चीन और पाकिस्तान की मौजूदगी से भारत को SCO बैठक से क्या हैं उम्मीदें? 2015 के बाद पाकिस्तान जा रहा है कोई भारतीय विदेश मंत्री

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भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर 15-16 अक्टूबर को शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के प्रमुखों की बैठक में भाग लेने के लिए पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद का दौरा करेंगे. बता दें कि यह यात्रा कई मायनों में ऐतिहासिक होने वाली है क्योंकि यह पहली बार है जब 2015 में सुषमा स्वराज की पाकिस्तान यात्रा के बाद कोई भारतीय विदेश मंत्री पड़ोसी देश पाकिस्तान जा रहे हैं. यात्रा से पहले ही विदेशी राजनीति के जानकारों का कहना है कि इस यात्रा का उद्देश्य केवल द्विपक्षीय संबंधों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह बहुपक्षीय मंच SCO के माध्यम से क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर संवाद स्थापित करने का अवसर भी है. उम्मीद लगाई जा रही है कि इस बैठक में आतंकवाद के मुद्दे पर खुलकर बात चीत हो सकती है. लेकिन इससे पहले जानेंगे कि SCO क्या है और उसका उद्देश्य क्या है?

SCO संगठन क्या है और इसकी स्थापना कब हुई?

शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की स्थापना 15 जून 2001 को चीन, रूस, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, और ताजिकिस्तान द्वारा की गई थी, जिन्हें पहले शंघाई फाइव समूह के नाम से जाना जाता था. इस समूह में 2017 में भारत और पाकिस्तान को पूर्ण सदस्यता प्रदान की गई थी. 2023 में ईरान और बेलारूस भी इसमें शामिल हुए, जिससे यह संगठन भौगोलिक क्षेत्र और जनसंख्या के आधार पर दुनिया का सबसे बड़ा क्षेत्रीय संगठन बन गया.

SCO का उद्देश्य क्षेत्रीय सुरक्षा, आर्थिक विकास, ऊर्जा सहयोग और आतंकवाद विरोधी प्रयासों को मजबूत करना है. चीन और रूस के इस संगठन के केंद्र में होने के कारण, इसे अक्सर पश्चिमी देशों से अलग एक वैश्विक शक्ति संतुलन के रूप में देखा जाता है.

भारत के लिए क्या है SCO का महत्व?

भारत के लिए SCO एक महत्वपूर्ण मंच है, जहां पर भारत मध्य एशियाई देशों जैसे- कजाकिस्तान, ताजिकिस्तान, किर्गिस्तान और उजबेकिस्तान से अपने संबंध बढ़ा सकता है. क्योंकि ये देश न केवल भारत के सुरक्षा हितों के लिए महत्वपूर्ण हैं, बल्कि ऊर्जा सुरक्षा, व्यापार, और कनेक्टिविटी के लिए भी अहम हैं. क्योंकि तुर्कमेनिस्तान में प्राकृतिक गैस के दुनिया के चौथे सबसे बड़े भंडार हैं, और कजाकिस्तान यूरेनियम का सबसे बड़ा उत्पादक है, जो भारत की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण हैं.

भारत के लिए सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि हम (भारत) SCO के आतंकवाद विरोधी ढांचे (Regional Anti-Terrorist Structure – RATS) का भी हिस्सा हैं, जो क्षेत्रीय सुरक्षा और आतंकवाद पर जानकारी के आदान-प्रदान का एक महत्वपूर्ण मंच है, और भारत इसका फायदा इस बैठक में जरूर उठाएगा. क्योंकि भारत इस मंच का उपयोग आतंकवाद के खिलाफ अपनी रणनीति को मजबूत करने के लिए कर रहा है.

लेकिन SCO में चीन और पाकिस्तान के रहते एक सवाल बार-बार खड़ा होता है कि ये दोनों देशों (चीन और पाकिस्तान) जो की कभी भी भारत के हित में नहीं सोचते हैं. भारत इन दोनों देशो के रहते इस संगठन का कैसे लाभ उठाएगा?

