हिंडनबर्ग मामले में सुप्रीम कोर्ट का बड़ा सवाल, “अडानी के खिलाफ क्या सबूत?”

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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने आज जॉर्ज सोरोस द्वारा वित्त पोषित समूह की उस रिपोर्ट से जुड़े मामले में याचिकाकर्ताओं के खिलाफ कड़े सवाल उठाए, जिसमें अडानी समूह को निशाना बनाया गया था।

इस दौरान भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत भूषण से कहा कि, “हमें विदेशी रिपोर्टों को सच क्यों मानना चाहिए? हम रिपोर्ट को खारिज नहीं कर रहे हैं, लेकिन हमें सबूत चाहिए। तो आपके पास अडानी समूह के खिलाफ क्या सबूत है?” न्यायधीश ने आगे कहा कि, “किसी प्रकाशन के काम को सत्य का सुसमाचार नहीं माना जा सकता।”

अरबपति जॉर्ज सोरोस द्वारा वित्त पोषित संगठित अपराध और भ्रष्टाचार रिपोर्टिंग परियोजना (OCCRP) ने दो विदेशी निवेशकों के माध्यम से अदानी समूह में अंदरूनी व्यापार का आरोप लगाया था। अदानी समूह ने इन्हें “पुनर्नवीनीकरण आरोप” कहा है और सोरोस-वित्त पोषित हितों द्वारा विदेशी मीडिया के एक वर्ग द्वारा समर्थित “योग्य हिंडनबर्ग रिपोर्ट” को पुनर्जीवित करने के लिए एक और ठोस प्रयास कहा है।

सेबी ने भी रिपोर्ट को किया खारिज

पूंजी बाजार नियामक सेबी ने भी “विदेशी गैर-लाभकारी (एनजीओ)” से आई रिपोर्ट को अविश्वसनीय बताकर खारिज कर दिया है। सेबी ने कहा कि, “अगर हम ऐसी रिपोर्टों पर कार्रवाई करेंगे तो हमारी एजेंसियां क्या करेंगी? भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट को बताया, “विदेशी रिपोर्टों द्वारा भारतीय नीतियों को प्रभावित करने का एक नया चलन है।”

सेबी ने कहा कि उसने अधिक जानकारी के लिए OCCRP से संपर्क किया, लेकिन जॉर्ज सोरोस द्वारा वित्त पोषित गैर-लाभकारी संस्था ने नियामक को प्रशांत भूषण द्वारा संचालित एक एनजीओ से संपर्क करने के लिए कहा।

वहीं, तुषार मेहता ने कहा कि, “क्या आप इस तथाकथित जनहित याचिका में पेश होते हैं, एक रिपोर्ट तैयार करवाते हैं और स्रोत का खुलासा किए बिना यह पूछते हैं? मैं आपको शर्मिंदा नहीं करना चाहता था। लेकिन यह हितों का टकराव है।”

24 में से 22 मामलों की जांच पूरी

सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर सेबी इस बात की जांच कर रही है कि क्या हिंडनबर्ग रिपोर्ट आने से पहले और बाद में कोई उल्लंघन हुआ था। इसपर मेहता ने कहा कि सेबी ने संदिग्ध लेनदेन के 24 मामलों में से 22 की जांच पूरी कर ली है, और शेष दो के लिए विदेशी एजेंसियों से जानकारी की प्रतीक्षा की जा रही है।

सुप्रीम कोर्ट ने प्रशांत भूषण की उस दलील को भी खारिज कर दिया, जो निवेशकों की सुरक्षा के लिए भारत के नियामक तंत्र पर गौर करने वाली अदालत द्वारा नियुक्त समिति पर संदेह पैदा करती दिखाई देती थी।

प्रशांत भूषण की इस दलील पर कि विशेषज्ञ समिति के कुछ सदस्यों ने अडानी समूह के लिए काम किया था, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पैनल का गठन उसने किया था, अडानी ने नहीं। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि, “अगर कोई वकील 2006 में अडानी के लिए पेश हुआ, तो हम 2023 में उससे पूछताछ नहीं कर सकते। समिति पर संदेह उठाना अनुचित होगा। क्या किसी आरोपी के वकील को कभी जज नहीं बनाया जाएगा? आपको आरोप लगाते समय सावधान रहना चाहिए। किसी पर भी आरोप लगाना आसान है।”

बता दें कि समिति ने मई में सुप्रीम कोर्ट को सौंपी अपनी रिपोर्ट में अडानी ग्रुप को क्लीन चिट दे दी थी। इसमें कहा गया था कि सेबी की ओर से कोई नियामक विफलता नहीं हुई है और अदानी समूह की ओर से कोई मूल्य हेरफेर नहीं हुआ है और समूह ने हिंडनबर्ग रिपोर्ट के प्रकाशन के बाद गंभीर बाजार उथल-पुथल के बीच खुदरा निवेशकों को आराम देने के लिए आवश्यक कदम उठाए हैं।