भारतीय राजनीति में ‘धर्म’ के बाद अब ‘भाषा’ पर लड़ाई शुरू! दयानिधि मारन के बयान से गरमाई सियासत

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नई दिल्ली: डीएमके नेता दयानिधि मारन के बिगड़े बोल से सियासत गरमा गई है। इसमें कोई शक नहीं है कि दक्षिण भारत के नेताओं की बोली इन दिनों बेहद बिगड़ गई है। सियासत की मर्यादा की परवाह किए बगैर इन दिनों नेता बदजुवानी पर उतरते दिख रहे हैं। इससे तो यहीं लगता है कि देश और राज्यों में कानून और संविधान की बात करने के लिए चुने गए जनप्रतिनिधि अगर ऐसी बातें करते हैं, तो समझ लीजिए कि संवैधानिक दायरा तार-तार हो रहा है, लेकिन राजनेता लक्ष्मण रेखा को लांघने में खुद को बयान बहादुर मान बैठे हैं।

उदयनिधि स्टालिन भी धर्म की तुलना डेंगू से कर चुके हैं

सबसे पहले तमिलनाडु के सीएम के बेटे उदयनिधि स्टालिन ने सनातन धर्म की तुलना डेंगू, मलेरिया से कर दी। अगले दिन कर्नाटक सरकार में मंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के पुत्र प्रियंक खड़गे ने भी उदयनिधि के भाषण का समर्थन कर दिया उकसे बाद अभी विवाद थमा नहीं था कि संसद के शीतकालीन सत्र में DMK सांसद ने डीएनवी सेंथिलकुमार ने उत्तर भारत के राज्यों को गौमूत्र राज्य बता दिया।

शीतकालीन सत्र में मुद्दा गरमाया, तो सेथिंल कुमार ने बयान पर माफी मांग ली, लेकिन संसद के शीतकालीन सत्र के खत्म होने के महज 48 घंटे क अंदर उत्तर भारतीयों को लेकर डीएमके के नेता दयानिधि मारन के बिगड़े बोल सामने आए हैं। मारन ने ह‍िंदी पट्टी के राज्‍यों बिहार और उत्तर प्रदेश के लोगों को लेकर एक बार फ‍िर व‍िवाद‍ित बयान देकर राजनीत‍िक बहस का मुद्दा खड़ा कर द‍िया है। उन्होंने ने कहा है कि, “बिहार और उत्तर प्रदेश के लोग जो केवल हिंदी सीखते हैं वो निर्माण कार्यों के ल‍िए तम‍िलनाडु चले जाते हैं..वह सड़कों और टायलेट की सफाई जैसे छोटे-मोटे काम करते हैं।”

मारन के बयान को बीजेपी ने बनाया मुद्दा!

दयानिधि मारन के बयान के बाद सियासत में उबाल आ गया है, आए भी क्यों ना, क्योंकि इस बयान लेकर उत्तर भारत के नेता और खास तौर पर बीजेपी ने इसे मुद्दा बनाने में देरी ना की। क्योंकि हिंदी भाषी राज्यों के अपमान को लेकर बीजेपी ने विपक्ष और खासकर I.N.D.I.A. एलायंस से सवाल करने शुरू कर दिए। क्योंकि 2024 के रण में बीजेपी हर मसले को अपने तरीके से भुनाने में जुटी है।

बीजेपी नेता शहजाद पूनवाला ने आरोप लगाया कि इंडिया गठबंधन देश को भाषा, धर्म और जाति के आधार पर बांटकर देश में वोट की सियासत कर ही है वहीं, एलजेपी नेता चिराग पासवान से बिहार के सीएम नीतीश कुमार और लालू यादव पर हमला बोला और दोनों नेता की चुप्पी पर सवाल किया है।

वहीं, बिहार बीजेपी के अध्यक्ष सम्राट चौधरी ने कहा कि लगातार इंडी गठबंधन पर जुबानी हमला कर रहे हैं। ऐसे में सम्राट चौधरी ने लालू-नीतीश को घेरते हुए सवाल पूछे और नीतीश बाबू एवं लालू यादव सत्ता के लिए बिहारवासियों को अपमानित होते हुए देख रहे हैं।

