Himachal Pradesh: हिजड़ा, नपुंसक, किंपुरुष, किंपुरुषवर्ष, युनक, थर्ड जेंडर और किन्नर इन नामों के बारे में सभी ने सुना होगा. इनको अक्सर कई कार्यक्रमों (जैसे- शादी, बच्चे का जन्म, बस और ट्रेन) के दौरान शगुन लेते हुए देखा ही होगा. लेकिन कुछ लोग इनके इसी काम से बहुत तंग आ चुके हैं. क्योंकि ज्यादातर किन्नर अपने मन के मुताबिक शगुन की मांग करने लगे हैं. जिसको लेकर ही हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जिनले की कई ग्राम पंचायतों ने शगुन की राशि निर्धारित करने का अनोखा कदम उठाया है. दारूघनपट्टी कोट पंचायत ने शुक्रवार को घोषणा की कि अब किन्नरों को निर्धारित राशि से अधिक शगुन नहीं मिलेगा. मिली जानकारी के अनुसार ग्राम पंचायतों ने शगुन की राशि तय की है. जिसमें बच्चे के जन्म पर 2100 रुपये और विवाह के अवसर पर 3100 रुपये की शगुन राशि तय की गई है.
बता दें कि यह निर्णय ग्रामीणों की शिकायतों के आधार पर लिया गया. ग्रामवासियों ने आरोप लगाया था कि किन्नर जबरन पैसे वसूल रहे हैं और ऐसा न करने पर लोगों को परेशान कर रहे हैं. पंचायत ने यह भी स्पष्ट किया है कि इस निर्णय का पालन न करने पर नियमानुसार कार्रवाई की जाएगी.
किन्नरों का इतिहास और समाज में भूमिका
भारतीय समाज में किन्नरों का ऐतिहासिक महत्व रहा है. प्राचीन और मध्यकालीन इतिहास में वे शाही दरबारों में प्रमुख भूमिकाएं निभाते थे. मुगल काल के दौरान हिजड़े दरबार की राजनीति और प्रशासन का हिस्सा भी रहे हैं. हालांकि, आधुनिक समाज में उन्हें अक्सर हाशिए पर रखा गया है.