यूं ही नहीं मैं नालंदा कहलाता हूँ , पढ़ें नालंदा विश्वविद्यालय का पूरा इतिहास !

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History Of Nalanda Univrsity: नालंदा विश्वविद्यालय भारतीय शैक्षिक इतिहास का एक महत्वपूर्ण और प्राचीन केंद्र था। इसे गुप्तकाल से लेकर पाल और सेना शासकों के समय तक विश्वविद्यालय के रूप में विकसित किया गया। नालंदा ने विश्वविद्यालयीन शिक्षा और धार्मिक ध्यान केंद्र के रूप में विख्यात होने के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण था।

नालंदा विश्वविद्यालय का स्थापना 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व में हुई थी। इसे मौर्य साम्राज्य के समय के सम्राट अशोक ने बौद्ध विद्यालय के रूप में स्थापित किया था। यह विश्वविद्यालय उस समय बौद्ध धर्म के समर्थन में एक महत्वपूर्ण केंद्र था, जहां बौद्ध धर्म, विज्ञान, और विद्या का अध्ययन किया जाता था।

विश्व का सबसे प्राचीन विश्वविद्यालय रहा है नालंदा विश्वविद्यालय

नालंदा का सबसे महत्वपूर्ण काल 7वीं से 12वीं शताब्दी तक रहा, जब यह विश्वविद्यालय अपनी अद्वितीय स्थिति में था। इस समय पर विश्वविद्यालय में आधुनिक शिक्षा के साथ-साथ ध्यान और धर्म के विशेष अध्ययन का माहौल था।

नालंदा विश्वविद्यालय की विस्तारवादी और अद्वितीय शैली ने इसे एक अंतर्राष्ट्रीय केंद्र बना दिया था, जहां विद्यार्थी और विद्वान् दुनिया भर से आते थे। इसके पास काफी बड़ी पुस्तकालय भी थी, जिसमें लाखों पुस्तकें होती थीं। नालंदा विश्वविद्यालय का अंत 12वीं शताब्दी में आया, जब मुसलमान सेना ने इसे नष्ट कर दिया। इसके बाद से ही इस विश्वविद्यालय का अस्तित्व समाप्त हो गया।

महान गणितज्ञ आर्यभट ने भी दिया था नालंदा विश्वविद्यालय में शिक्षा

गणित और खगोल विज्ञान की पढ़ाई में भी नालंदा विश्वविद्यालय ने खूब शोहरत बटोरी थी। नालंदा विश्वविद्यालय कैसा रहा था, इसका अनुमान इस बात से ही आप लगा सकते हैं कि भारत के महान गणित के जनक कहे जाने वाले आर्यभट्ट छठवीं शताब्दी में नालंदा विश्वविद्यालय के प्रमुख थे। कई इतिहासकारों के मुताबिक गणित और खगोल विज्ञान की तमाम थ्योरी नालंदा के जरिये ही पूरी दुनिया के दूसरे हिस्सों में पहुंची थी।

एक झटके में बख्तियार खिलजी ने कर दिया था बर्बाद

नालंदा विश्वविद्यालय के इतिहास को बर्बाद करने में बख्तियार खिलजी सबसे बड़ा हाथ था। नालंदा विश्वविद्यालय में साहित्य, ज्योतिष, मनोविज्ञान, कानून, खगोलशास्त्र, विज्ञान, युद्धनीति, इतिहास, गणित, वास्तुकला, भाषाविज्ञान, अर्थशास्त्र, चिकित्सा जैसे विषय पढ़ाए जाते थे। इस विश्वविद्यालय में एक ‘धर्म गूंज’ नाम की लाइब्रेरी थी, जिसका अर्थ ‘सत्य का पर्वत’ था। यह बिल्डिंग 9 मंजिला था और इसे तीन भागों में विभाजित किया गया था।

1193 में बख्तियार खिलजी के आक्रमण के बाद नालंदा विश्वविद्यालय को बर्बाद कर दिया गया था। यहां विश्वविद्यालय परिसर और खासकर इसकी लाइब्रेरी में आग लगाई गई, जिसमें पुस्तकालय की किताबें महीनों तक जलती रही।

लेखक – आयुष राज