मदरसा शिक्षा व्यवस्था पर NCPCR की कड़ी आपत्ति; जानें क्या कहती है आयोग की रिपोर्ट?

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नई दिल्ली: NCPCR ने हाल ही में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को मदरसा बोर्डों को बंद करने की सिफारिश की है. इस मामले में आयोग का कहना है कि मदरसों में पढ़ने वाले बच्चों को औपचारिक स्कूलों में दाखिल कराना चाहिए और मदरसों को दी जाने वाली राज्य फंडिंग को बंद किया जाना चाहिए. आयोग के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने ‘आस्था के संरक्षक या अधिकारों के उत्पीड़क: बच्चों के अधिकार बनाम मदरसा’ नामक एक रिपोर्ट पेश की है, जिसमें यह दावा किया गया है कि मदरसे बच्चों के शैक्षिक अधिकारों का उल्लंघन कर रहे हैं.

औपचारिक (formal) शिक्षा की वकालत

प्रियंक कानूनगो के मुताबिक, मदरसों में पढ़ने वाले गैर-मुस्लिम बच्चों को तुरंत बाहर निकालकर RTE अधिनियम, 2009 के अनुसार, स्कूलों में दाखिल कराया जाना चाहिए. साथ ही, मुस्लिम बच्चों को भी औपचारिक (सामान्य) शिक्षा के लिए स्कूलों में दाखिला दिया जाना चाहिए, चाहे वे मान्यता प्राप्त मदरसे हों या नहीं. आयोग का मानना है कि धार्मिक संस्थानों में शिक्षा दिए जाने से बच्चों के अधिकारों का हनन हो रहा है.

मदरसे और RTE अधिनियम के बीच टकराव

NCPCR की ओर से जारी रिपोर्ट के अनुसार, मदरसों के पाठ्यक्रम RTE अधिनियम के मानकों के अनुरूप नहीं हैं. NCPCR का कहना है कि मदरसों में पढ़ाए जाने वाले पाठ्यक्रम में इस्लाम की सर्वोच्चता का प्रचार किया जाता है, और कुछ पाठ्य सामग्रियां पाकिस्तान से प्रकाशित होती हैं. यह शिक्षा प्रणाली बच्चों के समग्र विकास के लिए बाधक मानी जा रही है. इसके साथ ही मदरसों में योग्य शिक्षकों की कमी और पारंपरिक तरीकों से शिक्षा देने पर भी आयोग ने चिंता जताई है.

संविधान और बच्चों के अधिकारों का हो रहा है उल्लंघन

रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है कि मदरसा बोर्ड गैर-मुस्लिम बच्चों को इस्लामी शिक्षा प्रदान कर रहे हैं, जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 28(3) का उल्लंघन है. इसके चलते, NCPCR ने सिफारिश की है कि राज्य सरकारें गैर-मुस्लिम बच्चों को मदरसों से निकालकर औपचारिक स्कूलों में दाखिल कराएं और मदरसा बोर्डों की फंडिंग को रोक दें.

मदरसा शिक्षा व्यवस्था के भविष्य पर सवाल कितना सही?

यह को कोई पहली रिपोर्ट नहीं है, NCPCR के अलावा भी पहले कई बार मदरसा शिक्षा प्रणाली के भविष्य पर सवाल खड़े कर दिए हैं. आयोग ने यह स्पष्ट किया है कि बिना मानकीकृत पाठ्यक्रम और योग्य शिक्षकों के मदरसे बच्चों के अधिकारों का उल्लंघन कर रहे हैं, और इस कारण मदरसा बोर्डों को बंद करना जरूरी हो गया है. अब देखना यह है कि राज्य सरकारें इस सिफारिश पर क्या कदम उठाती हैं?