लोकसभा चुनावों के बीच क्यों चर्चा में है कच्चाथीवु द्वीप और कहां स्थित है?

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नई दिल्ली: कच्चाथीवु द्वीप, एक छोटा सा आईलैंड जो भारत-श्रीलंका के बीच समंदर में स्थित है, हाल ही में राजनीतिक विवाद का केंद्र बना है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस द्वीप को लेकर कांग्रेस और इंडी गठबंधन को निशाना बनाते हुए कहा कि कांग्रेस ने अपने शासनकाल के दौरान इस द्वीप को छोड़ दिया था।

कच्चाथीवु द्वीप का इतिहास 14वीं शताब्दी में एक ज्वालामुखी विस्फोट से निकला था और इस आधार पर इसे श्रीलंका ने अपने अधिकार में लिया था। हालांकि, इंदिरा गांधी के समय में इसे श्रीलंका को सौंप दिया गया था। यह निर्जन द्वीप अब भी भारत और श्रीलंका के बीच विवाद का केंद्र रहा है।

कच्चाथीवु द्वीप के आसपास विवाद उत्पन्न होता रहा है, जिसमें भारतीय मछुआरों और श्रीलंकाई समुद्री सुरक्षा के बीच टकराव शामिल है। इस बात का ध्यान रखा जा रहा है कि भारत ने अपने प्रधानमंत्रियों के माध्यम से विदेश नीति में संशोधन की कोशिश की है, लेकिन कच्चाथीवु द्वीप के बारे में फैसला देने में उन्हें संघर्ष का सामना करना पड़ रहा है।

विदेश नीति के विशेषज्ञों के अनुसार, कच्चाथीवु द्वीप को श्रीलंका को देना भारत की एक बड़ी रणनीतिक भूल थी। उनका मानना है कि इसे भारत को अपने अलौकिक अधिकारों को दर्ज करने के लिए बड़े चयन के रूप में देना चाहिए था।

कच्चाथीवु द्वीप के आधारिक विवाद के साथ, भारतीय मछुआरों की अनियमितता और समुद्री सुरक्षा के मुद्दे भी उठाए जा रहे हैं। यह विवाद न केवल राजनीतिक है, बल्कि इसका सीधा असर समुद्री जीवन और समुद्री अधिकारों पर भी हो रहा है।

समाप्ति के रूप में, कच्चाथीवु द्वीप के आसपास विवाद उत्पन्न हो रहा है और इसे सुलझाने के लिए संभावनाओं की खोज जारी है। इस समय, भारत की विदेश नीति और राजनीतिक दबाव के माध्यम से इस मुद्दे का समाधान तलाशा जा रहा है।

कहां है कच्चाथीवु द्वीप?

कच्चाथीवू द्वीप, भारतीय महासागर में भारत और श्रीलंका के बीच, पाक जलडमरूमध्य में स्थित है। यह द्वीप 285 एकड़ में फैला हुआ है और इसकी लंबाई लगभग 1.6 किलोमीटर है जबकि चौड़ाई लगभग 300 मीटर है। भारतीय तट से यह द्वीप लगभग 33 किमी दूर है जबकि श्रीलंका के जाफना से लगभग 62 किमी की दूरी पर स्थित है। इस द्वीप पर केवल एक ही संरचना है, जिसे 20वीं सदी में अंग्रेजों द्वारा बनाया गया था – वह है सेंट एंथोनी चर्च। इस द्वीप पर निवास नहीं होता है और इसे निर्जन द्वीप माना जाता है।कच्चाथीवु द्वीप का क्या है इतिहास

दरअसल 14वीं शताब्दी में एक ज्वालामुखी विस्फोट हुआ था। इसी ज्वालामुखी से निकले लावा से इस द्वीप का निर्माण हुआ था। प्रारंभिक मध्ययुगीन काल में इस द्वीप पर श्रीलंका के जाफना साम्राज्य का कब्जा था। लेकिन इसकी कंट्रोल 17वीं शताब्दी में रामनाद जमींदारी के हाथ में चला गया।

बता दें कि रामनाथ जमींदारी रामनाथपुर से लगभग 55 किमी उत्तर पश्चिम में स्थित है। ब्रिटिश शासन के दौरान कच्चाथीवू द्वीप मद्रास प्रेसिडेंसी का भाग था। दरअसल इस द्वीप में अच्छी संख्या में मछलियां मिलती हैं।

ऐसे में भारत और श्रीलंका की तरफ से पहली बार साल 1921 में इस द्वीप पर मछली पकड़ने की सीमा निर्धारित करने के लिए कच्चाथीवू द्वीप पर दावा किया गया। जब एक सर्वे कराया गया तो कच्चाथीवु को श्रीलंका में चिन्हित किया गया, यानी श्रीलंका का भाग बताया गया। ऐसे में ब्रिटिश प्रतिनिधि मंडल के समक्ष भारत ने रामनाद साम्राज्य का जिक्र किया और उनके कच्चाथीवु द्वीप पर स्वामित्व का हवाला दिया। मामला लटका रहा, इसे कई बार चुनौती मिली और साल 1974 तक इस विवाद को सुलझाया नहीं जा सका।