नेपाल को झुका नहीं पाया चीन, भारत से नहीं की गद्दारी

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नई दिल्ली/डेस्क: नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ ने 23 सितंबर को अपनी चीन यात्रा के दौरान कई महत्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर किये. साफ है कि भारत की लाख कोशिशों के बावजूद नेपाल चीन के साथ अपने रिश्ते मजबूत कर रहा है।

पिछले कुछ वर्षों में नेपाल और चीन के बीच व्यापार और निवेश भी बढ़ा है, लेकिन जब से चीन ने अपनी सीमाएं बंद करने का फैसला किया है, तब से नेपाली निर्यात प्रभावित होने लगा है।

क्यों भारत है महत्वपूर्ण?

भारत और नेपाल के बीच खुली सीमा होने के कारण व्यापार अच्छा होता है। भारत ने नेपाल से 10 हजार मेगावाट बिजली खरीदने का वादा किया है, जिससे न सिर्फ नेपाल का व्यापार संतुलन सुधरेगा बल्कि सरकारी खजाना भी भरेगा। आज नेपाल पेट्रोलियम की आपूर्ति के लिए पूरी तरह से भारत पर निर्भर है।

इतना ही नहीं, चीन चाहता था कि नेपाल उसके सैन्य गठबंधन जीएसआई में शामिल हो जाए लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इतना ही नहीं बीआरआई पर भी चीन को कोई खास सफलता नहीं मिली। लेकिन नेपाल ने ताइवान की आज़ादी का खुलकर विरोध किया।

शी जिनपिंग के सामने प्रचंड रहे नेपाली प्रधानमंत्री प्रचंड

अग्निपथ योजना के बाद भारतीय सेना में गोरखा सैनिकों की भर्ती रुकने का फायदा उठाते हुए, जुलाई 2023 में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने नेपाली सरकार को गोरखाओं की भर्ती पर विचार करने के लिए मनाने का प्रयास किया। लेकिन नेपाली सरकार ने इसे सख्ती से खारिज कर दिया।

नेपाल ने पिछले साल चीन को केवल 5.11 मिलियन डॉलर का सामान निर्यात किया, जो चीन के कुल निर्यात का 0.3% से भी कम है। इसलिए नेपाल चीन के साथ अपने संबंधों को और बेहतर बनाना चाहेगा।

लेकिन ऐसी स्थिति में नेपाल के लिए भारत और चीन दोनों के साथ समान संबंध बनाए रखना असंभव होगा। एक दशक पहले तक चीन ने नेपाल के साथ बढ़ते संबंधों को स्वीकार कर लिया था, लेकिन अब स्थिति बदल गई है।

लेखक: करन शर्मा

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