चीन और पाकिस्तान के मंसूबों पर कैसे पानी फेरेगा भारत?

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नई दिल्ली/डेस्क: 9 और 10 सितम्बर को दिल्ली में आयोजित जी-20 सम्मेलन के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बड़ी महत्वपूर्ण घोषणाएं की. इस सम्मेलन में भारत ने अफ्रीकी संघ को भी शामिल किया है, जिससे इसका महत्व और बढ़ गया है। साथ ही, इस सम्मेलन के पहले दिन ही एक और महत्वपूर्ण घोषणा की गई, जिसके तहत भारत ने भारत-पश्चिम एशिया-यूरोप इकोनॉमिक गलियारे का शुभारंभ किया है।

भारत-पश्चिम एशिया-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर

इस गलियारे को “इंडिया मिडिल ईस्ट यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर” के नाम से जाना जा रहा है और इसका मुख्य उद्देश्य भारत को पश्चिमी एशिया से यूरोप तक एक साथ जोड़ना है, जिससे आर्थिक एकीकरण और सतत विकास को बढ़ावा मिल सके।

इस गलियारे का महत्व इसलिए है क्योंकि यह दुनिया के व्यापार में बड़ा बदलाव ला सकता है। यहां तक कि इसके निर्माण से चीन के ‘बेल्ट एंड रोड’ को सीधा सीधा चुनौती मिलेगी, और यह दूसरे देशों के साथ भी बड़े बदलाव करेगा।

‘बेल्ट एंड रोड’ को मिलेगी कड़ी टक्कर

चीन ने साल 2013 में अपनी ‘बेल्ट एंड रोड’ पहल की शुरुआत की थी, जिसका उद्देश्य पूर्वी एशिया और यूरोप को जोड़ना था, लेकिन इसमें भारत के साथ अड़चनें थीं। इसके बाद, भारत ने ‘इंडिया मिडिल ईस्ट इकोनॉमिक कॉरिडोर’ के माध्यम से चीन के प्लान्स को चुनौती दी है।

इस परियोजना के माध्यम से चीन ने कई गरीब देशों को ‘ऋण के जाल’ में फंसाया है, जिन्होंने कर्ज लिया है लेकिन उसे चुका नहीं पा रहे हैं। इससे चीन का व्यापार और भू-राजनीतिक प्रभाव बढ़ रहा है, और अन्य देश इसे प्रतिस्पर्धी के रूप में देख रहे हैं।

इस गलियारे के निर्माण से भारत को चीन और पाकिस्तान के दबाव से मुक्ति मिलेगी, और यह भारतीय राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी महत्वपूर्ण है। इसके साथ ही, यह दुनिया के व्यापार के लिए भी एक महत्वपूर्ण रूट बनेगा।

भारत की विदेश नीति अब और भी आक्रामक होगी, और यह दुनिया में अपनी जगह बनाने में मदद करेगी। चीन के बढ़ते व्यापार और भू-राजनीतिक प्रभाव के समक्ष, अन्य देश चीन के साथ खड़े होने के खिलाफ हैं।

लेखक: करन शर्मा