आपको बता दें कि चीन और पाकिस्तान के SCO के सदस्य होने के बावजूद भी भारत को इस संगठन से काफी लाभ मिलता है. क्योंकि भारतो SCO सुरक्षा के अलावा मध्य एशिया में व्यापार और निवेश के नए अवसर प्रदान करता है. लेकिन इस बैठक में चीन के प्रभाव के बावजूद, भारत का इस मंच में सक्रिय रूप से भाग लेना महत्वपूर्ण है ताकि वह अपने क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय हितों की रक्षा कर सके. इसके लिए आपको भारत के इस पूर्व राजदूत की इस बात को समझना पड़ेगा.

पूर्व भारतीय राजदूत अशोक सज्जनहार के अनुसार, “चीन के इस मंच में होने के कारण भारत को भी वहां होना चाहिए. मध्य एशिया भारत के लिए एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है, और अगर चीन वहां सक्रिय है, तो भारत को भी वहां अपनी उपस्थिति दर्ज करनी चाहिए.”

SCO बैठक में आतंकवाद और सुरक्षा पर हो सकती है चर्चा!

बात दें कि SCO की बैठकों में आतंकवाद हमेशा से एक प्रमुख मुद्दा रहा है. हाल के समय में पाकिस्तान में चीनी नागरिकों पर हुए हमले और अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी के बाद मध्य एशियाई देशों में आतंकवाद का खतरा बढ़ गया है. यही कारण है कि इस बैठक में भी आतंकवाद पर व्यापक चर्चा होने की संभावना है. क्योंकि पहले भी SCO के RATS ढांचे के माध्यम से सदस्य देश आपसी सहयोग से आतंकवादी गतिविधियों को रोकने में सफल रहे हैं.

अक्टूबर 15-16 की बैठक में संभावित मुद्दे, जिनपर होनी है चर्चा?

इस बैठक में कई अहम मुद्दों पर चर्चा होने की संभावना है, जिनमें आतंकवाद, क्षेत्रीय सुरक्षा, रूस-यूक्रेन और इज़राइल-हमास युद्ध शामिल हैं. ईरान और बेलारूस के नए सदस्य बनने के बाद, यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि यह संगठन इन वैश्विक संकटों पर किस प्रकार की प्रतिक्रिया देता है.

बता दें कि भारत के लिए, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा पिछले साल SCO की अध्यक्षता के दौरान उठाए गए मुद्दों को आगे बढ़ाने की उम्मीद है. इनमें पारंपरिक चिकित्सा, मिलेट्स, स्टार्टअप्स और बौद्ध धरोहर को बढ़ावा देने के प्रयास शामिल थे. क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी ने SCO के लिए एक मंत्र भी दिया था – “SECURE”। इसमें ‘S’ का अर्थ सुरक्षा, ‘E’ का आर्थिक विकास, ‘C’ का कनेक्टिविटी, ‘U’ का एकता, ‘R’ का क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता के लिए सम्मान, और ‘E’ का पर्यावरण संरक्षण है. भारत इस मंत्र के आधार पर SCO में अपनी भूमिका निभाता रहेगा.

SCO में भारत-पाकिस्तान के संबंधों पर क्या प्रभाव पड़ेगा?

जैसा ही सब जानते हैं कि SCO एक बहुपक्षीय मंच है, और इसके माध्यम से भारत और पाकिस्तान के बीच संबंधों में सुधार की संभावना कम है. भारत का स्पष्ट रुख है कि बातचीत और आतंकवाद साथ-साथ नहीं चल सकते हैं. एस जयशंकर की पाकिस्तान यात्रा से यह संकेत जाता है कि भारत SCO को एक महत्वपूर्ण मंच मानता है, लेकिन इसके बावजूद भारत अपने आतंरिक और वैश्विक नीतियों में स्पष्टता बनाए रखेगा.

SCO में भारत-चीन के संबंधों पर क्या प्रभाव पड़ेगा?

भारत और चीन के बीच सीमा विवाद के बावजूद, दोनों देशों के बीच SCO जैसे बहुपक्षीय मंच पर बातचीत के अवसर बने रहते हैं. हालांकि, इस बैठक में भारत और चीन के बीच किसी बड़ी वार्ता की संभावना नहीं है. लेकिन चीन की ओर से प्रधानमंत्री के स्तर का प्रतिनिधि उपस्थित रहेगा, जबकि भारत की ओर से विदेश मंत्री जयशंकर भाग लेंगे. यही कारण है कि दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय वार्ता होना असंभव है.

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