Muslim Personal Law Board: सुप्रीम कोर्ट द्वारा तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को गुजारा भत्ता दिये जाने के फैसले पर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कड़ा एतराज जताया है। रविवार को दिल्ली में हुई मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की वर्किंग कमेटी की बैठक के बाद कमेटी ने कहा कि यह फैसला शरीयत से अलग है और मुसलमान शरीयत से अलग नहीं सोच सकता है।
कमेटी ने बयान में कहा, “हम शरीयत के पाबंद हैं और हमारे लिए इससे अलग सोचना गलत होगा। जब किसी शख्स का तलाक हो गया, तो फिर गुजारा भत्ता कैसे मुनासिब है।” मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का मानना है कि भारत का संविधान उन्हें अपने धार्मिक भावनाओं और मान्यताओं के हिसाब से रहने का अधिकार देता है और सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला उनके हित में नहीं है।
10 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कहा कि अब तलाकशुदा मुस्लिम महिलाएं सीआरपीसी की धारा-125 के तहत याचिका दायर कर अपने पति से भरण-पोषण के लिए भत्ता मांग सकती हैं। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने यह फैसला सुनाया, जो कि अब्दुल समद नामक व्यक्ति से जुड़े मामले में था। तेलंगाना हाईकोर्ट ने अब्दुल समद को अपनी पत्नी को गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया था, जिसके खिलाफ अब्दुल समद ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि यह निर्णय हर धर्म की महिलाओं पर लागू होगा और मुस्लिम महिलाएं भी इसका सहारा ले सकती हैं। इसके लिए उन्हें सीआरपीसी की धारा-125 के तहत कोर्ट में याचिका दाखिल करने का अधिकार है।