आदित्य एल1 सूर्य के अध्ययन के लिए हुआ रवाना, जानिए कैसे करेगा अपना काम?

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नई दिल्ली: चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग के तुरंत बाद ही ISRO ने सूर्य के अध्ययन के लिए आदित्य एल1 मिशन को लॉन्च कर दिया है। भारत का ये पहला सूर्य मिशन है, जो लैगरेंज प्वाइंट यानी L1 पर स्थापित होगा और वहीं से ही सूर्य से जुड़े कुछ रहस्यों को उजागर करेगा।

जैसे कि, सौर तूफानों के आने की मुख्य वजह क्या है? इन तूफानों से उठने वाली सौर लहरों का धरती के वायुमंडल पर क्या असर पड़ता है? लेकिन एक बड़ा सवाल ये है कि आदित्य एल1 को लैगरेंज प्वाइंट पर ही क्यों स्थापित किया जा रहा है?

बता दें कि लैगरेंज प्वाइंट एक ऐसी जगह है जहां पर पृथ्वी और सूर्य का गुरुत्वाकर्षण बल बराबर होता है। यही कारण है कि इसरो ने इस प्वाइंट को सूर्य की स्टडी के लिए चुना है। क्योंकि L1 पर न्यूट्रल प्वाइंट बनने के कराण यहां पर अंतरिक्ष यान के ईंधन की खपत बहुत ही कम हो जाता है। इस जगह का नाम फ्रांस के महान गणितज्ञ जोसेफ लुईस लैगरेंज के नाम पर पड़ा। क्योंकि इन्होंने ही 18वीं सदी में इस बिंदु की खोज की थी।

इस बात में कोई शक नहीं है कि भारत अब एक और नई इबारत लिखने वाला है। इसका काउंटडाउन आदित्य एल1 की लॉन्चिंग के बाद से ही शुरू हो चुका है। चांद से करीब 4 गुना अधिक दूरी तय करके आदित्य एल1 लैगरेंज प्वाइंट तक पहुंचेगा।

आदित्य एल1 सूर्य तक कितने समय में पहुंचेगा?

पृथ्वी से लैगरेंज प्वाइंट तक की दूरी को तय करने के लिए आदित्य एल1 को 125 दिनों का वक्त लगेगा। क्योंकि ये दूरी पृथ्वी से करीब 15 किलोमीटर है, जोकि सूर्य से पृथ्वी की दूरी की तुलना में 1 फीसदी है। यानी के आदित्य सूर्य से करीब 1 फीसदी दूर (पृथ्वी और सूरज की दूरी का एक फीसदी) रहकर जानकारी इकट्ठा करेगा। वैज्ञानिकों ने इसे ऐसे डिजाइन किया है कि ये करीब 5 वर्षों तक अपनी सेवाएं देता रहेगा।

सबसे बड़ी चिंता की बात तो ये है कि सूर्य की सतह से थोड़ा, जिसको फोटोस्फेयर कहा जाता है। उसका तापमान करीब 5500 डिग्री सेल्सियस रहता है। वहीं अगर उसके केंद्र के तापमान की बात करें, तो उसका तापमान 1.50 करोड़ डिग्री सेल्सियस रहता है। इतना तापमान कि किसी भी चीज को पल भर में ही जलाकर राख कर दे। ऐसे में किसी स्पेसक्राफ्ट का वहां जाना संभव नहीं है। क्योंकि इंसानों के द्वारा बनाई गई कोई भी वस्तु ऐसी नहीं है जो इस गर्मी को बर्दाश्त कर सके। यही कारण है कि आदित्य एल1 को लैगरेंज प्वाइंट पर स्थापित कराया जाएगा।

इस मिशन में कितना खर्च आएगा?

वैसे तो इसरो ने आदित्य एल1 मिशन की लागत के बारे में अभी तक किसी प्रकार की कोई जानकारी नहीं दी है। लेकिन भारत सरकार ने जिस वक्त 2019 में प्रोजेक्ट को मंजूरी दी थी। उस वक्त इस प्रोजेक्ट की अनुमानित लागत 4.6 करोड़ डॉलर के करीब रखी गई थी। वैसे इस मिशन की लागत बढ़ भी सकती है। क्योंकि इस प्रोब को इसरो ने इस लायक बनाया है कि वो करीब 5 साल तक अंतरिक्ष में रह सकता है।

जानिए कैसे काम करेगा आदित्य एल1 और उसमें लगे पैलोड्स?

आदित्य एल1 का काम आसान बनाने के लिए इसमें 6 पैलोड्स को लगाया गया है। चलिए जानते हैं कौन क्या काम करेगा…

  1. SUIT यानी सोलर अल्ड्रावायलेट इमेजिंग टेलिस्कोप- SUIT सूर्य के फोटोस्फेयर और क्रोमोस्फेयर इमेजिंग करेगा, जिसको आप नैरो या ब्रॉडबैंड इमेंजिंग भी कह सकते हैं।
  2. SOLEXS यानी सोलर लो एनर्जी एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर- ये सूर्य से निकलने वाली सॉफ्ट एक्स-रे किरणों की स्टडी करेगा।
  3. HEL10S यानी हाई एनर्जी L1 ऑर्बिटिंग एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर- ये सूर्य से निकलने वाली हार्ड एक्स-रे किरणों की स्टडी करेगा।
  4. ASPEX यानी आदित्य सोलर विंड पार्टिकल एक्सपेरिमेंट- ये पैलोड्स सूर्य की हवाओं, प्रोटॉन्स और भारी आयन की दिशाओं की स्टडी करेगा।
  5. PAPA यानी प्लाज्मा एनालाइजर पैकेज फॉर आदित्य- ये सूर्य की हवाओं में मौजूद इलेक्ट्रॉन्स की स्टडी करेगा।
  6. एडवांस्ड ट्राई-एक्सियल हाई रेजोल्यूशन डिजिटल मैग्नेटोमीटर्स- ये एक ऐसा मीटर है, जो सूरज के चारों तरफ मैग्नेटिक फील्ड की स्टडी करेगा।

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