नई दिल्ली: इलेक्टोरल बॉन्ड केस में शुक्रवार को सर्वोच्च न्यायालय ने अपना फैसना सुनाते हुए चुनावी बांड को ‘असंवैधानिक’ घोषित करार देते हुए कहा कि यह निर्णय चुनावी फंडिंग प्रणाली में परिवर्तन की संभावना ला सकता है और राजनीतिक दलों के धन दान को अधिक पारदर्शी बना सकता है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक, चुनावी बांड का अनधिकृत और गुमनाम रूप से धन देने का प्रणाली मानव अधिकारों के खिलाफ थी, क्योंकि जनता को यह जानने का अधिकार नहीं देती थी कि राजनीतिक दलों को किसने पैसा दिया है।
इस निर्णय के बाद, भारतीय स्टेट बैंक को दिया गया आदेश बांडों को जारी नहीं करने का है और खरीदने वालों की जानकारी प्रदान करने का आदान-प्रदान करना होगा। इससे राजनीतिक दलों के धन का प्रबंधन सामाजिक समाज के सामने अधिक खुला हो सकता है और व्यक्तिगत दानकर्ताओं को भी अधिक पारदर्शी बनाए रखा जा सकता है।
इस फैसले का सीधा प्रभाव आगामी चुनावों पर हो सकता है, और राजनीतिक प्रक्रिया में बदलाव आ सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने यह साबित किया है कि ऐसी प्रणाली जो राजनीतिक दलों को गुमनाम रूप से और अव्यवस्थित तरीके से धन देने की अनुमति देती है, वह संविधान के खिलाफ है।
यह निर्णय चुनावी प्रक्रिया को और भी संवेदनशील बना सकता है और लोगों को राजनीतिक दलों के धन के स्रोतों के प्रति अधिक जानकारी प्रदान कर सकता है। इसके फलस्वरूप, राजनीतिक प्रक्रिया में और भी तरक्की हो सकती है और लोगों का विश्वास भी बढ़ सकता है।
राहुल गांधी ने बीजेपी को घेरा
सुप्रीम कोर्ट के द्वारा इलेक्टोरल बॉन्ड को असंवैधानिक करार देने के बाद, कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने बीजेपी सरकार को घेरते हुए एक्स पर लिखा- ‘मैं देश नहीं बिकने दूंगा’ का नारा देने वाले नरेंद्र मोदी चुनावी चंदे के लिए देश का हर संसाधन बेचने को तैयार हैं। मगर किसान अपनी फसल पर न्यूनतम समर्थन मूल्य भी न मांगे, क्योंकि किसान इलेक्टोरल बॉन्ड्स नहीं देता है। अजीब विडंबना है…. “
क्या होता है इलेक्टोरल बॉन्ड?
“इलेक्टोरल बॉन्ड” एक वित्तीय उपाधि है जो भारत सरकार ने विभिन्न लोगों और संस्थाओं को दी है, ताकि वे भारतीय नागरिकों को निर्वाचनों में भाग लेने का एक माध्यम हो सके। इसे “इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम” के तहत प्रदान किया जाता है और इसका उपयोग राष्ट्रीय निर्वाचनों और विधानसभा निर्वाचनों में होता है।
इस योजना के अंतर्गत, विभिन्न क्षेत्रों के विभिन्न विशेषज्ञ और समृद्धि से जुड़े व्यक्तियों को निर्वाचनों में भाग लेने का अधिकार होता है। इसे भारतीय नागरिकों की प्रतिबद्धता को बढ़ावा देने का एक तरीका माना जाता है, और इसका उद्देश्य यह है कि विशेषज्ञ विभिन्न क्षेत्रों के विचारों और दृष्टिकोणों को राजनीतिक प्रक्रिया में शामिल करें ताकि निर्वाचनों में एक ब्रॉडर और समृद्धिपूर्ण दृष्टिकोण हो सके।
इस तरह के बॉन्ड का उपयोग सीधे नागरिकों के लिए नहीं किया जा सकता है, बल्कि इसे सीधे चुने गए लोगों या संस्थाओं के माध्यम से किया जाता है जो विभिन्न क्षेत्रों में अपनी विशेषज्ञता का प्रदर्शन कर सकते हैं।
इलेक्टोरल बॉन्ड कब लागू हुआ था और ये कैसे काम करता था?
इलेक्टोरल बॉन्ड की योजना भारत सरकार द्वारा 2018 में लागू की गई थी। इसका मुख्य उद्देश्य विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों और समृद्धि से जुड़े व्यक्तियों को निर्वाचनों में भाग लेने का अधिकार प्रदान करना था। इस योजना के तहत, उपयोगकर्ताओं को इलेक्टोरल बॉन्ड द्वारा सीधे मतदान नहीं करने की अनुमति होती है, बल्कि वे इसे विशिष्ट प्राधिकृतिक संस्थान या व्यक्ति को दे सकते हैं जिससे वे चयनित होते हैं। इस तरह, इलेक्टोरल बॉन्ड के माध्यम से विशेषज्ञ और समृद्धि से जुड़े लोगों को निर्वाचनों में भाग लेने का अवसर मिलता है और इससे राजनीतिक प्रक्रिया में विविधता बढ़ती है।
इस प्रकार का वित्तीय उपाधि भारतीय नागरिकों को निर्वाचन प्रक्रिया में सक्रिय भाग लेने का एक और तरीका प्रदान करता है और विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों को राजनीतिक निर्णयों में शामिल करने का मौका देता है।