Historical relationship between Sikhs and Sanatan: सिखों और सनातन धर्म के बीच विभाजन की साजिश अंग्रेजों का षड्यंत्र

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नई दिल्ली: सिख और सनातन धर्म के बीच भेदभाव पैदा करने की साजिश अंग्रेजों ने की थी। इसका उद्देश्य भारतीय समाज में विभाजन पैदा करना था, जो आज भी सिख और सनातन समाज के बीच अविश्वास का कारण बनता है। इस मुद्दे पर राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष, डॉ. इकबाल सिंह लालपुरा ने एक महत्वपूर्ण वक्तव्य दिया। वह नई दिल्ली में आयोजित “सिख गुरुओं की राष्ट्रीय दृष्टि” नामक पुस्तक के लोकार्पण समारोह में बोल रहे थे। इस पुस्तक का लेखन सिख साहित्य के विद्वान स्वर्गीय राजेंद्र सिंह जी ने किया है, जिन्होंने सिख धर्म की राष्ट्रीय भूमिका को उजागर किया है।

डॉ. लालपुरा ने कहा, “गुरुग्रंथ साहिब में लिखा है कि प्रथम गुरु नानक देव जी भगवान विष्णु के अवतार हैं। इसलिए गुरु नानक देव सिर्फ सिखों के नहीं, पूरे भारत के हैं।” उन्होंने अंग्रेजों के षड्यंत्र को उजागर करते हुए कहा कि सनातन, जैन, बौद्ध, और सिख धर्म सभी एक ही मूल से उत्पन्न हुए हैं।

पुस्तक का लोकार्पण और समारोह के मुख्य बिंदु

यह कार्यक्रम सरदार दयाल सिंह सांध्य महाविद्यालय में संपन्न हुआ, जिसमें राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष डॉ. इकबाल सिंह लालपुरा, दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमिटी के मुख्य सलाहकार सरदार परमजीत सिंह चंडोक और पंजाब केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलाधिपति प्रो. जगबीर सिंह प्रमुख वक्ता रहे।

कार्यक्रम में गुरुओं के योगदान पर चर्चा हुई

सरदार परमजीत सिंह चंडोक ने कहा, “यह देश की पहली सरकार है जिसने सिख गुरुओं के दिवसों का उत्सव आयोजित किया है।” उन्होंने सरकार के करतारपुर साहिब कॉरिडोर खोलने के प्रयासों की सराहना की और इसे सिख समाज के लिए एक महत्वपूर्ण कदम बताया। प्रो. जगबीर सिंह ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में अंग्रेजों द्वारा सिख और सनातन समाज के बीच फूट डालने के प्रयासों की निंदा की। उन्होंने कहा कि सिख समाज भारत का अभिन्न अंग है और गुरु नानक देव जी की शिक्षाएं आज के दौर में और भी अधिक महत्वपूर्ण हैं।

सिख समाज के 14 लोगों को किया गया सम्मानित

समारोह के दौरान, सिख समाज के 14 महत्वपूर्ण व्यक्तियों को उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए सम्मानित किया गया। इनमें शहीद ए आजम भगत सिंह के प्रपौत्र यदविंदर सिंह, शिक्षाविद डॉ. सुरजीत कौर और शहीद भगत सिंह सेवा दल के संस्थापक पद्मश्री जितेंद्र सिंह शंटी शामिल थे।

यह कार्यक्रम न केवल सिख गुरुओं की शिक्षाओं के महत्व को रेखांकित करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि भारतीय समाज में एकता और सहिष्णुता की कितनी जरूरत है। अंग्रेजों द्वारा किए गए षड्यंत्रों का पर्दाफाश करते हुए, यह पुस्तक सिख और सनातन समाज के बीच की खाई को पाटने का प्रयास करती है।