भारतीय इतिहास में हिन्दू रानियों ने समृद्धि, साहस, और सामर्थ्य के साथ राजसत्ता का प्रशासन किया है। वे न केवल राजवंशों की धरोहर थीं, बल्कि अपनी वीरता और प्रेरणा से अनेक दुश्मनों को भी परास्त करती रहीं। मुगल साम्राज्य के खिलाफ लड़ने वाली कुछ ऐसी हिन्दू रानियों की कहानी ने उन्हें महान वीरांगना के रूप में भारतीय इतिहास में अमर बना दिया है।
रानी पद्मिनी
राजपूताना की वीरांगना रानी पद्मिनी ने अपनी साहसिकता और त्याग के साथ आवारा मुगल सेनानायक अलाउद्दीन खिलजी के विरुद्ध लड़ाई लड़ी। रानी पद्मिनी की तस्वीर में उनकी सुंदरता और साहस इतना प्रखर था कि खिलजी सेनानायक ने उन्हें उचित मानने से इन्कार कर दिया था।
रानी दुर्गावती
रानी दुर्गावती गोंडवानी की रानी थीं। पति की मौत के बाद रानी दुर्गावती ने बेटे का मार्गदर्शन करते हुए शासन किया। रानी दुर्गावती ने कई लड़ाईयां लड़ी। अकबर के सेनापति ख्वाजा अब्दुल मजीद खान के खिलाफ़ इन्होने आखिरी युद्ध लड़ा। आत्मसमर्पण करने की बजाए उन्होंने खुद को खंजर मारकर अपने प्राणों का बलिदान दे दिया।
रानी ताराबाई
जो छत्रपति शिवाजी महाराज की पुत्रवधु हो, उनका तो मुगलों को रौंदना बनता ही है, आप इस बात का अंदाज़ा इसी बात से लगा लीजिए कि औरंगज़ेब के सेनापति ने 8 सालों तक जिंजी किले पर कब्ज़ा करने की कोशिश की, लेकिन रानी ताराबाई के सामने उसकी एक न चली।
राजकुमारी रत्नावती
महाराजा रतन सिंह ने जैसलमेर किले की सुरक्षा अपनी बेटी राजकुमारी रत्नावती को सौंपी थी और उसी समय अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति मलिक काफूर ने किले को घेर लिया लेकिन रत्नावती पीछे नहीं हटी और मलिक काफूर सहित 100 लोगों को बंदी बना लिया।
ये थीं कुछ हिन्दू रानियाँ, जिन्होंने अपने साहस, वीरता और प्रेरणा से मुगलों के खिलाफ लड़ाई लड़ते हुए उन्हें परास्त किया। उनके वीरता और साहस की कथाएं आज भी हमारे इतिहास में गौरवशाली अध्याय बनी हुई हैं, जो हमें प्रेरित करती हैं और साहसी बनाती हैं।
उन्होंने दिखाया कि नारी शक्ति का कोई सीमा नहीं होती है और वह न केवल अपने परिवार और सम्राज्य के लिए बल्कि राष्ट्र के लिए भी अपने प्राणों का बलिदान देने के लिए तैयार होती है। हिन्दू रानियों के इतिहास में उनके योगदान को समर्थन देना अपने राष्ट्र की गरिमा का समर्थन करने जैसा होता है।
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रिपोर्ट: करन शर्मा