पूर्व प्रधानमंत्रियों की अपेक्षा मोदी के भाषण और दावे कैसे कार्रवाई में बदल जाते हैं? जानें…

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नई दिल्ली: 15 अगस्त 2024 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने 11वें स्वतंत्रता दिवस भाषण में लाल किले की प्राचीर से अपने कार्यकाल की उपलब्धियों और वादों की समीक्षा करेंगे। 2029 तक देश के सबसे लंबे समय तक सेवा करने वाले निर्वाचित प्रधानमंत्री बनने के लिए तैयार मोदी ने 2014 से ही अपने 15 अगस्त के भाषण में लोगों की क्षमता, विकास के वादे और राष्ट्रीय समृद्धि के महत्व पर जोर दिया है।

बता दें कि पीएम मोदी का प्रत्येक भाषण विकास लक्ष्यों को आगे बढ़ाने और पिछले वर्षों की सफलताओं पर निर्माण करने के बारे में रहा है, जबकि राष्ट्र के दीर्घकालिक हितों को शामिल किया गया है और यह सुनिश्चित किया गया है कि हर कोई भारतीय विकास की कहानी में हितधारक है। पीएम मोदी का ये व्यवहार ही उनके और जनता के बीच एक गहरा रिश्ता कायम करता है। लेकिन पूर्व के प्रधानमंत्रियों (जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी) के स्वतंत्रा दिवस भाषणों में वो बात नजर नहीं आती है।

वहीं, अगर पीएम मोदी और पूर्व के प्रधानमंत्रियों नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के स्वतंत्रता दिवस भाषणों का अगर बारीकी से विश्लेषण किया जाए, तो उनमें चौंकाने वाली असमानताएं सामने आती हैं। चलिए आजादी के बाद से पूर्व प्रधानमंत्रियों के द्वारा स्वतंत्रता दिवस पर दिए गे भाषणों पर एक नजर डालते हैं।…

पंडित नेहरू, इंदिर गांधी और राजीव गांधी ने अपने भाषणों को दोहराया

तीनों नेताओं के भाषणों में कई बार एक ही मुद्दे पर चर्चा की गई, लेकिन नए समाधान या दृष्टिकोण नहीं प्रस्तुत किए गए। उदाहरण के लिए, नेहरू ने मुद्रास्फीति को कोरियाई युद्ध जैसे बाहरी कारकों का दोषी ठहराया, लेकिन इस पर कोई ठोस उपाय नहीं सुझाया।

जवाबदेही से बचना जारी रखा

पूर्व प्रधानमंत्रियों द्वारा स्वतंत्रता दिवस पर दिए गए भाषण अक्सर समस्याओं की पहचान करते हैं, लेकिन जिम्मेदारी लेने या समाधान प्रस्तुत करने में विफल रहते हैं। नेहरू ने आम जनता को जमाखोरी और कालाबाजारी के लिए दोषी ठहराया, जबकि राजीव गांधी ने पूंजीपतियों को दोषी ठहराया। इस पर नरेंद्र मोदी ने समस्याओं की पहचान की और समाधान की दिशा में ठोस कदम उठाए।

प्रेरणा से भरे होते हैं पीएम मोदी के भाषण!

नेहरू और उनके उत्तराधिकारियों ने देश को प्रेरित करने के बजाय उपदेशात्मक लहजे में बातें कीं और समस्याओं को बाहरी कारकों से जोड़ा। इसके विपरीत, नरेंद्र मोदी ने प्रेरणादायक भाषण दिए और स्वतंत्रता के 70 वर्षों के बाद भी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए स्पष्ट लक्ष्य निर्धारित किए।

मोदी के अलावा अन्य नेताओं के भाषणों में अक्सर उपदेशात्मक लहजा देखने को मिलता है, जैसे भोजन की बर्बादी पर उपदेश देना और भारतीयों की तुलना विदेशी लोगों से करना। मोदी ने इस लहजे को बदलते हुए सकारात्मक दृष्टिकोण और ठोस योजनाओं पर ध्यान केंद्रित किया है।

