लंबी दूरी की हाइपरसोनिक मिसाइल का सफल परीक्षण, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने DRDO को दी बधाई

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Hypersonic Missile

Hypersonic Missile: रक्षा के क्षेत्र में भारत लगातार समय के साथ नए-नए आयाम स्थापित कर रहा है। डीआरडीओ ने रविवार को ओडिशा के तट पर एपीजे अब्दुल कलाम द्वीप से लंबी दूरी की हाइपरसोनिक मिसाइल का सफल परीक्षण किया। जिसके बाद केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने देश के पहले लंबी दूरी के हाइपरसोनिक मिशन के सफल उड़ान परीक्षण के लिए डीआरडीओ, सशस्त्र बलों और उद्योग को बधाई दी है.

भारत ने एक बड़ी उपलब्धि हासिल की- राजनाथ सिंह

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने एक्स पर पोस्ट कर कहा, ‘भारत ने ओडिशा के तट से दूर डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम द्वीप से लंबी दूरी की हाइपरसोनिक मिसाइल (Hypersonic Missile)का सफल परीक्षण करके एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है। यह एक ऐतिहासिक क्षण है और इस महत्वपूर्ण उपलब्धि ने हमारे देश को ऐसे चुनिंदा देशों के समूह में शामिल कर दिया है जिनके पास ऐसी महत्वपूर्ण और उन्नत सैन्य तकनीकें हैं।

डीआरडीओ की टीम को बधाई

राजनाथ सिंह ने लिखा, मैं डीआरडीओ की टीम को बधाई देता हूं। मैं अपनी शानदार उपलब्धियों के लिए हमारे सशस्त्र बलों और उद्योग जगत को बधाई देता हूं।’ दरअसल इस मिसाइल की टेस्टिंग DRDO और सशस्त्र बलों के वरिष्ठ साइंटिस्टों की मौजूदगी में किया गया है। यह परीक्षण हाइपरसोनिक (Hypersonic Missile) तकनीक और लंबी दूरी के हथियारों में भारत की क्षमताओं को दिखाता है।

आवाज की रफ्तार से पांच गुना स्पीड से भर सकती है उड़ान

वहीं, अगर हाइरपसोनिक मिसाइल (Hypersonic Missile)की खासियत की बात करें तो यह आवाज की रफ्तार से करीब (1235 किलोमीटर प्रति घंटे) से कम से कम पांच गुना स्पीड से उड़ान भर सकती है। इसकी न्यूनतम स्पीड 6174 किलोमीटर प्रति घंटा होती है। इतना ही नहीं यह मिसाइल क्रूज और बैलेस्टिक दोनो के फीचर्स से लैस है। यह अलग-अलग पेलोड ले जाने और किसी भी परिस्थितियों में ऑपरेशन को अंजाम देने में सक्षम है। लंबी दूरी की यह मिसाइल दुश्मन के रडार को चकमा देने की तकनीक से भी लैस है।

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मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, विश्व में इस समय हाइपरसोनिक मिसाइल की क्षमता सिर्फ पांच देशो अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस और भारत के पास ही है। हालांकि, ईरान की ओर से भी इस तरह की मिसाइलों के परीक्षण की जानकारी सामने आती रही है। इन देशों के अलावा, ब्रिटेन, इजरायल, ब्राजील और दक्षिण कोरिया में भी इस तकनीक को विकसित किया जा रहा है।

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