आखिर क्यों मनाया जाता है करवाचौथ? जानें मां करवा की कहानी

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नई दिल्ली/डेस्क: करवाचौथ एक परंपरागत त्योहार है, जो भारतीय महिलाएं बड़े श्रद्धा भाव से मनाती हैं। इस दिन पतिव्रता स्त्रियां अपने पति की लंबी आयु और उनके स्वास्थ्य के लिए कठोर उपवास करती हैं। करवाचौथ व्रत पौराणिक मान्यताओं और शास्त्रों के अनुसार महत्वपूर्ण है। इस दिन, महिलाएं चंद्रपूजन के समय करवा की व्रत कथा सुनकर व्रत करती हैं। इसके माध्यम से वे अपने पति की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य की कामना करती हैं। इस व्रत का पालन करने से, वे अपनी मनोकामनाओं को पूरा करने की आशा करती हैं।

मां करवा की कहानी

एक समय की बात है, एक ख्याती प्राप्त साहुकार थे। उनके सात बेटे और एक बेटी थी। इन सात भाइयों की एकमात्र बहन का नाम करवा था, और वह सारे भाइयों की लाडली थी, और सभी मिलकर एक साथ भोजन करते थे। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दिन, साहुकार की सारी बहुएं और बेटी ने करवाचौथ का व्रत धारण किया। रात होने पर, सभी भाई खाना खाने बैठे।

तब छोटे भाई ने अपनी बहन से खाना खाने का कहा, लेकिन बहन ने बताया कि वह चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही खाना खाएगी। यह व्रत निर्जला व्रत है, जिसमें सुबह से रात तक बिना अन्न और पानी के रहना होता है। बहन की निर्जला व्रत की हालत देखकर छोटे भाई को दुख हुआ, और उसने एक खास तरकीब आजमाई। उसने एक दीपक को चलनी की ओट में जलाकर रख दिया, जो चांद की तरह चमक रहा था।

जिसे देख, करवा अर्घ्य देकर खाना खाने बैठ जाती है। लेकिन खाने के पहले टुकड़े को खाने पर उसे अचानक छींक आती है। फिर दूसरे टुकड़े में उसके बाल आ जाते हैं, और तीसरे टुकड़े को खाते ही उसे अपने पति की मृत्यु की ख़बर मिलती है। इस दुखद समाचार से वह गहरे शोक में डूब जाती है।

मां करवा की प्रतिज्ञा

इस समय, करवा की भाभी उन्हें अपने भाई द्वारा बनाए गए दीपक के चंद्रमा के बारे में बताती है और कहती है कि व्रत के टूटने की वज़ह से देवता नाराज हो गए हैं। इस ख़बर से दुखी होकर, करवा ने अपने पति के अंतिम संस्कार को नहीं करने का निश्चय किया और अपने सतीत्व से उन्हें पुनः जीवित करने का प्रण लिया।

इस प्रकार, पूरे एक वर्ष तक, करवा अपने पति के शव के पास बैठकर देखभाल करती रहती है, और पति के ऊपर उगने वाली सुईनुमा घांस को एकत्र करती रहती है। एक वर्ष बाद, करवाचौथ आने पर वह व्रत रखती है और शाम को करवाचौथ की पूजा करने वाली सुहागिन महिलाओं से अनुरोध करती है, ‘यम सूई ले लो – पिय सूई दे दो’, अपनी तरह सुहागिन बनाने के लिए। उसकी यह बात सुहागिन महिलाएं नहीं मानती हैं, और अनुरोध के बाद भी मानने से इनकार करती हैं।

अंततः, बहुत अनुरोध के बाद, एक सुहागिन मान जाती है, और उसका व्रत पूर्ण हो जाता है और उसके पति को जीवन मिल जाता है। इस कहानी को व्रतियों द्वारा अलग-अलग संदर्भ में भी पढ़ा जाता है, और इसमें अंश विभिन्न हो सकते हैं।

नोट: इस कहानी की सम्पूर्ण जानकारी पौराणिक मान्यताओं और कहानियों पर आधारित है, और इसकी सत्यता और किसी तरह के तथ्यों की पुष्टि नहीं की जा सकती।

लेखक: करन शर्मा