नई दिल्ली/डेस्क: जैसे कि आप सबको पता है, 14 सितंबर को हम अक्सर हिंदी दिवस के रुप में मनाते हैं। इसे हम राष्ट्रिय दिवस के रुप में भी मनाते हैे, लेकिन आपको पता है कि इसके पीछे कि वजह क्या है, हम हिन्दी दिवस क्यों मनाते हैे और इसे राज्यभाषा का दर्जा क्यों दिया गया है, जानकारी के लिए हम आपको बता दें, कि हिन्दी को लेकर तीन साल तक बहस हुई थी, जिसमें तमाम जानकारों और विद्वानों ने अपने पक्षों को रखा और आखिरकार अंत में लम्बी बहस और चर्चा के बाद, मुंशी-आयंगर फॉर्मूलें वाले समझौते पर मुहर लगी।
इसके बाद 14 सितंबर 1949 को एक कानून बनाया गया, जिसमें हिंदी को राष्ट्रभाषा नहीं बल्कि राजभाषा का दर्जा दिया गया। आपको पता है कि दुनिया में तीसरी सबसे ज्यादा बोलने वाली भाषा हिन्दी है, जिसे कुछ लोगों को हमारे ही देश में अपनी मातृभाषा को बोलने में शर्म आती है और ऐसा क्यों है? चलिए जानते हैं, क्योंकि आजकल का ट्रेंड चल रहा है, जिसे अंग्रेजी बोलने आती है उसे हम पढे़-लिखे समझते हैं और उनको समाज में बहुत मान-समान दिया जाता है। हम आपसे ये पुछना चाहते हैं कि क्या आप उसमें से तो नहीं जिसे अपनी ही मातृभाषा बोलने में शर्म आती हो.
आजकल ये देखा गया है कि आज की युवा जेनरेशन में हिन्दी भाषा विलुप्त होते जा रही है, हर बच्चा अपने घरों में अपने मां-बाप से अंग्रेजी में बात करते हैं और उनके मां-बाप भी बच्चे से अंग्रेजी में बात करते हैं, तो आपको ये समझना चाहिए कि अपने बच्चों को अंग्रेजी के साथ-साथ हिन्दी भी सिखाएं, ताकि हमारी राष्ट्रभाषा विलुप्त न हो जाए.
हिन्दी भाषा को संविधान ने 14 सिंतबर 1949 को आधिकारीक रुप के तौर पर स्वीकार किया है, जो देवनागरी लिपि भाषा में लिखी गई है। हिन्दी को हमने पहली बार 1953 में आधारिक तौर पर मनाया था। पुरी दुनिया की बात करें, तो 423 मिलियन लोग हिन्दी को पहली भाषा के रुप में बोलते हैं और 125 मिलियन लोग हिन्दी को दुसरी भाषा के रुप में बोलते हैं।
भारत में कई क्षेत्रिय भाषाए हैं- जैसे बैंगाली, मैथली, कन्नड़, उड़िया, भोजपुरी, आसामीज, तेलगु, गुजराती, पंजाबी, मराठी और हमारे देश में हिन्दी क्षेत्रिय भाषा वाले राज्य यूपी, हिमाचल प्रदेश, बिहार, हरियाणा, दिल्ली, मध्य प्रदेश हैं, जिसकी पहली भाषा हिन्दी है। अगर दुसरे देश की बात करें, तो मांरीशन, सुरीनाम, फिजी, गुयाना और नेपाल में भी हिन्दी भाषा बोली जाती है। अगर दुसरे देश के लोग हिन्दी बोल सकते हैं, तो हम क्यों नहीं?
लेखक: लिपिका सिंह