नई दिल्ली/डेस्क: डॉ. मनकोम्बु संबासिवन स्वामीनाथन, जिन्हें हरित क्रांति के जनक के रूप में जाना जाता है, आज गुरुवार को हमारे बीच से चले गए। उनकी आयु 98 साल थी, और उन्होंने चेन्नई में अपनी अंतिम सांस लीं। डॉ. स्वामीनाथन, भारतीय कृषि क्षेत्र में अपने महत्वपूर्ण योगदान के लिए जाने जाते हैं, जिन्होंने अपने जीवन में कई महत्वपूर्ण काम किए। उन्हें भारत सरकार ने पद्म भूषण से सम्मानित किया था।
प्रोफ़ाइल
डॉ. स्वामीनाथन का जन्म 7 अगस्त 1925 को हुआ था। उन्होंने तिरुवनंतपुरम के महाराजा कॉलेज से जूलॉजी और कोयंबटूर कृषि महाविद्यालय से कृषि विज्ञान में बीएससी की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद, उन्होंने अपनी शिक्षा को जारी रखते हुए साल 1952 में कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से पीएचडी की डिग्री हासिल की।
साल 1954 में, डॉ. स्वामीनाथन भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) में शामिल हुए, जहां उन्होंने कृषि विज्ञान में अपनी विशेषज्ञता बढ़ाई। उन्होंने वहां आनुवांशिकी और पादप प्रजनन में अपने अनुसंधान कार्य किए।
कैसा रहा सफर?
1961 से लेकर 1972 तक, वे भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) के निदेशक और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के महानिदेशक के पद पर कार्यरत रहे। उनका योगदान कृषि सेक्टर के विकास में महत्वपूर्ण था।
साल 1972 से 1979 तक, वे कृषि अनुसंधान और शिक्षा विभाग, भारत सरकार के सचिव पद पर रहे, जहां उन्होंने अपनी नेतृत्व कौशलों का प्रदर्शन किया।
साल 1980 से 1982 तक, डॉ. स्वामीनाथन ने योजना आयोग में विज्ञान और कृषि के कार्यवाहक उपाध्यक्ष और सदस्य के रूप में अपने अनुभव का साझा किया।
देश का असहनीय नुकसान
इसके बाद, वे साल 1982 से 1988 तक फिलीपींस में अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान में महानिदेशक के पद पर कार्यरत रहे, जहां उन्होंने अपने अनुसंधान कौशल का उपयोग करके कृषि क्षेत्र को नई दिशा में ले जाने का काम किया।
डॉ. मनकोम्बु संबासिवन स्वामीनाथन का योगदान हमारे देश के कृषि सेक्टर के विकास में अत्यधिक महत्वपूर्ण था। उन्होंने अपनी अनमोल सेवाओं के साथ हमारे देश को हरित क्रांति की ओर अग्रसर किया और उनके निधन से हमारे देश ने एक महत्वपूर्ण कृषि वैज्ञानिक को खो दिया है।
लेखक: करन शर्मा