Mata Prasad Pandey: यूपी की सियासत में जिस पीडीए (पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक) कार्ड खेलकर समाजवादी पार्टी नेता अखिलेश यादव ने लोकसभा चुनावों में भाजपा को करारी शिकस्त दी थी अब उसमें एक और नया सियासी मोड़ सामने आ रहा है। उत्तर प्रदेश विधानसभा में जब नेता प्रतिपक्ष चुनने की बरी आई तो यही कहा जा रहा था कि किसी दलित या पिछड़े को यह महत्त्वपूर्ण पद देकर अखिलेश यादव अपने इस जनाधार को और ज्यादा मजबूत करने की कोशिश कर सकते हैं। शिवपाल यादव और इंद्रजीत सरोज को इस पद के लिए सबसे तगड़ा दावेदार भी माना जा रहा था। लेकिन अचानक से अखिलेश के एक फैसले ने सबको चौका दिया है।
अखिलेश यादव ने माता प्रसाद पांडेय को नेता प्रतिपक्ष की बड़ी जिम्मेदारी दी है आपको बता दें की पहले यह पद अखिलेश यादव के पास था। सियासत के जानकारों का कहना है कि अखिलेश यादव का यह फैसला प्रदेश की सियासत पर बड़ा असर डाल सकती है।UP Politics: सपा का ब्राह्मण कार्ड, सत्ता का वनवास खत्म करने को बेहद सधी चाल चल रहे अखिलेश
पुराना सियासी अनुभव दोहराने का प्रयास
दरअसल, 2012 के यूपी विधानसभा चुनावों में जब समाजवादी पार्टी ने अकेले दम पर 224 सीटें जीतने का कारनामा किया था, तब यह उसके सोशल इंजीनियरिंग का ही करिश्मा माना गया था। उस वक्त समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में अखिलेश यादव ने ब्राह्मणों को लुभाने का काम शुरू किया था। ब्राह्मण मतदाता इसके पहले 20007 में बहुजन समाज पार्टी के साथ जाकर मायावती को पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में पहुंचा चुके थे, लेकिन कथित तौर पर मायावती के शासनकाल में भी ब्राह्मणों की जमकर उपेक्षा हुई, जिससे नाराज ब्राह्मण किसी दूसरे ठिकाने की तलाश कर रहे थे।
आपको बता दें कि पूर्वांचल में ब्राह्मणों की आबादी लगभग 20% के आसपास है जो हार जीत में बड़ी भूमिका निभाते हैं यही कारण है कि इस वोटबैंक को साधने के लिए सभी दाल लगें हुए हैं। अब देखना होगा कि अखिलेश के इस सियासी दांव से समाजवादी पार्टी को कितना लाभ मिलता है।