नई दिल्ली: एक लड़का जो दिल्ली (Delhi) की वीआईपी (VIP) कोठियों में दूध (Milk) बेचा करता था। उस युवा ने अपने करियर की शुरुआत में ही वायुसेना अध्यक्ष (Chief of the air force) बनने का ख्वाब देखा लिया था। वो पायलट जो राजनीतिक समर में उतरने के लिए चुनावी हलफनामा दाखिल करने पहुंचा था। लेकिन, उससे पहले उसे एक और हलफनामा नाम बदलवाने के लिए देना पड़ा था।
हम बात कर रहे हैं सचिन पायलट के पिता राजेश पायलट की। आज हम राजेश पायलट के संघर्ष, चुनौती, उपलब्धि, बगावत, अदावत और फिर मौत की कहानी आपको बताएंगे। पहले बता दें कि आज उनकी 95वीं जयंती है और इस मौके पर हम आपके सामने उनसे जुड़ी कुछ खास बातों का जिक्र करेंगे। राजेश पायलट, संजय गांधी के भी करीबी रहे और राजीव गांधी के भी। वे राजेश पायलट ही थे जो 23 जून 1980 को संजय गांधी के साथ उड़ान भरने वाले थे। लेकिन, किसी वजह से नहीं जा सके। ठीक 20 साल बाद उनकी एक सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई।
राजेश पायलट के बाद उनके बेटे ने ली कांग्रेस में जगह
कांग्रेस में जैसे संजय गांधी और राजीव गांधी के करीबी राजेश पायलट हुआ करते थे। वैसे ही, आज की कांग्रेस में उनके बेटे सचिन पायलट, राहुल गांधी के सबसे करीबी माने जाते हैं, या यूं कहें कि उनके खास सिपहसालार माने जाते हैं। नेता जिनका बेटा इन दिनों राहुल गांधी का खास सिपहसालार माना जाता है।
कौन थे राजेश पायलट?
उनका पूरा नाम राजेश्वर प्रसाद बिधूड़ी था। जिन्हें राजेश पायलट के नाम से खास पहचान मिली। राजेश पायलट ने खेलने-कूदने की उम्र में ही कुछ कर गुजरने की ठान ली थी। उनका जन्म 10 फरवरी 1945 को गाजियाबाद के पास वैदपुरा गांव में एक साधारण किसान परिवार के घर में हुआ।
उनका बचपन संघर्षों भरा बीता। क्योंकि, 10 वर्ष की उम्र तक साधारण जीवन जीने वाले राजेश्वर प्रसाद के परिवार पर अब संकट आ चुका था और ये संकट था। उनके पिता का आकस्मिक देहांत होना। पिता की मृत्यु के बाद परिवार के दायित्व की जिम्मेदारी राजेश्वर प्रसाद उर्फ राजेश पायलट के कंधों पर आ गई। उनके परिवार में माता, विवाह योग्य दो बहनें और एक छोटे भाई था। यहीं कारण था कि राजेश्वर प्रसाद बहुत कम उम्र में ही जिम्मेदारियों के बोझ तले दब गए।
10 साल की उम्र में बेचा करते थे दूध
राजेश्वर प्रसाद उन हालातों से नहीं हारे और शिक्षा पूरी करने की लगन और कुछ कर गुजरने की चाहत लिए राजेश्वर प्रसाद को गाँव छोड़कर दिल्ली आना पड़ा। जहां, उनके चचेरे भाई की दूध की डेरी थी। राजेश्वर प्रसाद 10 साल की उम्र में कई किलोमीटर नंगे पैर पैदल चलकर अपने स्कूली दिनों में दूध बेचा करते थे। राजेश सुबह जल्दी उठते, दूध निकालते और मंत्रियों की कोठी में दूध देने जाते। उसके बाद स्कूल जाते थे।
संघर्षपूर्ण रहा शिक्षा का सफर, मगर फिर भी नहीं मानी हार
राजेश्वर प्रसाद मंदिर मार्ग के म्यूनिसिपिल बोर्ड स्कूल में पढ़ाई की। ये वो कठिन समय था जब, राजेश्वर प्रसाद को लालटेन (छत का रोशनदान) के नीचे बैठकर पढ़ाई करनी पड़ी। लेकिन, ये पीछे नहीं हटे और दोनों बहनों की शादी करने के अलावा छोटे भाई को भी शिक्षा दिलवाई।
लेकिन, दुर्भाग्यवश छोटे भाई की आकस्मिक म्रत्यु ने इनको अंदर से तोड़ दिया। परिवार की जिम्मेदारी संभालते और दूध सप्लाई का काम करते-करते ही इन्होंने अपनी ग्रेजुएशन पूरी की और सगे भाई से ज्यादा मानने वाले इनके चचेरे भाई नत्थी सिंह ने इनका पूरा सहयोग किया और ये एयर फोर्स में भर्ती हो गए।
