Shahi Idgah Mosque Controversy: मथुरा श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद विवाद मामले में मुस्लिम पक्ष रिकॉल अर्जी पर इलाहाबाद हाई कोर्ट 23 अक्टूबर (बुधवार) यानी आज फैसला सुनाएगा. जस्टिस मयंक कुमार जैन की सिंगल बेंच दोपहर 3:50 बजे अपना फैसला सुनाएगी. क्या है मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद विवाद? आइए विस्तार से समझते हैं.
क्या है पूरा मामला?
मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद विवाद (Shahi Idgah Mosque Controversy)13.37 एकड़ जमीन के मालिकाना हक को लेकर है. दरअसल इस जमीन के 11 एकड़ हिस्से में एक ओर जहां श्रीकृषण का मंदिर है तो वहीं दूसरी ओर 2.37 एकड़ हिस्से में शाही ईदगाह मस्जिद है. जिसे लेकर हिंदू पक्ष का दावा है कि शाही ईदगाह मस्जिद का निर्माण कृष्ण जन्मभूमि भूमि पर किया गया है.
कैसे हुआ शाही ईदगाह मस्जिद का निर्माण.?
इस पूरे विवाद की शुरुआत आज या कल नहीं बल्कि 350 साल से भी पहले हुई! हिंदू पक्ष का दावा है कि वर्ष 1618 में ओरछा के राजा वीर सिंह बुंदेला द्वारा निर्मित मंदिर को मुगल सम्राट औरंगजेब के आदेश के तहत वर्ष 1670 में शाही ईदगाह मस्जिद के निर्माण के लिए ध्वस्त कर दिया गया था. जिसके बाद ये जमीन मुसलमानों के पास चली गई. फिर इस जगह शाही ईदगाह मस्जिद का निर्माण किया गया. कुछ इस तरह हुआ शाही ईदगाह मस्जिद का निर्माण.
शाही ईदगाह मस्जिद के बराबर में कैसे हुआ मंदिर का निर्माण?
अब आईए जानते हैं कि शाही ईदगाह मस्जिद के बराबर में मंदिर का निर्माण कैसे हुआ? कोर्ट में दायर याचिका के अनुसार, वर्ष 1770 में मुगल और मराठा के बीच युद्ध हुआ. जिसमें जीत मराठों की हुई. जीत के मराठों ने मंदिर बनवाया गया. जिसका नाम रखा गया केशवदेव मंदिर. फिर एक समय वो आया जब भूकंप की चपेट में आकर मंदिर को भारी नुकसान पहुंचा.
जिसके बाद अंग्रेजों ने अपने शासनकाल के दौरान इस जमीन को नीलाम कर दिया, 1815 में हुई नीलाम के समय इस जमीन को काशी के व्यापारी राजा पाटनी मल ने खरीद लिया. लेकिन मालिकाना हक नहीं मिल सका. क्योंकि इस बीच वक्त-वक्त पर ईदगाह से जुड़े लोग कोर्ट में मुकदमा करते रहे. जिसके कारण यह जमीन खाली रही, और फिर मुस्लिमों ने दावा किया कि यह ज़मीन उनकी है.
1968 में मंदिर और मस्जिद को लेकर हुआ समझौता
फिर वर्ष 1944 में इस जमीन को मशहूर उद्योगपति जुगल किशोर बिड़ला ने खरीदा. इस बीच फिर 1947 में भारत आजाद हुआ और फिर 1951 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान ट्रस्ट का निर्माण हुआ जिसे यह जमीन दी गई. वर्ष 1953 में ट्रस्ट के पैसों से जमीन पर मंदिर का निर्माण शुरू किया, जो वर्ष 1958 में बनकर तैयार हुआ. वहीं, 1958 में एक नई संस्था बनी, जिसकों नाम दिया गया श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान. इसी संस्था ने वर्ष 1968 में मुस्लिम पक्ष के साथ एक समझौता किया. जिसमें कहा गया कि जमीन पर मंदिर और मस्जिद दोनों रहेंगे. वर्ष 1974 में इस समझौते पर अदालत की मुहर भी लग गई.
फरवरी 2020 में सिविल कोर्ट में दायर हुई याचिका
फरवरी 2020 में सिविल कोर्ट में एक याचिका दायर हुई, जिसमें दावा किया गया कि शाही ईदगाह मस्जिद श्रीकृष्ण जन्मभूमि के ऊपर बनी हुई है. इसलिए उसे हटाया जाना चाहिए. इसी के साथ याचिका में यह भी कहा गया है कि ज़मीन को लेकर वर्ष 1968 में हुआ समझौता अवैध है. फरवरी 2020 में दाखिल याचिका के बाद श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद विवाद एक बार फिर प्रकाश में आया.