‘हम हिंदी के गुलाम नहीं’

दरअसल , हिंदी और हिंदी भाषी राज्यों को लेकर दक्षिण भारत के राज्यों का रूख हमेशा तल्ख और गैर जिम्मेदाराना रहा है। इसकी बानगी 4 अगस्त को देखने को मिली थी, जब गृहमंत्री अमित शाह ने एक बैठक में कहा था कि सभी राज्यों को हिंदी स्वीकार करनी चाहिए।

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने इस पर आपत्ति जताते हुए 5 अगस्त को एक X पर ट्वीट किया, जिसमें उन्होंने लिखा- “अमित शाह गैर-हिंदी राज्यों पर जबरदस्ती हिंदी थोप रहे हैं.. तमिलनाडु इसे स्वीकार नहीं करेगा, हम हिंदी के गुलाम नहीं बनेंगे.. कर्नाटक और पश्चिम बंगाल जैसे और स्टेट भी इसका विरोध कर रहे हैं।”

जब तमिलनाडु के मुखिया एमके स्टालिन ऐसा बयान दे सकते हैं तो उनके सांसद दयानिधि मारन से अच्छे बयान की उम्मीद करना बेईमानी लगती है। क्योंकि तमिलनाडु से पहले भी विवादित बयान आते रहे हैं ।

तमिलनाडु में हिंदी का विरोध पुराना

आपको बता दें कि तमिलनाडु के सरकारी स्कूलों में हिंदी नहीं पढ़ाई जाती है। यहां 90 के दशक तक स्कूलों में हिंदी के शिक्षक होते थे। बाद में इस विषय को हटा लिया गया। हालांकि, भाषा विकल्प के रूप में हिंदी आज भी है। केंद्र सरकार नई शिक्षा नीति लाने जा रही है, जिसमें तीन भाषाओं को सीखने का प्रावधान है।

तमिलनाडु की DMK सरकार इसका भी विरोध कर रही है। वैसे करीब 8 दशक से तमिलनाडु में हिंदी को लेकर विरोध हो रहा है। तमिलनाडु में पहली बार हिन्दी भाषा विरोधी आन्दोलन तब के मद्रास प्रान्त में 1937 में हुआ। 1946-50 के दौरान द्रविड़ कझागम और पेरियार ने हिंदी के खिलाफ आंदोलन छेड़ा, जब भी सरकार ने स्कूलों में हिंदी को अनिवार्य भाषा के रूप में पेश किया, तो हिंदी विरोधी विरोध हुआ और इस कदम को रोकने में सफल रहा। लेकिन सबसे बड़ा विरोध 1948—1950 में हुआ था।

तमिलनाडु में लोग सबसे ज्यादा हिंदी सीख रहे हैं!

समय के साथ तमिलनाडु में हालात में बदलाव आया है। क्योंकि हाल के दिनों दक्षिण राज्यों में हिंदी की परीक्षा आयोजित करने वाली संस्था दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा यानी DBHP के मुताबिक, तमिलनाडु के लोगों में हिंदी सीखने की ललक बढ़ी है। 2022 में तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में कुल 5,12,503 लोग हिंदी की परीक्षा में बैठे थे, इनमें अकेले तमिलनाडु के 2.86 लाख परीक्षार्थी थे, जो बाकी राज्यों से ज्यादा हैं। 2018 में तमिलनाडु में ये आंकड़ा 2.59 लाख था।

ऐसे में जब तमिलनाडु में हिंदी को लेकर लोगों में रूझान बढ़ा है। लोग दिल से हिंदी से जुड़ रहे हैं, लेकिन सियासतदान अपने बयानों से उत्तर भारतीय और हिंदी के प्रति जहर घोलने में जुटे हैं। ये हर लिहाज से समझ से परे है। ऐसे में कहा जा सकता है कि सियासतदान भाषाई आधार पर लोगों कोआपस में लड़ाकर क्या हासिल करना चाहते हैं और उन्हें इससे क्या मिलेगा।

Written By- भानु प्रकाश,आउटपुट डेस्क