Economic Corridor: क्या है इंडिया-मिडिल ईस्ट-यूरोप मेगा कॉरिडोर? भारत को होगा नुकसान या फायदा?

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नई दिल्ली/डेस्क: भारत-मध्य पूर्व-यूरोप कॉरिडोर के बारे में बात करने से पहले आप इस दिलचस्प सवाल का जवाब दीजिए। आप हमें बताएं कि G20 में अब तक सबसे ज्यादा पैसा किस देश ने खर्च किया है?

बेशक, आपके मन में भी अमेरिका का ख्याल आया होगा, क्योंकि यह पूरी दुनिया का सबसे अमीर देश है। या फिर भारत का नाम आया होगा। लेकिन आप उस देश को भूल गए, जिसे इस बार जी20 में भी पूरी तरह भुला दिया गया। शी जिनपिंग के चीन ने G 20 पर अब तक का सबसे ज्यादा पैसा खर्च किया है।

भारत क्यों बना इसका हिस्सा?

हम सड़कों से लेकर रेलवे तक को भारत-मध्य पूर्व-यूरोप कॉरिडोर में विकसित करेंगे। अगर आप सभी इस कॉरिडोर पर ध्यान देंगे, तो आपको पता चलेगा कि इसके किनारे पर एक स्विस नहर है।

अब जरा सोचिए कि आप मुंबई से जहाज में सारा सामान लादेंगे और फिर उसे दुबई, सऊदी, जॉर्डन, इजराइल और यूरोप में लोड और अनलोड करेंगे तो आपके सामान के निर्यात की लागत अपने आप बढ़ जाएगी।

लेकिन अगर हम उपलब्ध मार्ग, यानी स्विस नहर का उपयोग करते हैं, तो आपको केवल एक बार अनलोडिंग प्रक्रिया का पालन करना होगा और सड़क और रेलवे की तुलना में समुद्री परिवहन हमेशा बहुत सस्ता होगा।

लेकिन अब सवाल ये है कि भारत ऐसा क्यों कर रहा हैं? देखिए, इसकी दो बड़ी वजहें हैं, एक रूस से दोस्ती और दूसरी चीन से दुश्मनी।

देखिए, G20 में हर पश्चिमी देश इस मंच का इस्तेमाल रूस के खिलाफ करने की कोशिश कर रहा था, लेकिन भारत सहमत नहीं था, और चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का मुकाबला करने के लिए इस कॉरिडोर को का भी खूब आयात किया जा रहा है।

अगर भारत को अपनी शर्तें मनवानी थी, तो उसे भी अन्य देशों की भी शर्तों को मानना पड़ेगा। अब चाहे यह महंगा पड़ा या सस्ता, लेकिन दिल्ली डेक्लेरेशन में बाकी सभी देशों को मना लेना एक बड़ी उपलब्धि है, जिसे भविष्य में शायद ही कोई अन्य देश हासिल कर पाएगा।

लेखक: करन शर्मा