भारत-पाक युद्ध 1971 में जीता बहादुरी का पदक
वायु सेना में प्रशिक्षण के बाद वे लड़ाकू विमान के पायलट बने और फिर पंद्रह वर्षो की अथक मेहनत के बाद प्रमोशन पाकर स्क्वार्डन लीडर बन गए। उन्होंने 1971 के भारत-पाक युद्ध में भी भाग लिया और बहादुरी के लिए उन्हें पदक भी मिला। अपने करियर की शुरुआत में वो वायुसेनाध्यक्ष बनने के ख़्वाब देखा करते थे।
एक बार वायुसेनाध्यक्ष एयर चीफ़ मार्शल अर्जन सिंह को लोगों के सीने और कंधों पर विंग्स और स्ट्राइप्स लगाते देख राजेश पायलट ने कहा था कि, एक दिन मैं इस पद पर पहुंचूंगा और मैं भी इनकी तरह लोगों के विंग्स और स्ट्राइप्स लगाऊंगा। ये बातें एयरफोर्स के दिनों की है। लेकिन जैसे-जैसे साल बीतता गया पायलट एक के बाद तरक्की की सीढ़ियां चढ़ते गए।
वायुसेना की नौकरी छोड़ राजनीति में कूदे राजेश्वर प्रसाद
1980 के लोकसभा चुनाव के दौरान राजेश पायलट ने मन बनाया कि, वो वायुसेना की नौकरी छोड़ कर लोकसभा का चुनाव लड़ेंगे। जिसके बाद उन्होंने वायुसेना की नौकरी छोड़ दी। राजेश पायलट की पत्नी रमा पायलट की किताब “राजेश पायलट-अ बायोग्राफ़ी” के अनुसार, राजेश सीधे इंदिरा गांधी के पास जा कर बोले कि, वो तत्कालीन प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के खिलाफ बागपत से चुनाव लड़ना चाहते हैं।
इंदिरा गांधी ने कहा कि मैं आपको सलाह नहीं दूंगी कि आप राजनीति में आए। कांग्रेस की पहली लिस्ट में राजेश्वर प्रसाद का नाम नदारद था। तभी एक दिन फोन की घंटी बजी और फोन उनकी पत्नी ने उठाया, दूसरे ओर से आवाज आई कि राजेश्वर प्रसाद हैं? जिसके जवाब में उनकी पत्नी ने कहा कि, वो किसी काम से बाहर गए हुए हैं।
कैसे बने राजेश्वर प्रसाद से राजेश पायलट
फोन पर संजय गांधी थे। उन्होंने कहा कि, उनसे कहिएगा कि उन्हें संजय गांधी ने बुलाया है। कांग्रेस दफ़्तर पहुंचे तो संजय गांधी ने बताया कि, आपके लिए इंदिरा जी का संदेश है कि आपको भरतपुर से चुनाव लड़ना है। जब राजेश्वर प्रसाद भरतपुर पहुंचे, तो वहां लोगों ने उन्हें पहचानने से इंकार कर दिया।
उन्होंने कहा कि हमें तो कहा गया है कि कोई पायलट पर्चा दाखिल करने आ रहा है। बहुत समझाने की कोशिश की कि, वो ही पायलट हैं, लेकिन किसी ने उनकी बात नहीं सुनी। संजय गाँधी का फ़ोन आया। उन्होंने कहा कि सबसे पहले कचहरी जाओ और अपना नाम राजेश्वर प्रसाद से बदलवा कर राजेश पायलट करवाओ।
भरतपुर सीट से महारानी को हराकर मंत्री बने
जिसके बाद पायलट ने भरतपुर की सीट से वहां के राजपरिवार की सदस्य महारानी को हराकर पहला चुनाव जीता और यही वो वक्त था जब पायलट ने राजनीति की दुनिया में अपना पहला कदम रखा। इसके बाद उन्होंने कई चुनाव जीते 1991 में टेलिकॉम मिनिस्टर बनें, 1993 से 1995 तक आंतरिक सुरक्षा मंत्री रहे।
एक सड़क हादसे में हो गई थी राजेश पायट की मौत
ये समय उनके सुनहरे दिन की कहानी कहता है। लेकिन, वक्त कब और कहां, किस मोड़ पर ले आए। कोई नहीं जानता और हुआ भी यही। गर्मी की आहट और फागुन के चढ़ते दिनों में राजेश पायलट अपनी जिंदगी की जंग हार गए। वो एक सड़क हादसे का शिकार हो गए और उनकी मौत हो गई।
Written by:- Sarfaraz Saifi, Vice President News