मॉरीशस के लिए अमेरिका और ब्रिटेन से भिड़ा भारत, क्या है चागोस विवाद?

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चागोस द्वीप समूह विवाद: भारत का मॉरीशस को समर्थन

भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने हाल ही में मॉरीशस की दो दिवसीय यात्रा के दौरान चागोस द्वीप समूह के मुद्दे पर द्वीप देश को भारत के निरंतर समर्थन की पुष्टि की है। चागोस द्वीप समूह, जो हिंद महासागर में स्थित है, पिछले 50 वर्षों से लंदन और पोर्ट लुईस के बीच विवाद का विषय बना हुआ है। जयशंकर ने पोर्ट लुईस में कहा कि भारत उपनिवेशवाद के उन्मूलन और राष्ट्रों की संप्रभुता के लिए मॉरीशस का समर्थन करेगा।

इस यात्रा के दौरान, जयशंकर ने मॉरीशस के प्रधानमंत्री प्रविंद कुमार जगन्नाथ के साथ द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने पर चर्चा की। उन्होंने चागोस द्वीप समूह पर ब्रिटेन के कब्जे की आलोचना करते हुए मॉरीशस को आश्वासन दिया कि भारत इस मामले में उसके साथ है।

चागोस द्वीप समूह और विवाद का इतिहास

चागोस द्वीप समूह, जो 60 से अधिक द्वीपों का समूह है, मालदीव से लगभग 500 किलोमीटर दक्षिण में स्थित है। ब्रिटेन ने 1967 में इस द्वीप समूह को अमेरिका को एक सैन्य अड्डा स्थापित करने के लिए किराए पर दिया, जिसके बाद मॉरीशस ने अपनी संप्रभुता का दावा किया। 1968 में मॉरीशस को स्वतंत्रता मिली, लेकिन चागोस द्वीप समूह उसके साथ वापस नहीं किया गया।

1980 में, मॉरीशस ने इस मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र महासभा में उठाया। इसके बाद से विवाद बढ़ा और 2019 में इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (ICJ) ने ब्रिटेन को चागोस द्वीप समूह को मॉरीशस को लौटाने का निर्देश दिया, जिसे ब्रिटेन ने खारिज कर दिया।

ब्रिटेन और अमेरिका का रुख

ब्रिटेन चागोस द्वीप समूह पर अपने कब्जे का बचाव करते हुए दावा करता है कि मॉरीशस की इस पर कभी संप्रभुता नहीं रही। ब्रिटिश विदेश मंत्री ने हाल ही में चागोसवासियों के पुनर्वास की संभावना को खारिज किया है।

मॉरीशस का भारत के साथ गहरा ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंध है, और चागोस द्वीप समूह का मुद्दा दोनों देशों के संबंधों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। संयुक्त राष्ट्र महासभा के 2019 के प्रस्ताव में भी चागोस द्वीप समूह को मॉरीशस का अभिन्न अंग माना गया है।

भारत का मॉरीशस के प्रति समर्थन, विशेष रूप से इस संवेदनशील मुद्दे पर, यूके और अमेरिका के लिए चुनौती प्रस्तुत कर सकता है।