नई दिल्ली/डेस्क: 22 जनवरी को अयोध्या में राम मंदिर के उद्घाटन समारोह से जुड़े एक महत्वपूर्ण मुद्दे पर शंकराचार्यों के शामिल नहीं होने का विवाद है। शंकराचार्यों का कहना है कि मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा करना शास्त्रीय विधि का उल्लंघन है।
इसके खिलाफ, अयोध्या के संतों ने कहा है कि मस्जिद नहीं, मंदिर था, जिसका जीर्णोद्धार अब हो रहा है और रामलला की प्राण प्रतिष्ठा शास्त्र सम्मत है। एक कार्यक्रम में अयोध्या के संत स्वामी करपात्री महाराज ने कहा कि राम जन्मभूमि के लिए लाखों लोगों ने खून बहाया है, लेकिन शंकराचार्य के घर से किसी ने शहादत नहीं दी है तो उनको क्या बताएंगे।
उन्होंने इस मामले में राजनीति करने की भी बात कही है। संत ने कहा, ‘यह लाखों लोगों का परिश्रम है, जो राम जन्मभूमि के संघर्ष में शहीद हो गए। सरयू का तट, हनुमानगढ़ी, लाल कोठी का किला, ये सभी स्थान गवाह हैं कि लोगों ने राम के नाम पर अपना बलिदान दिया है।’
जगद्गुरु परमहंस आचार्य ने इस मुद्दे पर रेखांकित करते हुए कहा कि रामलला का प्राण प्रतिष्ठा समारोह शास्त्र सम्मत है और उन्होंने शंकराचार्य की तर्क को खारिज किया। इस विवाद के बीच, अयोध्या के संतों और शंकराचार्यों के बीच विचार-विमर्श जारी है जिससे समाज में वाद-विवाद बढ़ रहा है।
लेखक: करन शर्मा