Father Sold 2Year Old Son: क्या कोई मां, जिसने अपने जिगर के टुकड़े को नौ महीने तक अपनी कोख में पाला हो, उसे बेचने की कल्पना कर सकती है? यकीनन आप कहेंगे नहीं लेकिन यूपी के कुशीनगर में ऐसा हुआ है। जहां अस्पताल संचालक की गुंडागर्दी और पैसे की डिमांड ने एक मां-बाप को इस कदर मजबूर कर दिया कि वे अपने ही जिगर के टुकड़े को बेचने के लिए राजी ही नहीं हुए बल्कि 20 हजार में अपने बच्चे का सौदा भी कर दिया। न्यूज इंडिया पर खबर चलने के बाद मां को उसका बेटा तो वापस मिल गया। लेकिन इस पूरी घटना ने सड़े हुए सिस्टम की पोल खोल दी।
क्या है मामला?
दरअसल, कुशीनगर स्थित बरवापट्टी थाना क्षेत्र के दशहवा गाँव के एक निजी अस्पताल में भर्ती गर्भवती पत्नी और नवजात बच्चे को डिस्चार्ज कराने के लिए एक पिता (हरेश) ने अपने 2 वर्षीय दूसरे बेटे (राजा) का सौदा 20 हजार रुपए में कर दिया। और फिर उन पैसों में से 4 हजार रुपए से हॉस्पिटल का बिल भरा और बंधक बनी अपनी पत्नी को छुड़ाया।
अस्पताल से छूटने के बाद जब बच्चे की मां को खबर मिली की उसका बच्चा बेच दिया गया है, तो वह अपने कलेजे के टुकड़े के लिए फुट-फुट कर रोने लगी। रोती बिलखती इस मां का दर्द भला दूसरा कैसे समझ पाएगा। जिस बच्चे को सीने से लगाकर दो साल तक पाला, हालात के हाथों ऐसे मजबूर हुई कि उसी का सौदा कर दिया, लेकिन ये गरीब मां करे भी तो क्या करे। एक ओर उसका नवजात बच्चा था जो अभी-अभी पैदा हुआ था और जिसे जल्लाद डॉक्टर ने सिर्फ इसलिए मां समेत बंधक बना लिया। क्योंकि उसके पास देने के लिए 4 हजार रुपए नहीं थे। लाचार पिता के सामने दो बच्चों में किसी एक को ही अपना पाने का विकल्प बचा था।
न्यूज इंडिया की खबर का दिखा असर, सिस्टम को आया होश
इस खबर के सामने आने के बाद न्यूज इंडिया ने इसे प्रमुखता से दिखाया जिसके बाद सड़े सिस्टम को होश आया। जिसने ऐसे जल्लाद डॉक्टरों को पाल पोस कर इस कदर मगरूर बना दिया है कि उनके लिए पैसा ही सब कुछ बन गया है। किसी की जिन्दगी से कोई मतलब नहीं, जरा सोचिए कैसी पत्थरदिल रही होगी वो आशा बहू जिसने बच्चे के सौदे में बिचौलिए की भूमिका निभाई और कैसा पत्थरदिल रहा होगा वो सिपाही जिसने बच्चे की सौदेबाजी में 5 हजार की दलाली खाई। फिलहाल पुलिस ने अपनी कार्रवाई की है। लेकिन क्या इतना काफी है।
जरा सोचिए कि आजादी के सात दशक से ज्यादा गुजरने के बाद भी अगर कोई अस्पताल का बिल चुकाने के लिए अपने औलाद का सौदा करने को मजबूर हो जाता है तो यकीन मानिए इस सिस्टम पर गर्व होने की जगह शर्म आना लाजमी हो जाता है। एक ओर जहां केन्द्र और राज्य की सरकार समाज के अंतिम पायदान पर बैठे लोगों के लिए घर, राशन, और अन्य योजनाएं चला रही हैं, वहीं इन योजनाओं को अमल में लाने वाला प्रशासनिक तंत्र कान में तेल डालकर सो रहा है। उसे फर्क नहीं पड़ता कि कौन जरूरतमंद है और कौन नहीं। उसकी सैलरी तो टाइम से आ ही रही है।
बेबस परिवार के साथ ज्यादती ने सिर्फ एक महकमे की पोल नहीं खोली है, बल्कि हर उस महकमें की स्याह तस्वीर पेश की है जिसने इस मजबूर परिवार का फायदा उठाया। पहले अस्पताल ने लूटा, फिर खाकी ने औलाद के सौदे में से जुटाई रकम हड़प ली। चलिए मान लेते हैं कि इस घटना के बाद प्रशासन जागा है और कार्रवाई कर रहा है लेकिन क्या ये घटना अंतिम होगी? ऐसे कई सवाल इस घटना के सामने आने के बाद खड़े हो रहे हैं।
कुशीनगर का ये वह इलाका है जहां से बिहार महज चंद किलोमीटर के फासले पर है। ये वह इलाका है जहां बाढ़ का दंश लोगों को झेलना पड़ता है। ऐसे पिछड़े इलाकों पर भी अगर प्रशासनिक तंत्र की नजर नहीं जाती तो शर्म आनी चाहिए ऐसे सिस्टम को। जो सब कुछ देखते हुए भी लंगड़ा लूला बनकर बैठा है। ये मां चार दिन से भूखी है, बच्चे भूखे हैं, पिता के पास रोजगार नहीं है, किसी सरकारी योजना का फायदा नहीं है। और ऐसे में जिन्हें इनकी फिक्र करनी चाहिए वो ही इन्हें लूट रहे हैं, पूरी बेशर्मी के साथ। उम्मीद की जानी चाहिए कि दोबारा ऐसी घटना किसी के साथ ना हो।