मस्जिद पक्ष ने उठाए जिला जज पर सवाल, मंदिर पक्ष ने कहा – अदालत ने अनुरोध पर धारा 151 के तहत विवेकाधिकार से दिया आदेश

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नई दिल्ली/डेस्क: मस्जिद पक्ष ने दावा किया है कि बिना अर्जी के जिला जज ने पूजा का अधिकार दिया है, तो वहीं दूसरी तरफ मंदिर पक्ष ने कहा कि जिला अदालत ने अनुरोध पर धारा 151के तहत विवेकाधिकार से आदेश दिया है. कोर्ट ने पूछा क्या कोई अर्जी मंजूर होने के बाद उसी पर बाद में जारी किया जा सकता है?

वाराणसी, ज्ञानवापी परिसर स्थित व्यास जी के गृहतल में 31जनवरी को पूजा का अधिकार देने के जिला जज के आदेश के खिलाफ अपील की सुनवाई जारी है. सुनवाई बुधवार को भी होगी. आदेश के खिलाफ अपील की सुनवाई इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल कर रहे हैं. अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी ने डी एम को विवादित परिसर का रिसीवर नियुक्त करने के जिला जज के 17 जनवरी 2024 के आदेश को भी अपील दाखिल कर चुनौती दी है.

वहीं, पूजा का अधिकार देने के 31 जनवरी 24 के आदेश की चुनौती अपील में भी संशोधन अर्जी दाखिल की. जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया है. दोनों मामलों की सुनवाई होगी. मसाजिद कमेटी के वरिष्ठ अधिवक्ता एस एफ ए नकवी व पुनीत गुप्ता ने तर्क दिया कि जिला जज ने वादी की अर्जी को जब 17 जनवरी को मंजूर कर दो. उसमें से एक डी एम को रिसीवर नियुक्त करने की मांग मान ली, तो बिना किसी अर्जी के 31 जनवरी 24 का आदेश कैसे पारित किया. यह आदेश अवैध ही नहीं वरन असलम भूरे केस में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लघंन है. इसलिए आदेश रद किया जाए.

इनका यह भी कहना था कि वादी कभी भी पूजा नहीं करता था. यह कहना सही नहीं है कि 1993 में लोहे की बेरीकेडिंग के कारण उन्हें पूजा करने से रोक दिया गया. मस्जिद के तीनों गुंबदों के अधिकार को लेकर दीन मोहम्मद केस का हवाला दिया गया. सवाल यह भी उठा कि दो पक्षों का विवाद अन्य लोगों पर कैसे लागू होगा? सवाल यह भी कि क्या परिसर मस्जिद पक्ष के कब्जे में था? हस्तक्षेप के लिए क्या मस्जिद पक्ष के कब्जे का कोई सबूत है?

मंदिर पक्ष के अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने कहा कि 17जनवरी को 9ग अर्जी मंजूर करते हुए जिला जज ने पहली मांग पर डी एम को रिसीवर नियुक्त करने का निर्देश दिया है. डी एम ने 24जनवरी को परिसर अपने कब्जे व सुरक्षा में ले लिया. इसके बाद अर्जी 25जनवरी, 29व 30जनवरी को पेश हुई. मस्जिद पक्ष ने तो वाद पर लिखित जवाब दिया है और न ही अर्जी पर कोई आपत्ति दी. 31जनवरी को आदेश 7नियम 11की वाद की पोषणीयता पर आपत्ति दी है. जिसकी सुनवाई की तारीख जिला जज के आदेश में दी गई है.

वादी अधिवक्ता ने जिला अदालत से अपनी 9ग की अर्जी की दूसरी प्रार्थना पूजा का अधिकार पर आदेश जारी करने का अनुरोध किया. जिस पर अदालत ने अपने अधिकार का प्रयोग करते हुए 31जनवरी का आदेश दिया है

मस्जिद पक्ष से यह भी कहा गया कि उन्हें जिला जज के 31 जनवरी के आदेश की प्रति एक दिन पहले ही मिली है. ऐसे में डीएम को जिला जज का आदेश कैसे प्राप्त हो गया, जिसका अनुपालन उन्होंने महज सात-आठ घंटे में कर दिया. दिसंबर 1993 से जब से प्रदेश सरकार ने पूजा बंद कराई है, उसके बाद से वादी शैलेंद्र कुमार पाठक ने 2010 के अपने पिता के केस में पक्षकार बनने की अर्जी क्यों नहीं दी और 31 साल बाद नया वादी क्यों दायर किया है. इतने सालों तक वादी क्यों चुप रहा और 2023 में यह वाद दायर किया गया है.

मंदिर पक्ष ने कहा 17 जनवरी के आदेश को अभी तक चुनौती नहीं दी गई है. इसी आधार पर यह अपील पोषणीय न होने के कारण खारिज की जाय. 31 जनवरी को जिला जज ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद व्यास जी गृहतल में पूजा करने की अनुमति दी है. जिसके बाद तीन तारीखें लगी और कोई आपत्ति नहीं की गई. बताया कि अयोध्या विवादित ढांचा विध्वंस के बाद बैरिकेटिंग कर यह पूजा रोकी गई थी. उसके पहले यहां पूजा होती रही है.

जिला जज को यह अधिकार है कि वह बिना किसी अर्जी के विवेकाधिकार से आदेश दे सकते हैं. क्या अर्जी मंजूर होने के बाद उसी पर बिना किसी अर्जी के दोबारा आदेश दिया जा सकता है, इसी कानूनी मुद्दे पर बुधवार को बहस होगी. कोर्ट ने सुनवाई का मीडिया ट्रायल किए जाने पर टिप्पणी की और कहा दोनों पक्ष मीडिया ट्रायल करने से बचें.

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