मणिपुर हिंसा की Inside Story, जानिए मणिपुर के कुछ राज ? मणिपुर हिंसा पर 6 सवालों के जवाब

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मणिपुर: मणिपुर में तीन महीने पहले शुरू हुई हिंसा को काबू करने के लिए 40 हज़ार से अधिक सुरक्षाकर्मी लगाए जा चुके हैं. इनमें सेना से लेकर असम राइफल्स, BSF, CRPF, SSB और ITBP के जवान और अधिकारी भी शामिल हैं. मणिपुर पिछले तीन महीने से हिंसा की आग में जल रहा है, जिसमें अब तक 160 लोगों की मौत हो चुकी है. 50 हज़ार से ज़्यादा लोग विस्थापित हुए हैं. इस हिंसा में लोगों के घरों को आग के हवाले कर दिया गया है. राज्य में खून-खराबे के कई दौर के बाद भी हिंसा थमती नजर नहीं आ रही है. मैतेई और कुकी समुदाय के बीच दुश्मनी इस हद तक पहुंच गई है कि मैतेई समुदाय के लोग कुकी समुदाय के इलाके में कदम नहीं रख सकते है और कुकी समुदाय के लोग मैतेई समुदाय के इलाके में नहीं आ सकते है.

मैतेई और कुकी समुदाय के बीच की इस खाई को वहीं पार कर सकता है, जिसकी दोनों में से किसी भी समुदाय से दोस्ती या दुश्मनी न हो. हिंदू बहुल मैतेई और ईसाई बहुल कुकी इलाकों के बीच आने-जाने वाले लोग मुसलमान ड्राइवरों की मदद लेते हैं, मतलब कि मणिपुर में मुसलमान होना सुरक्षित है.

दरअसल, मैतेई और कुकी समुदाय के लोगों के बीच तनाव कई दशकों से चल रहा है, लेकिन कुछ सालों से उनके बीच एक दूसरे की ज़मीनों के कब्ज़े को लेकर तनाव बढ़ा हुआ है, मणिपुर हिंसा पर पूरे देश और दुनिया की निगाहें जमी हुई हैं. सबसे के मन में कई सवाल आ रहे है ? जैस…

40 हजार से अधिक सुरक्षाकर्मियों को लगाने के बाद 30 लाख की आबादी वाले इस राज्य में हिंसा रुक क्यों नहीं रही है?
शांति के लिए सरकार की ओर से की जा रही कोशिशों का असर क्यों नहीं दिख रहा है?
क्या एन बीरेन सिंह को मुख्यमंत्री पद से हटाने के बाद ही शांति कायम हो पाएगी?
सुरक्षा बलों के पास पूरे संसाधन हैं. इसके बावजूद हिंसक भीड़ को रोकना मुश्किल क्यों हो रहा है?
मणिपुर में सरकारी मशीनरी क्या कर रही है? राज्य में बिगड़े हालात को वो क्यों संभाल नहीं पा रही है?
क्या सरकार मैतेई और कुकी समुदाय के लोगों के बीच तनाव कभी ख़त्म कर पाएंगी?

ऐसे कई सवाल लोगों के मन में आ रहे है, राज्य में पहाड़ी और मैदानी या घाटी के इलाके आसपास हैं. पहाड़ी इलाकों में कुकी और मैदानी इलाकों में मैतेई लोग रहते आए हैं. लेकिन अब दोनों जगह मिक्स आबादी है. ये इलाके आसपास भी हैं. एक-डेढ़ किलोमीटर के अंतराल पर ही भौगोलिक स्थिति बदल जाती है. यानी सफर के दौरान आप थोड़ी-थोड़ी देर में ही मैतेई और कुकी लोगों के इलाकों से गुजरते हैं. हिंसा न रुक पाने की एक वजह दोनों समुदायों के रिहाइशी इलाकों का एक दूसरे के नजदीक होना भी है, क्योंकि दोनों समुदायों के लोग एक दूसरे को देखना भी पसंद नहीं करते.

पिछले एक-डेढ़ महीनों के दौरान भीड़, बंदूकें या गोला-बारूद लेकर हमले करने नहीं आ रही है. ये लाठी-डंडे या ऐसे ही दूसरे औजार लेकर आते है. सुरक्षा बलों को ऐसी भीड़ पर गोली चलाने का आदेश नहीं है. एक खास बात ये है कि जब-जब सुरक्षा बलों की मौजूदगी में ऐसी हिंसा हुई है, तब-तब ज्यादा जानें नहीं गई हैं, लेकिन सामान ज्यादा लूटा गया है और प्रॉपर्टी को नुकसान हुआ है.

विपक्ष का कहना है कि मौजूदा सरकार के पास शांति कायम करने का कोई ठोस उपाय नहीं है. सरकार ने अपनी ओर से शांति कायम करने के जो कदम उठाए हैं वे काफी कमज़ोर हैं और जब तक इस संकट को सुलझाने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं दिखाई जाएगी तब तक शांति नहीं हो सकती.

लेखक: इमरान अंसारी