Lok Sabha Speaker Election: कैसे होता है लोकसभा स्पीकर का चुनाव; साथ ही समझेंगे क्या होती है लोकसभा स्पीकर की शक्तियां?

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Lok Sabha Speaker Election: लोकसभा चुनाव संपन्न होने के बाद से ही सभी की निगाहें लोकसभा अध्यक्ष के पद पर टिकी हुई है। लोकसभा स्पीकर पद को लेकर सहमति न बन पाने के बाद विपक्ष ने अपने उम्मीदवार के नाम का ऐलान कर दिया है। विपक्ष के उम्मीदवार के सुरेश होंगे।

वहीं, NDA की ओर से लोकसभा स्पीकर पद के लिए ओम बिरला ने अपना नामांकन दाखिल कर दिया है। लोकसभा स्पीकर के लिए चुनाव बुधवार (26 जून) को 11 बजे होगा। अभी तक सत्ता पक्ष और विपक्ष की सहमति से स्पीकर चुना जाता था, लेकिन इस बार ऐसा नहीं हो पाया। चलिए आपको बताते है लोकसभा स्पीकर की शक्तियां क्या होती है?

सबकी नजरें लोकसभा स्पीकर के चुनाव पर

बता दें कि, संसद में स्पीकर का पद पावरफुल होता है, जो लोकसभा के संचालन से लेकर सांसदों की सदस्यता का फैसला करता है। सदन में अल्पमत होने की स्थिति में स्पीकर की पोजिशन और बढ़ जाती है। यही कारण है कि सभी की नजरें लोकसभा स्पीकर की गद्दी पर टिकी हैं। आइए समझते हैं कि स्पीकर कैसे चुना और कैसे हटाया जाता है?… साथ ही समझेंगे कि लोकसभा स्पीकर की शक्तियां क्या हैं?…

किसकी देख-रेख में होता है लोकसभा स्पीकर का चुनाव?

लोकसभा स्पीकर का चुनाव भारत की संसद के निचले सदन, लोकसभा में होता है। इस चुनाव की प्रक्रिया बहुत ही व्यवस्थित और विधिसम्मत तरीके से की जाती है। नई लोकसभा की पहली बैठक के ठीक पहले पिछली लोकसभा का स्पीकर का पद खाली हो जाता है। यानी ओम बिड़ला, जो फिलहाल लोकसभा के स्पीकर, नई लोकसभा की पहली बैठक से ठीक पहले सभापति का पद खाली कर देंगे। उस स्थिति में, स्पीकर की जिम्मेदारियां प्रोटेम स्पीकर निभाता है जो चुने हुए सांसदों में सबसे वरिष्ठ होता है। लोकसभा स्पीकर का चुनाव, संविधान और संसद की नियमावली के अनुसार, विशेष नियमों और प्रक्रिया के अंतर्गत होता है।

क्या होती है प्रोटेम स्पीकर की भूमिका?

प्रोटेम स्पीकर की भूमिका भारतीय संसदीय प्रणाली में महत्वपूर्ण और विशिष्ट होती है, खासकर नए लोकसभा के गठन के समय। यह पद स्थायी नहीं होता और केवल कुछ विशिष्ट कार्यों के लिए अस्थायी रूप से नियुक्त किया जाता है।

स्पीकर का चुनाव कैसे होता है?

बाते दें कि, नई बनीं 18वीं लोकसभा का सबसे पहला काम लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव करना होता है। संविधान के आर्टिकल 93 में कहा गया है स्पीकर का पद खाली होते ही सांसदों को जल्द से जल्द अपने में से दो सांसदों को बतौर स्पीकर और डिप्टी स्पीकर चुनना होगा। जिसके लिए कश्मकश जारी है।

स्पीकर पद के लिए जरूरी है कि उस व्यक्ति को लोकसभा का सदस्य होना जरूरी है। इसके अलावा अलग से और कोई मापदंड नहीं हैं। हालांकि, देश के संविधान और कानूनों की समझ अध्यक्ष पद पर बैठने वाले व्यक्ति के लिए एक अहम गुण माना जाता है। स्पीकर चुने जाने के लिए सदन में उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के साधारण बहुमत की जरूरत होती है। इसलिए, आमतौर पर सत्तारूढ़ दल का सदस्य ही स्पीकर बनता है।

लेकिन पिछले कुछ सालों में ये रिवाज बदल सा गया है, जहां सत्तारूढ़ दल सदन में अन्य दलों और समूहों के नेताओं के साथ अनौपचारिक परामर्श करने के बाद अपने उम्मीदवार को नामांकित करता है। जब उम्मीदवार पर फैसला हो जाता है, तो उसका नाम आमतौर पर प्रधानमंत्री या संसदीय कार्य मंत्री घोषित करते हैं। इस तरह यह सुनिश्चित किया जाता है कि अध्यक्ष बन जाने के बाद उसे सदन के सभी दल के सदस्यों का सम्मान मिले।

स्पीकर का काम और ताकत

  • स्पीकर संसद की अध्यक्षता और संचालन करता है।
  • संयुक्त बैठक की अध्यक्षता भी स्पीकर करता है।
  • स्पीकर सदन को स्थगित कर सकता है या बैठक को निलंबित कर सकता है।
  • स्पीकर आमतौर पर वोट नहीं करता, लेकिन बराबरी की स्थिति में उसका वोट निर्णायक होता है।
  • दलबदल के आधार पर अयोग्यता के विवाद पर अंतिम फैसला स्पीकर लेता है।
  • समितियां स्पीकर द्वारा गठित की जाती हैं और उनका काम स्पीकर के निर्देशन में होता है।
  • स्पीकर को सदन, समितियों और सदस्यों के अधिकारों और विशेषाधिकारों का संरक्षक माना जाता है।

लोकसभा स्पीकर को हटाने की प्रक्रिया

बता दें कि, संविधान के आर्टिकल 94 के तहत, लोकसभा में पूर्ण बहुमत से पारित प्रस्ताव द्वारा स्पीकर को हटाया जा सकता है। 14 दिन पहले दिए गए इस नोटिस के बाद सदन में प्रस्ताव पर चर्चा होती है। बहुमत से प्रस्ताव पारित होने पर स्पीकर अपने पद से हट जाते हैं। चर्चा के दौरान स्पीकर सदन की अध्यक्षता नहीं करते और यह कार्य डिप्टी स्पीकर या अन्य सदस्य द्वारा किया जाता है।

लेखक: रंजना कुमारी