One Nation, One Election: शीतकालीन सत्र में पेश हो सकता है ये बिल! जानें कितनी बदलेगी भारत की तस्वीर?

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One Nation, One Election: देश में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ कराने की तरफ मोदी सरकार ने एक और कदम आगे बढ़ा लिया है। ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ को कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है। सूत्रों के मुताबिक, देश में एक साथ चुनाव कराए जाने को लेकर बिल शीतकालीन सत्र में पेश किया जा सकता है। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के नेतृत्व वाली समिति ने वन नेशन वन इलेक्शन की संभावनाओं पर मार्च में अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी। इस रिपोर्ट में जो सुझाव दिए गए हैं, उसके मुताबिक पहले कदम के रूप में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाने चाहिए।

समिति ने आगे सिफारिश की है कि लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनाव एक साथ संपन्न होने के 100 दिन के भीतर स्थानीय निकाय चुनाव भी हो जाने चाहिए। एक देश-एक चुनाव को लेकर कई चुनौतियां हैं, इन चुनौतियों से कैसे निपटा जाए, दुनिया के किन देशों में ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ का मॉडल है, वहां चुनाव कैसे होते हैं? ऐसे तमाम सवालों के जवाबों के लिए 2 सितंबर 2023 को पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई गई थी।

इस कमेटी ने 14 मार्च को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी। कमेटी ने 191 दिनों तक विशेषज्ञों और स्टेकहोल्डर्स से विचार के बाद 18 हजार 626 पन्नों की रिपोर्ट दी। इस रिपोर्ट में सुझाव दिए गए कि सभी राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल अगले लोकसभा चुनाव यानी 2029 तक बढ़ाया जाए। जिससे कि लोकसभा के साथ राज्यों के विधानसभा चुनाव कराए जा सकें। हंग असेंबली, नो कॉन्फिडेंस मोशन होने पर बाकी 5 साल के कार्यकाल के लिए नए सिरे से चुनाव कराए जा सकते हैं।

इस प्रस्ताव पर समिति को 21 हजार 558 प्रतिक्रियाएं मिली, इसमें से 80% ने ‘एक देश एक चुनाव’ का समर्थन किया। इसमें 47 राजनीतिक दलों अपने विचार समिति के सामने रखें, इसमें से 32 राजनीतिक दल वन नेशन वन इलेक्शन के समर्थन में है और कांग्रेस के साथ 15 राजनीतिक दलों ने इसका विरोध किया।

अभी देश में वन नेशन-वन इलेक्शन को लागू करने पर कई राज्यों में विधानसभा का कार्यकाल घटेगा, तो कुछ राज्यों का कार्यकाल बढ़ाया जा सकता है। खासकर उन राज्यों में जहां पर 2023 में चुनाव हुए हैं ऐसे में उनका कार्यकाल बढ़ाया जा सकता है। रिपोर्ट में यह कहा गया है कि विधि आयोग के प्रस्ताव पर अगर सभी दल सहमत होते हैं, तो ये मॉडल 2029 में लागू किया जा सकता है।

ऐसा इसलिए क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लंबे समय से ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ की वकालत करते आए हैं। लगातार तीसरी बार सरकार बनाने के साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साफ कर दिया था कि बहुत जल्द इसे लागू कर दिया जाएगा। इसके लिए पीएम मोदी ने पक्ष-विपक्ष के सभी नेताओं से एक साथ आने को भी कहा था इससे चुनावों का प्रबंधन करने वाले खर्च में कटौती होगी।

खबरों के मुताबिक आने वाले शीतकालीन सत्र में इस प्रस्ताव को संसद के पटल पर रखा जाएगा। हालांकि, इस प्रस्ताव को मंजूरी के लिए अभी लंबा रास्ता तय करना है। सरकार को दोनों सदनों में बिल लाना होगा। चूंकि ये बिल संविधान संशोधन करेंगे, इसके लिए ये तभी पास होंगे, जब सरकार को संसद के दो तिहाई सदस्यों का समर्थन मिलेगा और इस प्रस्ताव के समर्थन में सरकार को लोकसभा में 362 और राज्यसभा में 163 सदस्यों की जरूरत होगी। अगर दोनों सदनों में प्रस्ताव पास हो जाता है तो देश की 28 विधानसभाओं में कम से कम 15 राज्यों की विधानसभा से इसे पास करवाना जरूरी होगा, इसके बाद राष्ट्रपति के हस्ताक्षर से ये बिल कानून बन जाएगा।

एक साथ चुनाव को लेकर विपक्ष के हमेशा से सवाल और आशंकाए रही हैं। वो सवाल अब भी उठ रहे हैं। बता दें कि एक देश-एक चुनाव पर पहली बार विवाद 2018 में शुरू हुआ था। उस वक्त लॉ कमीशन ने एक देश-एक चुनाव का समर्थन कर रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौंपी थी। लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाने के मुद्दे पर मसौदा रिपोर्ट केंद्रीय विधि आयोग को दी गई थी। इस रिपोर्ट में संविधान और चुनाव कानूनों में बदलाव की सिफारिश की गई थी। जिसके बाद से ही देशभर में फिर से बहस छिड़ गई थी कि ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ से क्या बदलाव होंगे। एक देश एक चुनाव से सबसे बड़ा फायदा खर्च के मोर्चे पर होगा। एक साथ चुनाव का फायदा नीतियों और विकास कामों पर भी पड़ेगा। इसे बिना रुके चलाया जा सकेगा।

हालांकि, हिंदुस्तान की बड़ी जनसंख्या और चुनाव के लिए आवश्यक संसाधनों का हवाला देते हुए भी एकसाथ चुनाव कराना चुनौतीपूर्ण बताया जाता है। एक देश एक चुनाव के कई फायदे हैं, तो कई नुकसान भी हैं। जैसे क्षेत्रीय मुद्दें नजरअंदाज हो जाने की आशंका है। एक साथ चुनाव होने से जनप्रतिनिधियों को जनता के प्रति जवाबदेही पर खतरा रहेगा, अलग-अलग वक्त पर चुनाव होने की वजह से जनप्रतिनिधियों को लगातार जवाबदेह बने रहना पड़ता है। एक देश-एक चुनाव लागू करने के लिए कई राज्य की विधानसभाओं का कार्यकाल घटाना पड़ेगा। साथ ही कुछ विधानसभाओं का कार्यकाल बढ़ाना पड़ेगा और ये सब इतना आसान नहीं है।

हालांकि, ‘एक देश, एक चुनाव’ कोई नई नहीं है। जानकारों की मानें, तो ये प्रक्रिया उतनी की पुरानी है जितना हमारा संविधान। देश में चार बार एक साथ चुनाव हो चुके हैं। आजादी के बाद 1952, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ ही होते थे, लेकिन 1968 और 1969 में कई विधानसभाएं वक्त से पहले ही भंग कर दी गईं और उसके बाद 1970 में लोकसभा भी भंग कर दी गई, जिस वजह से एक देश-एक चुनाव की परंपरा टूट गई। फिलहाल दुनिया के कई देश ऐसे हैं, जहां ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ वाला मॉडल लागू है इसमें अमेरिका अमेरिका, फ्रांस, स्वीडन, कनाडा जैसे देश शामिल हैं। मोदी सरकार देश भर में एक साथ चुनाव कराने के लिए कदम बढ़ा रही है। अब देखना होगा कि सरकार इसे लेकर आगे क्या कदम उठाती है और कैसे इसे लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष में सहमती बनाती है।

सरफराज सैफी, वरिष्ठ पत्रकार