उत्तर प्रदेश में मौर्य समाज की ताक़त… अखिलेश के उड़ाएंगी होश !

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नई दिल्ली/डेस्क: लोकसभा चुनाव की सरगर्मियों के बीच स्वामी प्रसाद मौर्य ने सपा को अलविदा कह दिया है. उन्होंने मंगलवार को खुद के साथ कथित भेदभाव और सपा प्रमुख अखिलेश यादव पर PDA यानि पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक की अनदेखी करने का आरोप लगाते हुए पार्टी छोड़ दी और साथ ही MLC पद से भी इस्तीफा दे दिया. उत्तर प्रदेश की राजनीति में गैर-यादव ओबीसी चेहरा स्वामी प्रसाद माने जाते हैं, खासकर अपने समाज मौर्य, शाक्य, सैनी और कुशवाहा समुदाय के बीच. ऐसे में स्वामी प्रसाद अपनी पार्टी बनाकर कितना सियासी असर डाल पाएंगे?

उत्तर प्रदेश में मौर्य समाज अलग-अलग उपजातियों में बंटा हुआ है, जिसे शाक्य, सैनी, कुशवाहा, मौर्य और कोईरी जाति के नाम से जानते हैं. इस जातीय समुदाय को पिछड़ा वर्ग में रखा गया है. उत्तर प्रदेश में यादव और कुर्मियों के बाद ओबीसी में तीसरा सबसे बड़ा जाति समूह मौर्य समाज का है. यूपी में करीब 7 फीसदी मौर्य-कुशवाहा की आबादी है, लेकिन करीब 15 जिलों में 15 फीसदी के करीब है. ओबीसी के तहत आने वाला मौर्य-कुशवाहा-शाक्य-सैनी समाज का वोट किसी एक पार्टी का वोट बैंक उत्तर प्रदेश में कभी नहीं रहा. यह समाज चुनाव दर चुनाव अपनी दशा को बदलता रहा है.

उत्तर प्रदेश की एक दर्जन लोकसभा सीट पर मौर्य समुदाय का वोट दो लाख से साढ़े तीन लाख है. बसपा प्रमुख मायावती ने कभी स्वामी प्रसाद मौर्य के जरिए मौर्य-कुशवाहा समाज के लोगों को आकर्षित करने का काम किया था.

अब अपनी अलग नई राजनीतिक पार्टी बनाने जा रहे हैं, जिसका नाम राष्ट्रीय शोषित समाज पार्टी रखा है. इससे ही साफ है कि स्वामी प्रसाद मौर्य दलित-पिछड़ों की सियासत करेंगे. यादव बेल्ट माने जाने वाले इटावा और मैनपुरी इलाके में स्वामी प्रसाद मौर्य सपा के लिए एक बड़ा चैलेंज बन सकते हैं?

लेखक: इमरान अंसारी