भारत का अनोखा मंदिर जहां देवी-देवताओं से पहले होती है कुत्तों की पूजा

Published
भारत का अनोखा मंदिर जहां देवी-देवताओं से पहले होती है कुत्तों की पूजा

नई दिल्ली। केरल के कन्नूर में वलपट्टणम नदी के किनारे स्थित श्री मुथप्पन मंदिर देखने में जितना खूबसूरत है यहां की परंपरा उतनी ही अनोखी भी है.

श्री मुथप्पन देव है इष्टदेव

स्थानीय मान्यता के अनुसार श्री मुथप्पन देव यहां के इष्टदेव हैं. क्षेत्रीय लोग श्री मुथप्पन देव को लोकदेवता मानते हैं जो वेदिक देव नहीं माने जाते हैं. हालांकि कुछ लोग श्री  मुथप्पन देव को भगवान विष्णु और शिवजी से भी जोड़ कर देखते हैं.

पहले कुत्ते को लगता है भोग

पश्चिमी घाट से बहने वाली वलपट्टनम नदी के तट पर एक पारसिनी मंदिर है. जिसे मंदिर के द्वार के बाहर पहरा देने वाली कुत्तों की दो कांस्य प्रतिमाओं से पहचाना जाता है. भक्तों का मानना है कि कुत्ता मंदिर के देवता श्री मुथप्पन का पसंदीदा जानवर है. हर दिन, जब पुजारी प्रार्थना समाप्त कर लेता है और प्रसाद तैयार हो जाता है, तो उसे सबसे पहले कुत्ते को परोसा जाता है.

ये भी पढ़ें : Gujarat News: मेहसाणा में मिट्टी धंसने से बड़ा हादसा, 6 मजदूरों की मौत; राहत और बचाव कार्य जारी

इसके अलावे मंदिर में हर सुबह और शाम को कुत्तों को खिलाने का एक समारोह होता है. जिसमें मुख्य रूप से सूखी मछली से भोजन बनाया जाता है. मंदिर में एक दशक से अधिक समय से काम कर रहे मदप्पुरा बताते हैं कि मंदिर परिसर और आस-पास के कुत्ते न्योत्तु के लिए खुद आते हैं. वे जानते हैं कि कब भोजन का समय है.

प्रसाद के रूप में मूंग की दाल के साथ में मिलती है चाय

प्रसाद के रूप में मिलने वाला प्रसादम यहां बहुत लोकप्रिय है. जिसमें उबला हुआ साबुत मूंग की दाल के साथ में चाय दी जाती है. यहां आने वाले सभी भक्तों को निःशुल्क भोजन के साथ आवास भी मुहैया कराया जाता है.

क्या है पारसनी मंदिर का इतिहास

पारसनी मंदिर का इतिहास मालाबार क्षेत्र में प्रचलित दमनकारी रीति-रिवाजों से जुड़ा है. कहा जाता है कि सदियों से निचली जातियों के लोगों को समाज में सम्मान और स्वतंत्रता से वंचित रखा गया. जिससे श्री मुथप्पन लोगों को मुक्ति दिलाई. श्रद्धालु श्री मुथप्पन को हाशिये पर रहने वाले लोगों के मुक्तिदाता के रूप में देखते हैं. पौराणिक कथाओं के अनुसार, कुत्ते श्री मुथप्पन से अविभाज्य है क्योंकि वे सामाजिक बुराइयों से लड़ने के लिए ही मालाबार क्षेत्र में आए थे.

-गौतम कुमार