Sengol Controversy: हाल ही में संसद में सेंगोल को लेकर एक नई बहस शुरू हो गई है, समाजवादी पार्टी (SP) के सांसद आरके चौधरी ने इसकी स्थापना पर सवाल उठाए और इसे हटाने की मांग की। मोहनलालगंज से सपा सांसद आरके चौधरी ने संसद में अपने बयान में कहा, “आज, मैंने इस सम्मानित सदन में आपके समक्ष सदस्य के रूप में शपथ ली है कि मैं विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूंगा, लेकिन मैं सदन में पीठ के ठीक दाईं ओर सेंगोल देखकर हैरान रह गया। महोदय, हमारा संविधान भारतीय लोकतंत्र का एक पवित्र ग्रंथ है, जबकि सेंगोल राजतंत्र का प्रतीक है। हमारी संसद लोकतंत्र का मंदिर है, किसी राजे-रजवाड़े का महल नहीं।”
सपा सांसद क्यों कर रहे हैं सेंगोल हटाने की मांग
सपा सांसद आरके चौधरी ने अपने बयान में यह भी कहा, “मैं आग्रह करना चाहूंगा कि संसद भवन में सेंगोल हटाकर उसकी जगह भारतीय संविधान की विशालकाय प्रति स्थापित की जाए।” उन्होंने यह तर्क दिया कि सेंगोल, जो कि राजा की छड़ी का प्रतीक है, हमारे लोकतंत्र में एक अवांछनीय वस्तु है। उन्होंने सवाल उठाया, “अब देश संविधान से चलेगा या फिर राजा के डंडे से चलेगा? इसलिए हमारी ये मांग है कि अगर लोकतंत्र को बचाना है तो संसद भवन से सेंगोल को हटाना होगा।”
सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने दी सफाई
आरके चौधरी के बयान के बाद, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी सफाई दी। उन्होंने कहा, “मुझे लगता है कि हमारे सांसद ऐसा इसलिए कह रहे होंगे क्योंकि जब यह (सेंगोल) स्थापित किया गया था, तो प्रधानमंत्री ने इसे प्रणाम किया था, जबकि शपथ लेते समय वह ऐसा करना भूल गए। शायद मेरे सांसद ने उन्हें यह याद दिलाने के लिए ऐसा कहा है। जब प्रधानमंत्री इसे प्रणाम करना भूल गए, तो शायद वह भी कुछ और ही चाहते होंगे।”
सेंगोल का इतिहास और महत्व
सेंगोल तमिल शब्द ‘सेम्मई’ से निकला है, जिसका अर्थ होता है धर्म, सच्चाई और निष्ठा। सेंगोल भारतीय सम्राट की शक्ति और अधिकार का प्रतीक हुआ करता था। इसका महत्व भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के समय से जुड़ा है। 14 अगस्त 1947 को जवाहरलाल नेहरू ने तमिलनाडु की जनता से इस सेंगोल को स्वीकार किया था, जो कि अंग्रेजों से सत्ता के हस्तांतरण का संकेत था। यह सेंगोल इलाहाबाद के एक संग्रहालय में रखा गया था और अब इसे नए संसद भवन में ले जाया गया है।
अमित शाह ने सेंगोल के इतिहास की जानकारी देते हुए बताया था कि इसे प्राप्त करने वाले से न्यायसंगत और निष्पक्ष शासन की अपेक्षा की जाती है। स्वतंत्रता के समय इस पवित्र सेंगोल को प्राप्त करने की घटना को दुनियाभर के मीडिया ने व्यापक रूप से कवर किया था। इस ऐतिहासिक महत्व को देखते हुए सेंगोल को संसद भवन में स्थापित किया गया।
लेकिन अब एक बार फिर से सेंगोल को लेकर विवाद छिड़ चुक है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि सेंगोल को लेकर आगे क्या निर्णय लिया जाता है और इस मुद्दे पर सरकार और विपक्षी दलों के बीच क्या रुख अपनाया जाता है।