उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा कांवड़ यात्रा मार्ग पर दुकानदारों के नाम प्रदर्शित करने के आदेश पर विवाद बढ़ता जा रहा है। जमीयत उलेमा ए हिंद ने इस फैसले को भेदभावपूर्ण और सांप्रदायिक बताते हुए इसके खिलाफ कोर्ट जाने की बात कही है।
जमीयत उलेमा ए हिंद का विरोध
जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने इस आदेश को संविधान में निहित मौलिक अधिकारों का उल्लंघन बताया है। संगठन के प्रमुख मौलाना अरशद मदनी ने कहा, “यह भेदभावपूर्ण और सांप्रदायिक फैसला है। इससे राष्ट्रविरोधी तत्वों को फायदा उठाने का मौका मिलेगा और सांप्रदायिक सद्भाव को गंभीर नुकसान पहुंचेगा।” मदनी ने कहा कि संविधान में देश के सभी नागरिकों को पूरी आजादी दी गई है कि वे जो चाहें पहनें, जो चाहें खाएं और उनकी निजी पसंद में कोई दखल नहीं दे सकता।
कानूनी पहलुओं पर विचार
जमीयत उलेमा ए हिंद की कानूनी टीम इस आदेश के कानूनी पहलुओं पर विचार कर रही है। संगठन ने रविवार, 21 जुलाई को इस संबंध में अहम बैठक बुलाई है। जमीयत का कहना है कि वह इस आदेश को कोर्ट में चुनौती देने की तैयारी कर रही है।
मध्य प्रदेश में भी लागू करने की उठी मांग
नेम प्लेट विवाद के चलते मध्य प्रदेश में भी इस आदेश को लागू करने की मांग उठ रही है। भारतीय जनता पार्टी के एक विधायक ने मध्य प्रदेश में भी ऐसे कदम की आवश्यकता जताई है। वहीं, केंद्रीय मंत्री और हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के प्रमुख जीतन राम मांझी ने कहा कि उन्हें उत्तर प्रदेश में पुलिस द्वारा कांवड़ यात्रा मार्ग पर फल विक्रेताओं को अपनी दुकानों पर नाम लिखने के लिए कहने में कुछ गलत नहीं लगता।
सीएम योगी आदित्यनाथ के नेम प्लेट आदेश पर विवाद बढ़ता जा रहा है और इसे लेकर विभिन्न पक्षों की प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं। जमीयत उलेमा ए हिंद का मानना है कि यह आदेश भेदभावपूर्ण और सांप्रदायिक है, जिससे मौलिक अधिकारों का हनन हो रहा है। अब देखना होगा कि कोर्ट में इस पर क्या निर्णय लिया जाता है।