भारत में लॉन्ग कोविड मरीजों का इलाज डॉक्टरों के लिए बना सिरदर्द, जानिए क्यों?

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कोडविड-19 के दौरान बीमार हुए लोगों के लिए ये खबर चौंकाने वाली हो सकती है क्योंकि लॉन्ग कोविड से जूझ रहे मरीजों का इलाज भारत में डॉक्टरों के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है. इसका मुख्य कारण इस बीमारी से संबंधित स्पष्ट दिशा-निर्देशों और शोध की कमी है. भले ही विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोविड-19 को वैश्विक स्वास्थ्य इमरजेंसी के रूप में समाप्त कर दिया हो, लेकिन लॉन्ग कोविड के बढ़ते मामलों और उसके असर का अध्ययन जारी है.

क्या है लॉन्ग कोविड?

लॉन्ग कोविड उन लक्षणों को कहते हैं जो कोविड संक्रमण के खत्म होने के बाद भी लंबे समय तक बने रहते हैं. इसमें खांसी, मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द, थकान, मानसिक धुंधलापन और ध्यान केंद्रित करने में दिक्कत जैसे लक्षण शामिल हैं.

बता दें कि हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के एक अध्ययन के अनुसार, कोविड के गंभीर रूप से संक्रमित मरीजों में लॉन्ग कोविड के मामले अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग हैं, जैसे- उत्तरी अमेरिका में 31% लोग, यूरोप में 44% लोग और एशिया में 51% लोग में ठीक होने के बाद भी कुछ लक्षण बरकरार हैं. वहीं, भारत में मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज के एक अध्ययन में पाया गया कि 45% कोविड से ठीक हुए मरीजों में थकान और सूखी खांसी जैसे लक्षण बने रहते हैं.

इलाज के दौरान आने वाली चुनौतियां पर विशेषज्ञों की राय

डॉक्टरों ने बताया कि कोविड के बाद के मरीजों में नए लक्षण देखे जा रहे हैं, जैसे अस्थमा जैसे लक्षण और तंत्रिका तंत्र की समस्याएं, हालांकि, लॉन्ग कोविड की जांच के लिए कोई विशेष टेस्ट या दिशा-निर्देश उपलब्ध नहीं हैं.

मीडिया जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, पुष्पावती सिंघानिया अस्पताल की वरिष्ठ सलाहकार डॉ. नीतू जैन के अनुसार, “लॉन्ग कोविड का निदान करने के लिए हमारे पास कोई विशिष्ट परीक्षण नहीं है. हम मुख्यतः लक्षणों और मरीज की जीवनशैली पर आधारित निदान करते हैं.”

वहीं, शिव नादर विश्वविद्यालय की एक टीम ने दिमागी कोशिकाओं में सूजन का पता लगाने के लिए एक फ्लोरोसेंट जांच विकसित की है, जो माइक्रोग्लिया कोशिकाओं में नाइट्रिक ऑक्साइड के स्तर को मापती है. विशेषज्ञों का मानना है कि नींद से संबंधित विकारों और लॉन्ग कोविड के कारण होने वाली जैविक प्रक्रियाओं पर और अधिक शोध की आवश्यकता है.

एम्स के मनोरोग विभाग के प्रोफेसर डॉ. राजेश सागर के अनुसार, “भारत में लॉन्ग कोविड पर हुए अध्ययनों को देखते हुए, यह कहना जल्दबाजी होगी कि हम इस स्थिति को पूरी तरह से समझ चुके हैं.”

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