BRICS में शामिल हुए नए देश, चीन ने चली नई चाल, अमेरिका को होगा सबसे ज्यादा नुकसान!

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नई दिल्ली/डेस्क: 24 अगस्त की शाम,दक्षिण अफ्रीका की राजधानी जोहान्सबर्ग में दुनिया के तीसरे सबसे शक्तिशाली आर्थिक संगठन BRICS में नए देशों की शामिली की घोषणा की गई है। इन नए शामिल होने वाले देशों में 4 इस्लामिक देश भी शामिल हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सम्‍मेलन के प्रारंभिक भाषण में बताया कि भारत ब्रिक्स के विस्‍तार का समर्थन करता है। इसके साथ ही, संगठन में सऊदी अरब, मिश्र, यूएई, अर्जेंटीना, ईरान और इथियोपिया को शामिल होने के लिए निमंत्रण दिया गया है। संगठन के नए सदस्यों की सदस्यता जनवरी 2024 से प्रारंभ होगी।

चीन को होगी दिक्कत

विशेषज्ञों की माने तो नए सदस्यों को संगठन में शामिल करना काफी मुश्किल होगा क्योंकि चीन ने पहले ही भारत के और अन्‍य सदस्‍यों के खिलाफ अपने हितों की मजबूती से रक्षा की है।

चीन ने शंघाई को-ऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन (SCO) में भारत की सदस्यता को पाकिस्तान की सदस्यता के साथ जोड़ने की कोशिश की थी। और BRICS में भी चीन पाकिस्तान को लाने की हर मुमकिन कोशिश करेगा।

लेकिन विशेषज्ञों के अनुसार, चीन की पाकिस्तान के साथ की गई यह रणनीति अब कामयाब नहीं हो रही है। क्योंकि भारत और रूस के कारण चीन का विस्तारपूर्ण रुख कमजोर हो रहा है।

क्या यह सचमुच में BRICS को मजबूती प्रदान करेगा?

इस नई शामिली से BRICS की ताकत में वृद्धि की उम्मीद है, और इसमें कुछ मुख्य कारण हैं। पहले, इन नए सदस्य देशों में प्रति व्यक्ति आय काफी उच्च है और उनके पास भी अधिक आर्थिक रिजर्व हैं। इससे संगठन को आर्थिक ताकत मिल सकती है।

इन देशों के शामिल होने से ब्रिक्स की नई विकास बैंक (NDB) को विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के समकक्ष के रूप में स्थापित किया जा सकता है। इससे ब्रिक्स सदस्य अपने विकास पर अधिक नियंत्रण कर पाएंगे और उन्हें विकास संरचनाओं के लिए समर्थन प्राप्त करने में मदद मिल सकती है।

भारत और अन्य सदस्य देशों को कैसा होगा लाभ?

सऊदी अरब और UAE के शामिल होने से ब्रिक्स की विशेष ताकत में वृद्धि होगी। इन देशों की अधिकांश आय तेल निर्यात पर आधारित है और उनके पास अधिक नकदी रिजर्व भी हैं। इससे ये देश ब्रिक्स के प्रोजेक्ट्स में निवेश कर सकते हैं जिससे सभी सदस्य देशों को लाभ होगा।

भारत के लिए भी सऊदी अरब और UAE के शामिल होने से काफी फायदा होगा, क्योंकि ये दोनों ही देश भारत के प्रमुख तेल आपूर्तिकर्ता हैं और इसके साथ ही भारतीय मजूदूरों के लिए विदेश में रोजगार के अवसर प्रदान कर सकते हैं।

अमेरिकी डॉलर का प्रभाव होगा कमजोर?

इसके अलावा, यदि इन नए सदस्य देशों के साथ ब्रिक्स एसोसिएशन अधिक मजबूत हो जाता है, तो यह अमेरिकी डॉलर की विशिष्ट वित्तीय प्रणाली में विश्वास को कमजोर कर सकता है।

ब्रिक्स सदस्य देश अमेरिकी डॉलर के मुकाबले अपनी-अपनी मुद्राओं का उपयोग करके व्यापार करने का प्रयास कर सकते हैं, जिससे डॉलर की मांग प्रभावित हो सकती है।

कुल मिलाकर, नए सदस्य देशों के इस नए जुड़ाव से ब्रिक्स की ताकत बढ़ने की संभावना है और इससे इन देशों को एक अनूठी और कुशल आर्थिक प्रणाली के साथ आगे बढ़ने का अवसर मिल सकता है। इससे ब्रिक्स की विशिष्टता बढ़ सकती है और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय व्यवस्था में नये सुधार की संभावना है.

लेखक: करन शर्मा