जन आंदोलन की कमी

स्वतंत्रता आंदोलन की विरासत का दावा करते हुए, इन नेताओं ने कभी भी जन आंदोलन शुरू नहीं किया। नरेंद्र मोदी ने इस पर ध्यान देते हुए ‘आत्मनिर्भर भारत’ और ‘जल-जीवन मिशन’ जैसे बड़े जन आंदोलनों की शुरुआत की। और उन्हें जमीन पर भी उतारा।

पीएम मोदी ने रिपोर्ट कार्ड की कमी को किया पूरा

पूर्व प्रधानमंत्रियों ने कभी भी अपने भाषणों में किए गए वादों की समीक्षा नहीं की। वहीं, नरेंद्र मोदी ने लगातार पिछले कुछ सालों के वादों की याद दिलाई और उनकी प्रगति पर अपडेट दिया, जिससे स्पष्टता और पारदर्शिता बनी रहती है।

आज अगर पूर्व प्रधानमंत्रियों द्वारा दिए गए भाषणों को दोहराएं तो इन नेताओं ने स्वतंत्रता दिवस पर अपने भाषणों में मुद्दों की पहचान तो की, लेकिन उन्हें हल करने के लिए ठोस और प्रेरणादायक उपाय प्रस्तुत करने में विफल रहे। लेकिन पीएम मोदी ने इस पर सुधार करते हुए समस्याओं को पहचानने और समाधान की दिशा में ठोस कदम उठाने का भरसक प्रयास किया है।

इसी को ध्यान में रखते हुए पीएम मोदी 2014 से लगातार स्वतंत्रता दिवस पर अपने भाषणों में विकास, समृद्धि और राष्ट्र निर्माण पर जोर देते आए हैं। चलिए एक टेबल के माध्यम से समझेंगे कि पीएम मोदी ने हर साल नए लक्ष्यों की ओर कैसे ध्यान आकर्षित किया और राष्ट्रीय समृद्धि की दिशा में क्या-क्या कदम उठाए हैं। साथ ही टेबल में उनके वादों और रिपोर्ट कार्ड को भी दर्शाया गया है।

पीएम मोदी द्वारा पिछले कुछ सालों में किए गए वादे और रिपोर्ट कार्ड पर एक नजर…
क्षेत्रवादे का सालरिपोर्ट कार्ड
वित्तीय समावेशन20142015: 17 करोड़ जीरो बैलेंस खाते खोले गए।
आज: लगभग 53 करोड़ जन धन खाते।
ग्रामीण परिवर्तन2014, 20192015: शौचालय निर्माण का लक्ष्य पूरा।
2016: 2 करोड़ से ज़्यादा शौचालय।
2017: 14 हज़ार से ज़्यादा गांवों में बिजली।
2021: 4.5 करोड़ परिवारों को नल से पानी।
2023: गांवों में कंक्रीट की सड़कें।
समान हितधारक20142021: 100% घरों में शौचालय निर्माण।
विनिर्माण के लिए जोर20142021-2022: भारत विनिर्माण के प्रमुख गंतव्यों में उभरा।
सबसे बुरे समय में वादा20202021: 50 करोड़ से अधिक टीकाकरण खुराकें।
2022: 200 करोड़ से अधिक खुराकें।
किसानों के लिए2014, 20162018: किसानों के बीमा कार्यक्रम की सफलता।
कल के भारत का निर्माण20162023: राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन के तहत बढ़ते पूंजीगत व्यय।
पूर्वोत्तर भारत20152018: नए शैक्षणिक संस्थान, खेल सुविधाएं, दिल्ली से पूर्वोत्तर को जोड़ने वाले प्रयास।
डिजिटल इंडिया20142018: डिजिटल इंडिया का सपना हकीकत।
2022: 5G, ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क का विकास।
2023: अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर डिजिटल इंडिया का प्रभाव।
ये टेबल मीडिया में जारी आंकड़ों के अनुसार बनाई गई है…