मोदी 3.0 और ट्रम्प 2.0 की जोड़ी का भारत-अमेरिका संबंधों पर क्या असर पड़ेगा? जानें कितनी मिलती है दोनों की सोच…

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अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के दोबारा राष्ट्रपति बनने से भारत-अमेरिका संबंधों में किस तरह के बदलाव होंगे, यह सवाल अब सभी के लिए बहुत ही जिज्ञासु हो गया है. वैसे तो ट्रंप की विदेश नीति का प्रमुख बिंदु हमेशा “अमेरिका फर्स्ट” रहा है, जिससे उनकी नई पारी में और भी ज्यादा अलगाववादी रुख देखने को मिल सकता है. लेकिन भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ उनकी गर्मजोशी भरी दोस्ती, जैसे “हाउडी, मोदी!” और “नमस्ते ट्रंप!” इवेंट्स में देखने को मिली थी.

बता दें कि यह दोस्ती दोनों नेताओं के बीच संबंधों को मजबूत करने में सहायक साबित हो सकती है, खासकर जब यह दुनिया के सबसे पुराने और सबसे बड़े लोकतंत्रों के बीच रिश्तों को आगे बढ़ाने की बात हो रही हो.

क्या है दोस्ती का महत्व?

ट्रंप और मोदी की दोस्ती ने भारत-अमेरिका संबंधों में एक नया आयाम जोड़ा है. मोदी के आर्थिक विकास और प्रो-बिजनेस दृष्टिकोण के चलते उन्होंने ट्रंप में एक समान सोच वाला साथी पाया है. दोनों नेता इनोवेशन, आर्थिक विकास और नियम-कानूनों में ढील देने जैसी नीतियों को बढ़ावा देते हैं. इनकी दोस्ती इस मायने में भी महत्वपूर्ण है कि यह वैश्विक चुनौतियों का समाधान खोजने के लिए निरंतरता प्रदान करती है. बता दें कि ट्रंप और मोदी की मित्रता केवल आर्थिक सहयोग तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह आतंकवाद और इंडो-पैसिफिक में स्थिरता जैसे रणनीतिक मुद्दों पर भी सहयोग को प्रोत्साहित कर सकती है.

जनसांख्या और भारतीय-अमेरिकी वोटों में बदलाव

अमेरिका में भारतीय-अमेरिकी बदलती जनसांख्यिकी का राजनीति में एक विशेष स्थान है. भारतीय-अमेरिकी समुदाय परंपरागत रूप से डेमोक्रेटिक पार्टी के समर्थक रहा है, लेकिन हाल के वर्षों में उनमें रूढ़िवादी विचारधाराओं की ओर झुकाव देखने को मिला है. ट्रंप का “अमेरिका फर्स्ट” का नारा कुछ हद तक इस समुदाय के कुछ हिस्सों को आकर्षित कर रहा है, जो व्यापारिक मित्रता, पारिवारिक मूल्यों और कम टैक्स जैसी नीतियों को समर्थन देते हैं. भारतीय-अमेरिकी समुदाय अमेरिका का सबसे संपन्न और शिक्षित प्रवासी समूहों में से एक है, और उनके इस रूझान का अमेरिकी राजनीति पर भी असर पड़ सकता है.

दोनों देशों की व्यापारिक नीतियां और टैक्स

व्यापार एक संवेदनशील मुद्दा है, विशेष रूप से ट्रंप की “प्रतिस्पर्धी टैक्स” वाली नीति के चलते. अपने पहले कार्यकाल के दौरान ट्रंप ने कई बार उन देशों की आलोचना की, जो अमेरिकी वस्तुओं पर ऊंचे टैक्स लगाते हैं, और भारत भी उनमें से एक था. हालांकि, यदि ट्रंप चीन से अलगाव पर जोर देते हैं, तो भारत के लिए यह एक अवसर हो सकता है कि वह अमेरिकी कंपनियों के लिए एक वैकल्पिक बाजार के रूप में उभरे.

वीजा नीति और H-1B वीजा का मुद्दा क्यों है अहम?

H-1B वीजा नीति भी एक बड़ा मुद्दा है, खासकर भारतीय पेशेवरों के लिए. ट्रंप के पिछले प्रशासन ने H-1B वीजा पर कई सख्त नियम लागू किए थे, जो भारतीय तकनीकी पेशेवरों के लिए चिंता का कारण बने. अगर यह नीति फिर से सख्त होती है, तो यह भारत से आने वाली प्रतिभाओं को प्रभावित कर सकती है. हालांकि, यदि दोनों नेता आपसी सहमति से एक संतुलित नीति बना पाते हैं, तो यह दोनों देशों के तकनीकी क्षेत्र में एक नया अध्याय खोल सकता है.

इंडो-पैसिफिक में सुरक्षा और रक्षा

पिछले कुछ वर्षों में भारत-अमेरिका रक्षा संबंध मजबूत हुए हैं. ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में इस साझेदारी को और आगे बढ़ाने पर जोर दिया जा सकता है, खासकर “क्वाड” जैसे सहयोगों के जरिए. क्योंकि क्वाड का महत्व बढ़ता जा रहा है, जो कि चीन के बढ़ते प्रभाव के जवाब में एक महत्वपूर्ण साझेदारी मानी जा रही है. ट्रंप-मोदी गठबंधन भारत को इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में प्रमुख भूमिका निभाने में सक्षम बना सकता है.

आतंकवाद के खिलाफ ट्रंप और मोदी की एक सोच!

बता दें कि आतंकवाद विरोधी मोर्चे पर भी ट्रंप और मोदी की सोच काफी मिलती है. ट्रंप की “शक्ति के माध्यम से शांति” की नीति भारत की सुरक्षा प्राथमिकताओं के अनुकूल है. ट्रंप और मोदी की साझेदारी आतंकवाद के खिलाफ एक मजबूत मोर्चा बना सकती है, खासकर पाकिस्तान जैसे देशों पर दबाव बनाने के लिए. इससे भारत की सुरक्षा में सुधार और क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ावा मिल सकता है.

दोनों देशों के कैसे हैं आपसी संबंध?

ट्रंप की अलगाववादी विदेश नीति और मोदी का प्रो-बिजनेस दृष्टिकोण भारत-अमेरिका संबंधों के लिए एक जटिल पृष्ठभूमि प्रदान करता है. दोनों नेता आर्थिक विकास और राष्ट्रीय संप्रभुता को महत्व देते हैं. आने वाले वर्षों में मोदी और ट्रंप आर्थिक संबंधों को मजबूत करने के साथ-साथ नीतिगत स्वतंत्रता का भी सम्मान करने पर ध्यान दे सकते हैं. अगर ट्रंप व्यापार समझौतों में ज्यादा निष्पक्षता चाहते हैं, तो मोदी की सरकार भारत के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए कुछ समझौते कर सकती है.

ट्रंप का व्हाइट हाउस में दोबारा लौटना और मोदी का भारत में निरंतर नेतृत्व भारत-अमेरिका संबंधों के लिए नए अवसर और चुनौतियां प्रदान करता है. दोनों नेता व्यापार, रक्षा और क्षेत्रीय सुरक्षा के मुद्दों पर एक संतुलित और मजबूत साझेदारी बनाने की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं. यह नया अध्याय न केवल भारत-अमेरिका संबंधों को मजबूत कर सकता है, बल्कि वैश्विक स्तर पर कूटनीति और आर्थिक सहयोग में एक नया मानक भी स्थापित कर सकता है.