पटना हाईकोर्ट ने बिहार की शराबबंदी को बताया अफसरों की मोटी कमाई का जरिया, कहा- सरकार ने ‘अवैध शराब व्यापार’ को अनुमति दी है 

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नई दिल्ली। बिहार सरकार के शराबबंदी कानून पर कड़ी आलोचना करते हुए पटना हाईकोर्ट ने कहा है कि इस कानून ने “शराब और दूसरे बैन किए गए वस्तुओं के अनधिकृत व्यापार को बढ़ावा दिया है”. यह कानून सरकारी अधिकारियों के लिए “मोटा पैसा” कमाने का एक साधन बन गया है. पटना उच्च न्यायालय ने 19 अक्टूबर को पारित एक फैसले में कहा कि राज्य सरकार द्वारा बनाया गया यह कानून उन पुलिस अधिकारियों  के लिए उपयोगी हो गए हैं, जो तस्करों के साथ मिले हुए हैं.

न्यायमूर्ति पूर्णेन्दु सिंह के सिंगल बेंच ने कहा, “कानून लागू करने वाली एजेंसियों को धोखा देने के लिए नए-नए तरीके अपनाए जा रहे हैं, ताकि तस्करी के सामान को ले जाया और पहुंचाया जा सके. न केवल पुलिस अधिकारी (और) आबकारी अधिकारी, बल्कि राज्य कर विभाग और परिवहन विभाग के अधिकारी भी शराबबंदी को पसंद करते हैं, उनके लिए इसका मतलब है मोटी कमाई. न्यायमूर्ति पूर्णेन्दु सिंह द्वारा 19 अक्टूबर को पारित यह 24 पृष्ठों का फैसला 13 नवंबर को अपलोड किया गया था.

इस मामले में हो रही थी सुनवाई

बता दें कि अदालत की यह टिप्पणी खगड़िया निवासी मुकेश कुमार पासवान की याचिका के जवाब में थी.मुकेश कुमार को राज्य के उत्पाद शुल्क विभाग द्वारा छापेमारी में शराब का जखीरा मिलने के बाद नवंबर 2020 में पटना के बाईपास पुलिस स्टेशन के निरीक्षक के पद से निलंबित कर दिया गया था.

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पटना हाईकोर्ट ने पासवान के खिलाफ निलंबन आदेश को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि यह प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन है. साथ ही बेंच ने कहा कि राज्य सरकार बिहार निषेध और उत्पाद शुल्क अधिनियम, 2016 को ठीक से लागू करने में असमर्थ रही है. ज्ञात हो कि 2016 का यह कानून राज्य में शराबबंदी को नियंत्रित करता है.

कानून के कारण गरीब लोग ज्यादा हो रहे शिकार

अदालत के अनुसार, शराब पीने वाले गरीबों और अवैध शराब त्रासदी के शिकार हुए गरीब लोगों के खिलाफ दर्ज मामलों की तुलना में उल्लंघन के ऐसे मामलों में किंगपिन और सिंडिकेट संचालकों के खिलाफ कम मामले दर्ज किए जाते हैं.

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अदालत ने कहा, राज्य के गरीब तबके के अधिकांश लोग जो इस कानून का दंश झेल रहे हैं, वे दिहाड़ी मजदूर हैं जो अपने परिवार के कमाने वाले एकमात्र सदस्य हैं. अधिकारी जानबूझकर अभियोजन पक्ष के मामले में लगाए गए आरोपों को किसी भी कानूनी दस्तावेज से पुष्ट नहीं करते हैं और ऐसी खामियां छोड़ दी जाती हैं और यही माफिया को कानून के अनुसार तलाशी, जब्ती और जांच न करके सबूतों के अभाव में बच निकलने का मौका देता है.

अदालत के फैसले पर विभाग की प्रतिक्रिया

राज्य के मद्य निषेध विभाग के एक अधिकारी ने कहा कि अदालत के फैसले पर प्रतिक्रिया देना अनुचित है लेकिन उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि पीठ ने कुछ वैध प्रश्न और चिंताएं जाहिर की हैं. अधिकारी ने कहा 13 करोड़ लोगों और सिर्फ़ 1.4 लाख पुलिसकर्मियों वाले राज्य में शराब कानून लागू करना मुश्किल है, क्योंकि उनके पास करने के लिए दूसरे काम भी हैं.