क्यों माता सीता ने किया था भगवान राम के पिता दशरथ का पिंडदान?

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नई दिल्ली डेस्क: भारतीय साहित्य और पौराणिक कथाओं में नदियों को महत्वपूर्ण भूमिका मिलती है, और अन्य घटित घटनाओं का परिणाम इनकी महत्वपूर्णता को और भी बढ़ा देता है। बिहार की फाल्गु नदी भी एक ऐसी ही कहानी से जुड़ी हुई है, जिसमें एक अत्यंत प्राचीन और शापित धारा का परिचय होता है। फाल्गु नदी के बारे में भी एक ऐसी कहानी है, जिसके प्रमुख पात्र भगवान श्रीराम और माता सीता हैं।

भारतीय संस्कृति में श्राद्ध और पिंडदान की महत्वपूर्ण भूमिका है। यह सनातन धर्म में पितृदेवों के प्रति आदर और श्रद्धांजलि का प्रतीक माना जाता है। हिन्दू संस्कृति में आज भी श्राद्ध का महत्व अत्यधिक है और यह पूर्वजों की यादों को समर्पित करने का एक विशेष तरीका है।

फल्गु नदी की मान्यता

गया क्षेत्र में फल्गु नदी की महत्वपूर्ण भूमिका है, जहाँ परंपरागत रूप से श्राद्ध का आयोजन किया जाता है। यहाँ की मान्यता है कि फल्गु नदी के किनारे किए गए श्राद्ध से पितृदेवों को सीधे स्वर्ग का मार्ग मिलता है। इसी कारण से यह जगह परंपरागत रूप से एक महत्वपूर्ण श्राद्ध स्थल मानी जाती है।

क्यों माना जाता है श्रापित?

हालांकि इसी नदी को एक श्रापित नदी भी माना जाता है। बिहार के गया क्षेत्र में फल्गु नदी के पास की एक पौराणिक कथा के अनुसार, माता सीता ने दशरथ के श्राद्ध के दौरान उनका पिंडदान किया था।

लेकिन उनके बड़े बेटे राम और लक्ष्मण उनके साथ नहीं थे क्योंकि दोनों उस वक़्त अपने पिता दशरथ के श्राद्ध का सामान लेने गए थे। जिसके बाद श्राद्ध का समय जाता देख, सीता माता ने फल्गु नदी की रेत से पिंड बनाए और पिंडदान कर दिया।

सीता माता ने गुस्से में दिया था श्राप

इस पिंडदान का साक्षी माता ने वहां मौजूद फल्गु नदी, गाय, तुलसी, अक्षय वट और एक ब्राह्मण को बनाया. लेकिन फल्गु नदी ने भगवान राम और लक्ष्मण के वापस आने के बाद, उनके गुस्से से बचने के लिए झूठ बोल दिया। तब माता सीता ने गुस्से में आकर नदी को श्राप दिया और तब से ये नदी भूमि के नीचे बहती है।

यह कथा भारतीय पौराणिक साहित्य की एक महत्वपूर्ण रूपरेखा है जो माता सीता के परिणामों और उनके प्रति भक्ति की गहरी प्रतिष्ठा को प्रकट करती है। यह कथा भी दिखाती है कि पर्वतीय क्षेत्रों में नदियों के महत्व को कैसे संजोने का प्रयास किया जाता है और उन्हें किस प्रकार से एक महत्वपूर्ण संस्कृतिक स्थल के रूप में स्वीकारा जाता है।

लेखक: करन शर्मा