खतरे में है गांव के बच्चों का जीवन और भविष्य, शहर के मुकाबले तेजी से हो रहा है ये बदलाव!

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ये कैद क्यों?

नई दिल्ली: भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता है। क्योंकि यहां की मिट्टी से सोने जैसी फसलों की उपज होती है। लेकिन क्या आपको पता है कि इसी सोने (फसल)के कारण ही आज भारत के कुछ गांव का भविष्य खतरे में पड़ चुका है। इसके पीछे की वजह को कुछ अर्थशास्त्री देश की बढ़ती जनसंख्या बता रहे हैं।

वहीं, कुछ का मानना है कि इस बढ़ती जनसंख्या के भरण-पोषण के लिए ये बहुत ही जरूरी है। अब आप सोच रहे होंगे कि इस बढ़ती जनसंख्या के लिए क्या जरूरी है और इससे गांव के जीवन और भविष्य पर क्या असर पड़ सकता है। चलिए जानते हैं कि कैसे बढ़ती जनसंख्या गांव की दुश्मन बन बैठी है…

बढ़ती जनसंख्या के लिए सबसे जरूरी है खाना और घर

जब हमारा देश आजाद हुआ था उस वक्त देशी की आबादी करीब 34 करोड़ थी। वहीं, 76 साल बाद देश की आबादी को देखें, तो करीब 140 करोड़ के आसपास है। देश की आबादी इन 76 सालों में इतनी रफतार से बढ़ी कि आज हम आबादी के मामले में दुनिया में सबसे ऊपर हैं।

असल समस्या यहीं से शुरू होती है। क्योंकि जब देश की आबादी कम थी, तो कम अनाज लगता था। लेकिन आज देश की आबादी ज्यादा है, तो ज्यादा अनाज की जरूरत पढ़ रही है। इस जरूरत को पूरा करने के लिए ही पेड़ कट रहे हैं। जमीने घिरती (आबादी को वसाने के लिए घर बन रहे हैं) जा रही हैं।

जमीने कम होने के कारण किसान कम जमीन से अधिक फसल लेने के लिए अधिक कीटनाशक और फर्टिलाइजर का इस्तेमाल कर रहे हैं। ताकि कम समय और कम जमीन पर अधिक मात्रा में अनाज पैदा किया जा सके। इसकी कीमत गांव में रह रहे लोगों और बच्चों को चुकानी पड़ रही है।

कैद में गांव के बच्चे!

अब आप सोच रहे होंगे कि गांव के बच्चे तो आजाद घूम रहें,तो फिर कैद कैसी? लेकिन आपको शायद ही पता होगा कि बढ़ती आवादी का सीधा असर गांव के बच्चों पर पढ़ रहा है। क्योंकि आज गांव में बच्चों के खेलने के लिए मैदान ही नहीं बचे हैं। जो बचे हैं में भी सरकार ने विकास के नाम पर कहीं अस्पताल कहीं बारात घर तो कहीं पर पानी की टंकी को खड़ा कर दिया है।

बाकी बचे कुछ मैदान इतने छोटे हैं कि वहां पर खेलना असंभव है। गांव के किशोर से लेकर युवा तक पर्याप्त मैदान न होने के कारण सुबह व शाम सड़कों पर रेस लगाते देखे जा सकते हैं। जो की पूरी तरह से खतरे से भरा होता है।

वहीं, जो बच्चे छोटे हैं वो कहां जाएंगे। आज से कुछ वर्षों पहले तक गांव में कोई न कोई मैदान खाली हुआ करता था। लेकिन आज वहां पर भी घर बन गए हैं। क्योंकि गांव में परिवारों (आबादी) में इजाफा हो रहा है। वहीं, इसके मुकालबे में शहरों को आबादी के हिसाब से बसाया जा रहा है।

इसलिए वहां पर खेल के मैदान व पार्कों को छोड़ा जा रहा है। लेकिन गांव में इसकी अभी तक कोई व्यवस्था नहीं की जा सकी है। यहां तक के अब गांव में जो नए स्कूल बनाए जा रहे हैं। उनके पास भी खेल के मैदान ना मात्र ही हैं। ऐसे में बच्चे खेलें तो कहां खेलें।

यही कारण है कि गांव में बच्चे अब कैद में जीवन जीने को मजबूर हैं। वो बच्चें जिनको कभी घरों में कैद नहीं किया जा सकता था। अगर आपको ये बाते नई लग रही हैं, तो आप कुछ साल पहले पीछे जाकर अपने बचपन को याद कीजिए या फिर अपने किसी बड़े से पूछिए की गांव में जीवन कैसा होता था और आज कैसा है।

विकास के नाम पर हो रहा गांव के भविष्य के साथ खिलवाड़!

‘किसान टॉल्क’ नाम की एक वेबसाइट के अनुसार, यूपी में साल 2018 से लेकर अब तक 21,168 खेल के मैदानों का निर्माण मनरेगा योजना के अंतर्गत किया गया है। जबकि, यूपी में गांव की संख्या करीब 1,06,774 है।

बाकी के बचे 80 हजार से अधिक गांवों का क्या? उन गांवों में भी लोग रहते हैं। उनको भी विकास का इंतजार है। लेकिन ये विकास ही उनका सबसे बड़ा दुश्मन बना हुआ है।

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