जोधपुर। एक तरफ भारत में धारा 370 हटने की खुशी है, तो कहीं अमृत उत्सव मनाया जा रहा है. हर कहीं आजादी का जश्न मनाया जा रहा है. मगर जोधपुर के माचिया किले में स्वाधीनता की लड़ाई लड़ने वाले वीर आज भी गुमनाम स्थिति में है. स्वतंत्रता सैनानी एक वीराने और सुनसान किले में सिर्फ तस्वीर बन कर रह गए हैं. जहां प्रशासन को केवल साल में एक बार ही इन सेनानियों की याद आती है.
कभी-कभी इन तस्वीरों पर लगे जाले और धूल साफ़ की जाती है, लेकिन न तो यहां साफ-सफाई के पुख्ता इंतजाम है, ना ही तस्वीरों को रखने की व्यवस्था. देश के आजादी के परवानो की यातनाओं की गूंज माचिया किले की दीवारों में दबकर रह गई है. विकास के शोर में आजादी के परवानों की शहादत की आवाजें सुनाई नहीं देती. माचियां जैविक पार्क में पर्यटकों को लुभाने के लिए सब तरह की व्यवस्थाएं है लेकिन इस पार्क से ठीक थोड़ा ऊपर की माचिया किला भी है.
इस किले के बाल बदहाल है. यह उस समय की एक जैल है जहां स्वतंत्रता सैनानी कभी अंग्रेजी सरकार से यातनाएं सहन करते थे. हमें आजादी दिलाने वाले ‘स्वतंत्रता सेनानियों’ का इतिहास भुलाकर इसे सिर्फ एक फोटो गैलरी के रूप में छोड़ दिया है. माचिया किले का विकास बस कागजों में योजना ही बन कर रह गया है.
यह है जोधपुर का ऐतिहासिक माचिया किला. इस किले ने एक समय आज़ादी के परवानों की चीखे सुनी है, अंग्रजो द्वारा इसी किले में आजादी के दीवानों को बन्धक बना उन्हें यातनाएं दी जाती थी. इन ऊंची दीवारों के पीछे ना जाने कितने लोगों ने देश को गुलामी से मुक्त करवाने में यातनाएं सहते-सहते तड़प-तड़प कर दम तोड़ दिया.
उन वीरों ने अपने प्राणों की आहुति दी ताकि आने वाले पीढ़ी आजादी की रोशनी को देख सके. ऐसे महान स्वतंत्रता सेनानियों की यह जगह लावारिश हालत में पड़ी है. हालांकि सरकार इसे ऐतिहासिक किला बताकर ट्यूरिस्ट स्पॉट के रूप में डवलप करने के प्रयास भी नही कर रही है, लेकिन यहां देश के लिए कुर्बान होने वाले शहीदों की शहादत को भुलाया जा रहा है.
(रिपोर्ट- नवीन दत्त)