाथ मंदिर में आकर अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं। इसी तरह, गुरुपूर्णिमा के दिन बड़ी संख्या में लोग पीठाधीश्वर के प्रति अपनी श्रद्धा निवेदित करने आते हैं।

सितंबर में गुरु-शिष्य परंपरा का उत्सव

हर सितंबर में गोरक्षपीठ अपने गुरुओं की पुण्यतिथि समारोह का आयोजन करती है। इस दौरान, संत और विद्वत समाज के लोग गुरुजनों के कृतित्व, व्यक्तित्व और सामाजिक सरोकारों पर चर्चा करते हैं। यह समारोह गुरुजनों को स्मरण करने और उनके संकल्पों को पूरा करने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

गोरक्षपीठ की गुरु-शिष्य परंपरा भारतीय संस्कृति की एक जीवंत मिसाल है, जहां गुरु और शिष्य दोनों एक-दूसरे के गुरुत्व को बढ़ाने के लिए समर्पित रहते हैं। योगी आदित्यनाथ और उनके गुरु ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ के बीच की श्रद्धा और विश्वास की कहानी हमें इस महान परंपरा की गहराई का अहसास कराती है।